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"श्लोक" एक ऐसी कविता रचना है जो दो पंक्तियों से मिलकर बनती है और जिसमें किसी विषय का विवेचन या कथानक किया जाता है। इन पंक्तियों को प्रायः छंद के रूप में लिखा जाता है, इसमें गति, यति, और लय का सही संयोजन होता है, जिससे यह एक आकर्षक और आसानी से सुनी जाने वाली कविता बनता है। प्राचीनकाल में ज्ञान को लिपिबद्ध करने की प्रथा के कारण इस प्रकार की कविताएं लोकप्रिय थीं। "श्लोक" का पुराना नाम "अनुष्टुप छंद" भी है,आजकल संस्कृत का कोई छंद या पद्य 'श्लोक' कहलाता है।
मंत्र वह ध्वनि है जो अक्षरों और शब्दों के समूह से उत्पन्न होती है, जो ब्रह्माण्ड की सार्वभौमिक ऊर्जा के साथ संगत है, जिसमें दो प्रकार की ऊर्जा होती है - नाद (शब्द) और प्रकाश। आध्यात्मिक दृष्टिकोण से, इनमें से शब्द कोई भी एक प्रकार की ऊर्जा दूसरे के बिना सक्रिय नहीं होती। मंत्र सिर्फ ध्वनियों का संग्रह नहीं है जो कानों से सुना जा सकता है, बल्कि यह मंत्रों का आध्यात्मिक स्वरूप भी है। ध्यान की उच्चतम अवस्था में, साधक पूरी तरह से परमेश्वर के साथ एक हो जाता है, जो अन्तर्यामी है। सर्वज्ञानी शब्द-ब्रह्म से साधक अपनी मनचाही ज्ञान प्राप्त कर सकता है।
"सूक्तं" एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है 'सुंदर वचन' या 'मंगलमय शब्द'। वेदों में, सूक्तं एक विशेष प्रकार का वेदीय मंत्र है जो देवता की स्तुति या महिमा को समर्पित होता है। सूक्तं का उद्दीपन किसी विशेष देवता या ब्रह्मांडिक सत्य की प्रशंसा करने में किया जाता है। इसमें विशेष गुण, विशेषताएं, और आभूषणों का उल्लेख किया जाता है। प्रमुख सूक्तम में पुरुष सूक्तं, विष्णु सूक्तं, श्री सूक्तं, और रुद्र सूक्तं शामिल हैं।
"सूक्तम या सूक्तं" एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है 'सुंदर वचन' या 'मंगलमय शब्द'। वेदों में, सूक्तम एक विशेष प्रकार का वेदीय मंत्र है जो देवता की स्तुति या महिमा को समर्पित होता है। सूक्तम का उद्दीपन किसी विशेष देवता या ब्रह्मांडिक सत्य की प्रशंसा करने में किया जाता है। इसमें विशेष गुण, विशेषताएं, और आभूषणों का उल्लेख किया जाता है। प्रमुख सूक्तम में पुरुष सूक्तं, विष्णु सूक्तं, श्री सूक्तं, और रुद्र सूक्तं शामिल हैं।
चालीसा एक धार्मिक साहित्य रूप है जिसमें देवी या देवता की महिमा, गुण, और कृपा का वर्णन होता है। चालीसा में चार छंद होते हैं, अर्थात 40 चौपाइयां होती हैं, इसलिए इसे चालीसा कहा जाता है। जैसे हनुमान चालीसा,शिव चालीसा,दुर्गा चालीसा
उपनिषद वास्तव में वेद का ही एक अंग है। वेदों में जो ज्ञान कांड है, उसे ही उपनिषद कहा जाता है। हर वेद की उपनिषदें होती हैं। इसमें गहनतम तत्व चिंतन है, जो मानवमात्र के लिए कल्याणप्रद है।
अष्टोत्तर शतनामावली एक धार्मिक पाठ है जिसमें दिव्य नामों की सूची होती है, अनुष्ठान या पूजा के समय उपयोग के लिए। इसमें देवी या देवता के 108 विशेष नामों का जाप किया जाता है।
"सहस्रनाम" शब्द संस्कृत में है और इसका अर्थ है "हजार नाम"। सहस्रनामा एक प्रकार का पठन है जिसमें दिव्य नामों की सूची होती है, जिन्हें भगवान की स्तुति और भक्ति के लिए उच्चारण किया जाता है। इसमें सामान्यत: 1000 या उससे अधिक नाम होते हैं।
सूत्र एक संक्षेपत्मक वाक्यांश है जो किसी महत्वपूर्ण विषय को अत्यंत संक्षेप में व्यक्त करने का प्रयास करता है। ब्रह्म सूत्र (या वेदांत सूत्र), जिस में 555 सूत्र होते हैं जो उपनिषदों में दार्शनिक और आध्यात्मिक विचारों का संक्षेप करते हैं। पतंजलि द्वारा संकलित योग सूत्र में, जिसमें आठांगिक योग और ध्यान जैसी चीजें शामिल हैं, 196 सूत्र होते हैं।
संस्कृत साहित्य में, किसी देवी-देवता की स्तुति में लिखे गए काव्य को "स्तोत्र" कहा जाता है (स्तूयते अनेन इति स्तोत्रम्)। इस साहित्यिक परंपरा में, यह स्तोत्रकाव्य किसी भगवान या देवी-देवता की महिमा, गुण, और कृपा को व्यक्त करने के लिए उपयोग होता है और इसका मुख्य उद्देश्य उनकी पूजा और भक्ति में लोगों को प्रेरित करना है।