सत्संगति पर संस्कृत श्लोक | Satsangati Shlokas in Sanskrit

सत्संगति (अच्छे लोगों की संगति) का हमारे जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है। यह जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाती है और हमें सन्मार्ग की ओर अग्रसर करती है। सत्संगति का प्रभाव हमारे चरित्र, विचार और व्यवहार पर पड़ता है। अच्छे व्यक्तियों की संगति से हमें ज्ञान, सदाचार, और जीवन के मूल्यों की समझ प्राप्त होती है। संस्कृत साहित्य में सत्संगति के महत्त्व को लेकर कई श्लोक मिलते हैं। यहाँ कुछ प्रमुख श्लोक दिए गए हैं जो सत्संगति के प्रभाव और महत्ता को दर्शाते हैं:

सत्संगति पर संस्कृत श्लोक | Satsangati Shlokas in Sanskrit

असज्जनः सज्जनसंगि संगात्
करोति दुःसाध्यमपीह साध्यम् ।
पुष्याश्रयात् शम्भुशिरोधिरूठा
पिपीलिका चुम्बति चन्द्रबिम्बम् ॥

अर्थ:
सज्जन के संग से असज्जन व्यक्ति भी कठिन से कठिन कार्य को साध्य बना देता है। जैसे पुष्प के सहारे शंकर के मस्तक पर पहुंची चींटी चंद्रमा के बिंब का चुंबन करती है।


जाड्यं धियो हरति वाचि सत्यं
मानोन्नति दिशति पापमपाकरोति।
चेतःप्रसादयति दिक्षु तनोति कीर्तिंं
सत्संगति कथम् किं न करोति पुंसाम्॥

अर्थ:

यह श्लोक सत्संगति की महिमा को दर्शाता है। इसका अर्थ है कि सत्संगति (अच्छे लोगों का साथ) हमारी बुद्धि के जड़त्व (मूढ़ता) को दूर करती है। यह हमें सत्य बोलने की प्रेरणा देती है और हमारे सम्मान को बढ़ाती है। सत्संगति से पाप दूर होते हैं, मन प्रसन्न होता है, और व्यक्ति की ख्याति सभी दिशाओं में फैलती है।


गंगेवाधविनाशिनो जनमनः सन्तोषसच्चन्द्रिका
तीक्ष्णांशोरपि सत्प्रभेव जगदज्ञानान्धकारावहा ।
छायेवाखिलतापनाशनकारी स्वर्धेनुवत् कामदा
पुण्यैरेव हि लभ्यते सुकृतिभिः सत्संगति र्दुर्लभा ॥

अर्थ:
सत्संगति गंगा की तरह पापों का नाश करने वाली है, चंद्रमा की किरणों की तरह शीतल है, सूर्य के तीव्र प्रकाश की तरह अज्ञान के अंधकार को दूर करने वाली है, छाया की तरह सारे ताप को हरने वाली है, और कामधेनु की तरह सभी इच्छाओं को पूर्ण करने वाली है। ऐसी सत्संगति बड़े पुण्य से ही प्राप्त होती है, और यह दुर्लभ होती है।


सन्तप्तायसि संस्थितस्य पयसः नामापि न श्रूयते
मुक्ताकारतया तदेव नलिनीपत्रस्थितं राजते।
स्वात्यां सागरशुक्ति संपुट्गतं तन्मौक्तिकं जायते
प्रायेणाधममध्यमोत्तम गुणाः संसर्गतो देहिनाम्॥

अर्थ:
जब तप्त लोहे पर पानी गिरता है, तो उसका कोई प्रभाव नहीं होता, परंतु वही पानी कमल के पत्ते पर पड़कर मोती के समान प्रतीत होता है। स्वाति नक्षत्र के दौरान वह पानी जब सीपी के भीतर प्रवेश करता है, तो वह मोती बन जाता है। इसी प्रकार, व्यक्ति के गुण भी संगति पर निर्भर करते हैं, जिससे वह अधम, मध्यम या उत्तम बनता है।


कीर्तिनृत्यति नर्तकीव भुवने विद्योतते साधुता
ज्योत्स्नेव प्रतिभा सभासु सरसा गंगेव संमीलति।
चित्तं रज्जयति प्रियेव सततं संपत् प्रसादोचिता
संगत्या न भवेत् सतां किल भवेत् किं किं न लोकोत्तरम्॥

अर्थ:
सज्जनों के संग से कीर्ति एक नर्तकी की तरह दुनिया में नृत्य करती है। साधुता विद्यमान रहती है और सभा में चंद्र की ज्योत्स्ना के समान प्रतिभा का उदय होता है। सत्संग हमारे मन को प्रिय के समान प्रिय लगता है और इससे सम्पत्ति तथा सौभाग्य प्राप्त होता है। सज्जनों का संग न हो तो क्या कोई लोकोत्तर कार्य संभव है?


सत्संगाद्ववति हि साधुता खलानाम्सा धूनां न हि खलसंगात्खलत्वम्।
आमोदं कुसुमभवं मृदेव धत्ते मृद्रंधं न हि कुसुमानि धारयन्ति॥

अर्थ:
सत्संग से दुष्ट लोग भी सदाचारी बन जाते हैं, परंतु सज्जनों पर कुसंग का प्रभाव नहीं पड़ता। जैसे फूल की सुगंध मिट्टी में समा जाती है, परंतु मिट्टी की गंध फूल में नहीं समाती। इसी प्रकार, सत्संग से दुष्ट भी सज्जन बन सकते हैं, लेकिन सज्जनों पर कुसंग का प्रभाव नहीं पड़ता।


कल्पद्रुमः कल्पितमेव सूते सा कामधुक कामितमेव दोग्धि।
चिन्तामणिश्र्चिन्तितमेव दत्ते सतां हि संगः सकलं प्रसूते॥

अर्थ:
कल्पवृक्ष वही प्रदान करता है जिसकी कल्पना की गई हो, कामधेनु इच्छित वस्तु ही देती है, और चिंतामणि उसी वस्तु को देता है जिसका चिंतन किया गया हो। परंतु सत्संग सब कुछ प्रदान करता है, क्योंकि सज्जनों का संग हर प्रकार की संपदा को उत्पन्न करता है।


संगः सर्वात्मना त्याज्यः स चेत्कर्तुं न शक्यते
स सिद्धिः सह कर्तव्यः सन्तः संगस्य भेषजम्॥

अर्थ:
कुसंगति का सर्वदा त्याग करना चाहिए, और यदि इसे छोड़ना संभव न हो, तो सज्जनों का संग अवश्य करना चाहिए, क्योंकि सत्संग सभी प्रकार के कष्टों का औषधि है।


कीटोऽपि सुमनःसंगादारोहति सतां शिरः
अश्मापि याति देवत्वं महद्भिः सुप्रतिष्ठितः॥

अर्थ:
फूलों के संग से एक साधारण कीड़ा भी सज्जनों के मस्तक पर चढ़ जाता है, और एक साधारण पत्थर भी बड़ों के हाथों में आकर देवत्व प्राप्त कर लेता है। यह सत्संग का ही प्रभाव है।


असतां संगपंकेन यन्मनो मलिनीक्र्तम्
तन्मेऽद्य निर्मलीभूतं साधुसंबंधवारिणा॥

अर्थ:
कुसंगति के कीचड़ से जो मेरा मन मलिन हो गया था, वह आज सत्संग के जल से निर्मल हो गया है। सज्जनों का संग मन को पवित्र और स्वच्छ कर देता है।


दूरीकरोति कुमतिं विमलीकरोति चेतश्र्चिरंतनमधं चुलुकीकरोति।
भूतेषु किं च करुणां बहुलीकरोति संगः सतां किमु न मंगलमातनोति॥

अर्थ:
सत्संग बुरे विचारों को दूर करता है, मन को निर्मल बनाता है, और पुराने पापों को समाप्त कर देता है। सत्संग करुणा का विस्तार करता है और व्यक्ति के जीवन में हर प्रकार का मंगल लेकर आता है।


पश्य सत्संगमाहात्म्यं स्पर्शपाषाणयोदतः
लोहं च जायते स्वर्णं योगात् काचो मणीयते॥

अर्थ:
देखो सत्संग का महत्व! जैसे पारस पत्थर के स्पर्श से लोहे का सोना बन जाता है, वैसे ही सज्जनों के संग से साधारण मनुष्य भी मणि के समान अमूल्य हो जाता है।


नलिनीदलगतजलवत्तरलं तद्वज्जीवनमतिशयचपलम्।
क्षणमपि सज्जनसंगतिरेका भवति भवार्णवतरणे नौका॥

अर्थ:
जैसे कमल के पत्ते पर पड़ा जल अस्थिर और चंचल होता है, वैसे ही यह जीवन भी अस्थिर है। लेकिन एक क्षण का भी सत्संग भवसागर को पार करने के लिए नौका के समान सहारा देता है।


मोक्षद्वारप्रतीहाराश्र्चत्वारः परिकीर्तिताः
शमो विवेकः सन्तोषः चतुर्थः साधुसंगमः॥

अर्थ:
चार गुण मोक्ष के द्वार पर पहरेदार की तरह खड़े होते हैं: शांति, विवेक, संतोष, और सत्संग। ये गुण हमें मोक्ष की ओर ले जाते हैं।


सन्तोषः साधुसंगश्र्च विचारोध शमस्तथा
एत एव भवाम्भोधावुपायास्तरणे नृणाम्॥

अर्थ:
संतोष, सत्संगति, विचारशीलता, और शांति – यही चार उपाय हैं जो मनुष्य को संसार सागर से पार उतारने में सहायक होते हैं।


सत्संगति का महत्त्व:

सत्संगति का जीवन में असीमित महत्व है। अच्छे लोगों का संग व्यक्ति को सही मार्ग दिखाने में सहायक होता है। सज्जनों का साथ न केवल जीवन की कठिनाइयों को सरल बनाता है, बल्कि मन और आत्मा को भी शुद्ध करता है। जैसे पहली श्लोक में बताया गया है, असज्जन व्यक्ति भी सज्जनों की संगति में रहकर महान कार्य कर सकता है। यह हमें बताता है कि सत्संगति किसी भी व्यक्ति के जीवन को कैसे बदल सकती है और उसे नई ऊंचाइयों तक ले जा सकती है।

निष्कर्ष:

सत्संगति का प्रभाव व्यक्ति के जीवन में असीमित होता है। सज्जनों की संगति व्यक्ति के विचारों, आचरण और जीवन शैली को सकारात्मक दिशा में मोड़ देती है। इसके माध्यम से व्यक्ति आत्मिक और मानसिक रूप से प्रगति करता है। जीवन में सत्संगति प्राप्त करना अत्यंत दुर्लभ है, और इसे प्राप्त करने के लिए पुण्य और अच्छे कर्मों की आवश्यकता होती है। अतः हमें सदा सत्संगति की तलाश करनी चाहिए, क्योंकि यह जीवन को सही दिशा प्रदान करती है और हमें हर परिस्थिति में सन्मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करती है।

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