Kamada Ekadashi Vrat Katha | कामदा एकादशी व्रत कथा [PDF]

Kamada Ekadashi Vrat Katha: कामदा एकादशी व्रत कथा का पठन और श्रवण करने से व्यक्ति के सभी पापों का नाश होता है और वह जीवन के सभी सुखों को प्राप्त करता है। इस व्रत का पालन करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में सुख, शांति, और समृद्धि आती है। इस व्रत की महिमा ऐसी है कि इसका पालन करने वाला व्यक्ति सांसारिक दुखों और कष्टों से मुक्त हो जाता है।

आइए, अब हम कामदा एकादशी व्रत कथा को विस्तार से जानें, जो हमें धार्मिक, मानसिक, और आध्यात्मिक लाभ प्रदान करती है।

कामदा एकादशी व्रत कथा (Kamada Ekadashi Vrat Katha)

वराह पुराण में भगवान श्रीकृष्ण और महाराज युधिष्ठिर के संवाद में कामदा एकादशी का महात्म्य वर्णित है।

महाराज युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से पूछा, “हे यदुवर, कृपया मेरा प्रणाम स्वीकार करें और चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का वर्णन करें। इस व्रत की विधि और पालन करने से होने वाले लाभ को भी बताएं।”

भगवान श्रीकृष्ण ने कहा, “प्रिय युधिष्ठिर महाराज! पुराणों में वर्णित एकादशी का महात्म्य सुनो। एक बार प्रभु रामचंद्र के पितामह महाराज दिलीप ने अपने गुरु वसिष्ठ से यही प्रश्न पूछा था।”

Kamada Ekadashi Vrat Katha

वसिष्ठजी ने उत्तर दिया, “हे राजन! निश्चित ही आपकी इच्छा पूरी करूंगा। इस एकादशी को ‘कामदा’ कहते हैं। इस व्रत के पालन से सभी पाप जलकर भस्म हो जाते हैं और व्रत करने वाले को पुत्र प्राप्ति होती है।”

बहुत वर्षों पहले रत्नपुर (भोगीपुर) राज्य में पुण्डरीक राजा अपनी प्रजा, गंधर्वों और किन्नरों के साथ रहते थे। इस राज्य में अप्सरा ललिता अपने गंधर्व पति ललित के साथ निवास करती थी। उनका प्रेम इतना गहरा था कि वे एक क्षण भी एक-दूसरे के बिना नहीं रह सकते थे। एक बार पुण्डरीक राजा की सभा में सब गंधर्व नृत्य और गायन कर रहे थे, जिसमें ललित गंधर्व भी शामिल था। ललित की पत्नी सभा में नहीं होने के कारण उसका नृत्य और गायन ताल में नहीं था। वहाँ उपस्थित कर्कोटक नामक सर्प ने ललित के विसंगत नृत्य और गायन का रहस्य जाना और राजा को बताया। राजा बहुत क्रोधित हुए और ललित को शाप दिया, “हे पापात्मा! अपनी स्त्री-पति कामासक्ति के कारण तुमने नृत्य सभा में विसंगति उत्पन्न की है। इसलिए मैं तुम्हें नरभक्षक बनने का शाप देता हूँ!”

पुण्डरीक से शाप प्राप्त होते ही ललित को भयंकर नरभक्षक राक्षस का रूप मिला। अपने पति के भयानक रूप को देखकर ललिता को बहुत दुख हुआ, लेकिन उसने सभी मर्यादाएं छोड़कर अपने पति के साथ वन में रहने का निर्णय लिया। वन में भ्रमण करते हुए ललिता ने विंध्य पर्वत पर स्थित पवित्र शृंगी ऋषि का आश्रम देखा और वहां जाकर ऋषि के सामने प्रणाम किया।

शृंगी ऋषि ने पूछा, “तुम कौन हो? तुम्हारे पिता कौन हैं? तुम यहाँ किस कारण से आई हो?”

ललिता ने कहा, “हे ऋषीवर! मैं ललिता, वृंदावन गंधर्व की कन्या हूँ। अपने शापित पति के साथ मैं यहाँ आई हूँ। गंधर्व राजा पुण्डरीक के शाप से मेरे पति राक्षस बन गए हैं। उनका यह रूप देखकर मुझे बहुत दुख हो रहा है। कृपया इस शाप से मुक्ति का उपाय बताएं ताकि मेरे पति राक्षसी योनी से मुक्त हो सकें।”

ललिता की विनती सुनकर शृंगी ऋषि ने कहा, “हे गंधर्वकन्या! कुछ ही दिनों में चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की कामदा एकादशी आएगी। इस व्रत का कठोर पालन करो और तुम्हें मिलने वाले सभी पुण्य अपने पति को अर्पण करो। इससे वह शाप से मुक्त हो जाएंगे। यह एकादशी सभी इच्छाएं पूरी करने वाली है।”

ललिता ने ऋषि के कहे अनुसार आनंदपूर्वक और कठोरता से इस व्रत का पालन किया। द्वादशी के दिन भगवान वासुदेव और ब्राह्मणों के समक्ष उसने कहा, “मैंने अपने पति की शापमुक्ति के लिए यह व्रत किया है। कृपया इसके प्रभाव से मेरे पति शापमुक्त हो जाएं।” इसके बाद नरभक्षक ललित पुनः गंधर्व बना। ललिता और ललित सुखपूर्वक रहने लगे।

भगवान श्रीकृष्ण ने कहा, “हे युधिष्ठिर महाराज! जो कोई भी इस अद्भुत कथा को सुनेगा और अपनी क्षमता के अनुसार इसका पालन करेगा, वह ब्रह्महत्या के पाप और आसुरी शाप से मुक्त हो जाएगा।”

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