धार्मिक त्योहारों का महत्व भारतीय संस्कृति में प्रमुख होता है, और विश्वकर्मा पूजा इसी एकता और आदर्शों का प्रतीक है। यह पूजा भगवान विश्वकर्मा को समर्पित है, जिन्हें हिंदू धर्म में उद्योग, शिल्पकला, और विनिर्माण के देवता के रूप में माना जाता है। विश्वकर्मा पूजा के दौरान, विशेष मंत्रों का जप किया जाता है, जिनका महत्व इस पूजा में विशेष रूप से होता है।
यहाँ हम आपको विश्वकर्मा पूजा के विभिन्न प्रकार के मंत्रों का परिचय देंगे, जैसे कि ध्यान मंत्र, पूजा मंत्र, प्रार्थना मंत्र, महामंत्र, गायत्री मंत्र, हवन मंत्र, और आवाहन मंत्र। ये मंत्र विश्वकर्मा पूजा के उद्देश्य को समर्थन देते हैं और आध्यात्मिक महत्व के साथ इस पूजा को और भी प्रयोगी बनाते हैं।
विश्वकर्मा पूजा क्यों मनाया जाता है
विश्वकर्मा पूजा, जो भगवान विश्वकर्मा की उपासना का हिस्सा है, भारतीय सांस्कृतिक त्रडिशन में महत्वपूर्ण है। इसे कई कारणों से मनाया जाता है:
- शिल्पकला का महत्व: विश्वकर्मा देव को शिल्पकला के देवता माना जाता है। उन्हें वास्तुकला, उद्योग, और शिल्पकला के पालक माना जाता है, और उनकी पूजा और आराधना से यह दर्शाया जाता है कि शिल्पकला और वास्तुकला का महत्व समाज में कितना उच्च है।
- धार्मिक महत्व: विश्वकर्मा पूजा को हिन्दू धर्म में महत्वपूर्ण माना जाता है। इसे विश्वकर्मा जयंती के रूप में मनाया जाता है, जिसके दौरान लोग विश्वकर्मा देव के आशीर्वाद का प्राप्त करने का प्रयास करते हैं।
- उद्योग और शिल्प की महत्वपूर्ण भूमिका: विश्वकर्मा पूजा में, विशेष रूप से उद्योग, शिल्पकला, और वास्तुकला के कामकाज में जुटे लोग अपने उद्योगों और कार्यक्षेत्रों की सुरक्षा और सफलता की प्राप्ति के लिए विश्वकर्मा देव की आराधना करते हैं।
- विश्वकर्मा समुदाय की एकता: विश्वकर्मा पूजा के दौरान, विश्वकर्मा समुदाय के लोग एक साथ आकर्षित होते हैं और अपने सामाजिक और धार्मिक बंधनों को मजबूत करते हैं।
इन कारणों से विश्वकर्मा पूजा का महत्व है और यह भारतीय सांस्कृतिक परंपरा का महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है।
202 में विश्वकर्मा पूजा का शुभ मुहूर्त
हर साल कन्या संक्रांति के दिन भगवान विश्वकर्मा की पूजा की जाती है, जो सृष्टि के शिल्पकार माने जाते हैं। 2024 में, कन्या संक्रांति 16 सितंबर को पड़ रही है, जब सूर्य देव शाम 7:03 बजे कन्या राशि में प्रवेश करेंगे। सूर्य का इस राशि में प्रवेश करना ही कन्या संक्रांति कहलाता है।
हालांकि, भगवान विश्वकर्मा की पूजा उदय तिथि के अनुसार की जाती है। इस वर्ष, उदय तिथि के अनुसार विश्वकर्मा पूजा 17 सितंबर को होगी, जोकि मंगलवार के दिन पड़ रही है।
पूजा का शुभ मुहूर्त:
विश्वकर्मा पूजा का शुभ समय 17 सितंबर 2024 को सुबह 6:07 बजे से शुरू होकर 11:44 बजे तक रहेगा। इस समय के भीतर भगवान विश्वकर्मा की पूजा करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है।
यह दिन खासकर उद्योग, कारखानों और निर्माण से जुड़े लोग बड़े उत्साह के साथ मनाते हैं और अपने औजारों और मशीनों की पूजा करते हैं।
यहां जानकारी को सारणी (टेबल) के रूप में प्रस्तुत किया गया है:
घटना | तारीख | समय | विवरण |
---|---|---|---|
कन्या संक्रांति | 16 सितंबर 2024 | शाम 7:03 बजे | सूर्य देव का कन्या राशि में प्रवेश |
विश्वकर्मा पूजा | 17 सितंबर 2024 | सुबह 6:07 बजे से 11:44 बजे तक | उदया तिथि के अनुसार, पूजा का शुभ मुहूर्त |
भगवान विश्वकर्मा की उत्पत्ति की कथा
प्राचीन धार्मिक ग्रंथों और पुराणों में विश्वकर्मा देवता के महत्वपूर्ण महात्म्यों का वर्णन होता है, और उनकी उत्पत्ति की कथा भी अत्यंत रोचक है। इस कथा के अनुसार, सृष्टि के प्रारंभ में ‘नारायण’, अर्थात साक्षात विष्णु भगवान, सागर में शेषशय्या पर प्रकट हुए। उनके नाभि-कमल से चर्तुमुख ब्रह्मा प्रकट हो गए और उनकी दृष्टि गोचर हो रही थी।
ब्रह्मा के पुत्र ‘धर्म’ और धर्म के पुत्र ‘वास्तुदेव’ हुए। धर्म की ‘वस्तु’ से उत्पन्न ‘वास्तु’ सातवें पुत्र थे, जो शिल्पकला के महान प्रवर्तक थे। इनमें से एक थे ‘वास्तुदेव’ जिनकी ‘अंगिरसी’ नामक पत्नी थी, और इसी पात्रजन्म से ही भगवान विश्वकर्मा का जन्म हुआ। इस प्रकार, विश्वकर्मा देवता भगवान विष्णु के अवतार के रूप में प्रकट हुए और उनके महत्वपूर्ण कार्य का संचालन किया। उन्होंने वास्तुकला और शिल्पकला के क्षेत्र में अपनी अद्वितीय आचार्यता का प्रदर्शन किया, और उन्हें इस कला के देवता के रूप में पूजा जाता है।
भगवान विश्वकर्मा के रूप तथा अवतार
भगवान विश्वकर्मा, भारतीय संस्कृति में एक महत्वपूर्ण देवता है, जिनके अनेक रूप और विशेषताएँ हैं। उनके विभिन्न रूपों का वर्णन करते समय, हम देखते हैं कि वे दो बाहु, चार बाहु, और दस बाहु वाले होते हैं, साथ ही उनके चेहरे में एक मुख, चार मुख, और पंचमुख भी हो सकते हैं।
विश्वकर्मा देवता के पांच पुत्र – मनु, मय, त्वष्टा, शिल्पी, और दैवज्ञ, भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका को प्रकट करते हैं। इन पुत्रों ने विभिन्न शिल्पकला के क्षेत्र में अपनी विशेषज्ञता दिखाई और भगवान विश्वकर्मा की महत्वपूर्ण उपलब्धियों का आविष्कार किया।
यहाँ विश्वकर्मा देव के पांच पुत्रों का वर्णन एक तालिका में दिया गया है:
पुत्र का नाम | पुत्र का धातु से संबंध |
---|---|
मनु | लोहे (Iron) |
मय | लकड़ी (Wood) |
त्वष्टा | कांसा और तांबा (Bronze and Copper) |
शिल्पी | ईंट (Brick) |
दैवज्ञ | सोना और चांदी (Gold and Silver) |
विभिन्न युगों में विश्वकर्मा के कुछ वास्तुशिल्प चमत्कार निम्नानुसार हैं:
- शनि युग में: स्वर्ग
- त्रेता युग में: सोने की लंका
- द्वापर युग में: द्वारका शहर
- कलियुग में: हस्तीनापुर और इंद्रप्रस्थ
विश्वकर्मा पूजा मंत्र । Viswakarma Puja Mantra
यह दिए गए विश्वकर्मा पूजा मंत्र, पूजा सत्र के दौरान उपयोग किए जाने मंत्र वाले है। जो इसप्रकार हे
ओम आधार शक्तपे नम:
ओम कूमयि नम:
ओम अनन्तम नम:
पृथिव्यै नम:।
ऊं श्री सृष्टतनया सर्वसिद्धया विश्वकर्माया नमो नमः.
विश्वकर्मा ध्यान मंत्र । Vishwakarma Puja Dhyan Mantra
भगवान विश्वकर्मा का ध्यान मंत्र निम्नलिखित इस प्रकार हे –
नारायणाब्ज – जनितस्य विधेः सुतस्य,
धर्मात्मजस्य गृहवास्तुसुतं वरेण्यम् ।
स्वर्गादिलोकरचनाकुशलं तमद्य,
श्रीविश्वकर्मविश्रुतं सततं स्मराम ॥
दंशपाल महावीर ! सुचित्रकर्मकारक ।
विश्वकृत् विश्वधृक् त्वं च वसनामानदण्डधृक् ॥
देवशिल्पिन् महाभाग देवानां कार्यसाधकः ।
विश्वकर्मन् ! नमस्तुभ्यं सर्वाभीष्ठप्रदायक ! ॥
नमामि विश्वकर्माणं द्विभुजं विश्ववन्दिनम् ।
गृहवास्तु – विधातारं महाबलपराक्रमम् ॥
प्रसीद विश्वकर्मस्त्वं शिल्पविद्याविशारद ।
दण्डपाणे ! नमस्तुभ्यं तेजोमूर्त्तधर प्रभो ! ॥
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विश्वकर्मा श्लोक। विश्वकर्मा वैदिक मंत्र। Vishwakarma Shlok
विश्वकर्मा पूजा के श्लोक निम्नलिखित इस प्रकार हे –
ॐ विश्व कर्मन् हविषा वावृधान,
स्वयं यजस्व पृथिवीमुतद्याम् ।
मह्यान्त्वन्येऽभित गुं सपत्ना
इहाऽस्माकं मघवा सूरिरस्तु ॥
विश्वकर्मा आवाहन मंत्र
आवाहयामि देवेशं विश्वकर्माणमीश्वरम् ।
मूर्त्ताऽमूर्त्तकरं देवं सर्वकर्त्तारमद्भुतम् ॥
त्रैलोक्य – सूत्रकर्त्तारं द्विभुजं विश्वदर्शितम् ।
आगच्छ विश्वकर्मस्त्वं यज्ञेऽस्मिन् सन्निधो भव ॥
विश्वकर्मा प्रार्थना मंत्र
नमामि विश्वकर्माणं द्विभुजं विश्ववन्दिनम् ।
गृहवास्तु – विधातारं महाबलपराक्रमम् ॥
प्रसीद विश्वकर्मस्त्वं शिल्पविद्याविशारद । –
दण्डपाणे ! नमस्तुभ्यं तेजोमूर्त्तधर प्रभो ! ॥
विश्वकर्मा हवन मंत्र । मूल मन्त्र
ॐ विश्वकर्मणे नमः स्वाहा ।
विश्वकर्मा हवन करने के लिए – सम्पूर्ण मंत्र के 108 बार जप के साथ , हवन कुण्ड में अग्नि के सामने घी और लकड़ी की आहुति दें, मंत्र का आहुति के साथ।
भगवान विश्वकर्मा गायत्री मन्त्र । Vishwakarma Gayatri Mantra
|| श्री विश्वकर्मा गायत्री मन्त्र ||
ॐ चतुर्भुजय विदमहे, हंसवाहनाय धीमहि ।
तन्नो विश्वकर्मा प्रचोदयात ।। १
ॐ अनन्ताय विदमहे, विश्वरूपाय धीमहि ।
तन्नो विश्वकर्मा प्रचोदयात ।। २
ॐ प्रजापतये विदमहे, पुरुषाय धीमहि ।
तन्नो विश्वकर्मा प्रचोदयात ।। ३
ॐ सर्वेश्वरांय विदमहे, विश्वरक्षकाय धीमहि ।
तन्नो विश्वकर्मा प्रचोदयात ।। ४
ॐ सर्वरूपाय विदमहे ,विश्वकर्मणे धीमहि ।
तन्नो विश्वकर्मा प्रचोदयात ।। ५
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विश्वकर्मा स्तुति मंत्र । भगवान विश्वकर्मा की स्तुति
विश्वकर्मा प्रभु नित्य नमनकर सुखदायकम्
ब्रह्मांड अमित जगत सुखकर सर्व सुर वर नायकम्
त्रिनेत्र आनन जलज लोचन पद्मासित कर कोमलं
कंचन मुकुट सिर तिलक चंदन चारु कर्ण सुकुण्डलम् ,
चारु कर्ण सुकुण्डलम्
विश्वकर्मा प्रभु नित्य नमनकर सुखदायकम्
ब्रह्मांड अमित जगत सुखकर सर्व सुर वर नायकम्
पुखराज हाटक हरित मणिहिय हार दिव्य मनोहरम्
कटिपित अम्बर ललित सुंदर शुभ बपु शोभाकरम् ,
शुभ बपु शोभाकरम्
विश्वकर्मा प्रभु नित्य नमनकर सुखदायकम्
ब्रह्मांड अमित जगत सुखकर सर्व सुर वर नायकम्
भजु पंचमुख अविनव अलौकिक विश्वरूप विरोचनम्
अनुपम चिरंतन अमल छवि मुनि संतजन मनरंजनम् ,
संतजन मनरंजनम्
विश्वकर्मा प्रभु नित्य नमनकर सुखदायकम्
ब्रह्मांड अमित जगत सुखकर सर्व सुर वर नायकम्
जय भक्त वत्सल भय विनाशक करुणामय अखिलेश्वरं
मम काम क्रोध मद् लोभ हर मन मुदितकर शिल्पेश्वरं,
विश्वकर्मा प्रभु नित्य नमनकर सुखदायकम
ब्रह्मांड अमित जगत सुखकर सर्व सुर वर नायकम्
विश्वकर्मा जी की आरती लिखित में
ॐ जय श्री विश्वकर्मा प्रभु जय श्री विश्वकर्मा।
सकल सृष्टि के कर्ता रक्षक श्रुति धर्मा ॥1॥
आदि सृष्टि में विधि को, श्रुति उपदेश दिया।
शिल्प शस्त्र का जग में, ज्ञान विकास किया ॥2॥
ऋषि अंगिरा ने तप से, शांति नही पाई।
ध्यान किया जब प्रभु का, सकल सिद्धि आई॥3॥
रोग ग्रस्त राजा ने, जब आश्रय लीना।
संकट मोचन बनकर, दूर दुख कीना॥4॥
जब रथकार दम्पती, तुमरी टेर करी।
सुनकर दीन प्रार्थना, विपत्ति हरी सगरी॥5॥
एकानन चतुरानन, पंचानन राजे।
द्विभुज, चतुर्भुज, दशभुज, सकल रूप साजे॥6॥
ध्यान धरे जब पद का, सकल सिद्धि आवे।
मन दुविधा मिट जावे, अटल शांति पावे॥7॥
श्री विश्वकर्मा जी की आरती, जो कोई नर गावे।
कहत गजानन स्वामी, सुख सम्पत्ति पावे॥8॥
विश्वकर्मा पूजा विधि मंत्र सहित PDF
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विश्वकर्मा के कितने पुत्र थे ?
विश्वकर्मा देव के पांच पुत्र थे, जिनके नाम थे - मनु, मय, त्वष्टा, शिल्पी, और दैवज्ञ।
विश्वकर्मा कौन सा देवता है?
विश्वकर्मा भगवान हिन्दू पौराणिक ग्रंथों में उपस्थित एक प्रमुख देवता है। वे शिल्पकला, उद्योग, और वास्तुकला के प्रतिष्ठित देवता माने जाते हैं।
विश्वकर्मा पूजा की विधि क्या है ?
विश्वकर्मा पूजा की विधि में, विश्वकर्मा देव की मूर्ति को शुद्धि और सामग्री के साथ स्थापित किया जाता है। फिर पूजा के दौरान मन्त्र, आरती, नैवेद्य, और प्रार्थना की जाती है, और शिल्पकला और उद्योग क्षेत्र के कामकाजी लोग उनके आशीर्वाद का प्राप्ति करते हैं।
विश्वकर्मा जी का हवन मंत्र क्या है?
ॐ विश्वकर्मणे नमः स्वाहा । विश्वकर्मा हवन करने के लिए - सम्पूर्ण मंत्र के 108 बार जप के साथ , हवन कुण्ड में अग्नि के सामने घी और लकड़ी की आहुति दें, मंत्र का आहुति के साथ।
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