धैर्य पर संस्कृत श्लोक | Patience Sanskrit shloka

धैर्य पर संस्कृत श्लोक : धैर्य, मानव जीवन का एक महत्वपूर्ण गुण है जो व्यक्ति को कठिनाइयों और चुनौतियों का सामना करने की शक्ति देता है। संस्कृत साहित्य में धैर्य का विशेष महत्व बताया गया है और इसे जीवन की सफलता और आत्म-संतुलन के लिए आवश्यक माना गया है। धैर्य से व्यक्ति न केवल अपने मानसिक संतुलन को बनाए रखता है, बल्कि विपरीत परिस्थितियों में भी अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर रहता है।

संस्कृत शास्त्रों, महाकाव्यों और उपनिषदों में धैर्य पर कई प्रेरणादायक श्लोक मिलते हैं, जो इस गुण की महानता को दर्शाते हैं। ये श्लोक हमें सिखाते हैं कि धैर्यवान व्यक्ति कैसे हर स्थिति में अडिग रहता है, चाहे वह कितनी भी कठिन क्यों न हो। धैर्य का अभ्यास हमें आत्म-नियंत्रण, अनुशासन और मानसिक शांति की ओर ले जाता है।

धैर्य जीवन में संयम और आत्म-नियंत्रण का प्रतीक है, जो हमें कठिन परिस्थितियों में भी स्थिर और मजबूत बनाए रखता है। यह गुण संकट और समस्याओं के समय में शांति और सहनशीलता प्रदान करता है। श्लोक के माध्यम से धैर्य की महत्वता को उजागर किया गया है, जो व्यक्ति को संतुलित और सशक्त बनाता है। इस श्लोक में धैर्य के मूल्य और प्रभाव को विस्तार से समझाया गया है।

धैर्य पर संस्कृत श्लोक | Patience Sanskrit shloka

धैर्य पर संस्कृत श्लोक
धैर्य पर संस्कृत श्लोक

तेजः क्षमा धृतिः शौचमद्रोहो नातिमानिता।
भवन्ति सम्पदं दैवीमभिजातस्य भारत॥

अर्थ:
हे भारत (अर्जुन), जिन व्यक्तियों में तेज (प्रभाव), क्षमा, धैर्य, शुद्धता, वैरभाव न होना और घमंड न होना जैसे गुण होते हैं, वे व्यक्ति दैवी गुणों से संपन्न होते हैं।

व्याख्या:
इस श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि धैर्य और शुद्धता जैसे गुण इंसान को दैवी संपदाओं से संपन्न बनाते हैं। धैर्य का अर्थ यहाँ धृति से है, जो विपरीत परिस्थितियों में मन की स्थिरता को बनाए रखता है। धैर्यवान व्यक्ति कठिन से कठिन कार्यों में भी हार नहीं मानता और संघर्ष करता रहता है। क्षमा, शौच (शुद्धता) और अद्रोह (वैरभाव न रखना) जैसे गुण भी व्यक्ति को सामाजिक और आध्यात्मिक रूप से उन्नत बनाते हैं। एक व्यक्ति जो धैर्य, क्षमा और शुद्धता को अपने जीवन में अपनाता है, वह न केवल आत्मसंतोष प्राप्त करता है, बल्कि समाज में भी सम्मानित होता है।


धृतिः शमो दमः शौचं कारुण्यं वागनिष्ठुरा।
मित्राणाम् चानभिद्रोहः सप्तैताः समिधः श्रियः॥

अर्थ:
धैर्य, मन का संयम, इंद्रियों का नियंत्रण, शुद्धता, दया, मधुर वाणी और मित्रों से द्रोह न करना—ये सात गुण लक्ष्मी को बढ़ाने वाले हैं।

व्याख्या:
इस श्लोक में समृद्धि और स्नेह के लिए सात महत्वपूर्ण गुणों की चर्चा की गई है। पहला गुण धृतिः (धैर्य) है, जो कठिन परिस्थितियों में स्थिरता प्रदान करता है। दूसरा गुण शमो (आत्म-नियंत्रण) है, जो मानसिक संतुलन बनाए रखने में मदद करता है। तीसरा गुण दमः (इन्द्रिय-निग्रह) इन्द्रियों को नियंत्रित करने की सलाह देता है। चौथा गुण शौचं (शुद्धता) शारीरिक और मानसिक स्वच्छता को दर्शाता है। पाँचवाँ गुण कारुण्यं (करुणा) सहानुभूति और दया को बढ़ावा देता है। छठा गुण वागनिष्ठुरा (सच्ची वाणी) सही और मधुर वाक्य बोलने पर जोर देता है। अंततः, मित्राणाम् चानभिद्रोहः (मित्रों के प्रति विश्वास और निन्दा से दूर रहना) सच्ची मित्रता को बनाए रखता है। ये गुण जीवन में शांति, संतुलन और स्नेह को प्रोत्साहित करते हैं।


निन्दन्तु नीतिनिपुणाः यदि वा स्तुवन्तु,
लक्ष्मीः समाविशतु गच्छतु वा यथेष्टम्।
अद्यैव वा मरणमस्तु युगान्तरे वा,
न्याय्यात्पथः प्रविचलन्ति पदं न धीराः॥

अर्थ:
बुद्धिमान लोग चाहे निंदा करें या प्रशंसा, लक्ष्मी (धन) आये या चली जाए, चाहे मृत्यु आज ही हो या युगों बाद—धैर्यवान व्यक्ति कभी भी न्याय के पथ से विचलित नहीं होता।

व्याख्या:
यह श्लोक बताता है कि धैर्यवान व्यक्ति के लिए बाहरी परिस्थितियाँ जैसे निंदा, प्रशंसा, धन की प्राप्ति या हानि, मृत्यु आदि का कोई महत्व नहीं होता। एक धीर पुरुष कभी भी अपने सच्चे और न्यायपूर्ण मार्ग से विचलित नहीं होता, चाहे परिस्थिति कैसी भी हो। धैर्य का यह गुण उसे आत्मिक और मानसिक रूप से स्थिर बनाए रखता है। धैर्य का यह स्तर उसे जीवन में आने वाले हर प्रकार के उतार-चढ़ाव का सामना करने की शक्ति देता है।


धैर्यं सर्वत्र सर्वदा, सर्वदा धैर्यमेव हि।
धैर्येण हि सुखं सर्वं, नास्ति दुःखं कदाचन॥

अर्थ:
धैर्य हर जगह और हर समय महत्वपूर्ण होता है। धैर्य से ही सब सुख प्राप्त होते हैं, और धैर्यवान व्यक्ति को कभी दुःख का सामना नहीं करना पड़ता।

व्याख्या:
यह श्लोक धैर्य की महत्ता को दर्शाता है। धैर्य एक ऐसा गुण है जो हर परिस्थिति में व्यक्ति की मदद करता है। जीवन में आने वाली कठिनाइयाँ और दुख धैर्य के कारण ही आसान हो जाती हैं। धैर्य से व्यक्ति मानसिक स्थिरता और संतोष प्राप्त करता है। धैर्यवान व्यक्ति को कभी भी स्थायी दुःख का सामना नहीं करना पड़ता, क्योंकि वह हर कठिनाई को स्थिरता और समझदारी से हल कर लेता है।


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