लिङ्गाष्टकं (Lingashtakam) स्तोत्रम् : ब्रह्मा मुरारी सुरार्चिता लिंगम लिरिक्स

ब्रह्मा मुरारी सुरार्चिता लिंगम” एक प्रसिद्ध भक्तिगीत है जो भगवान शिव की स्तुति करता है और लिङ्गाष्टकं के माध्यम से उनकी महिमा को गाता है। यह गीत शिव लिंग पूजा के महत्व को स्तुति करता है, जिसमें भक्तों को उसकी दिव्यता का अनुभव होता है और उन्हें मिलने वाले लाभों का महत्व बताता है।

लिंगाष्टकम के दिव्य श्लोकों में भक्ति का महत्व और शिव पंचाक्षर स्तोत्र की तुलना में उत्कृष्टता है। इस भक्तिगीत में भगवान शिव के मूर्तिरूप की बजाय उनके लिंगरूप की महिमा का वर्णन किया गया है।

यह भक्तिगीत न केवल शिव लिंग पूजा की महिमा को मनाता है, बल्कि भक्तों को उसके ध्यान में लगाने से मिलने वाले आध्यात्मिक और सांसारिक लाभों के बारे में भी बताता है।

इस पवित्र गीत को शांत और आत्मिकता से भरे माहौल में तीन बार पढ़ने की सिफारिश की जाती है ताकि भक्त शांति और भगवानी से जुड़ा महसूस कर सकें।

Lingashtakam ( लिङ्गाष्टकं स्तोत्रम् ) Lyrics In Hindi

लिङ्गाष्टकं- Lingashtakam lyrics in hindi with meaning

ब्रह्मा मुरारी सुरार्चिता लिंगम लिरिक्स

ब्रह्ममुरारिसुरार्चितलिङ्गं निर्मलभासितशोभितलिङ्गम् ।
जन्मजदुःखविनाशकलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥१॥

देवमुनिप्रवरार्चितलिङ्गं कामदहं करुणाकरलिङ्गम् ।
रावणदर्पविनाशनलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥२॥

सर्वसुगन्धिसुलेपितलिङ्गं बुद्धिविवर्धनकारणलिङ्गम् ।
सिद्धसुरासुरवन्दितलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥३॥

कनकमहामणिभूषितलिङ्गं फणिपतिवेष्टितशोभितलिङ्गम् ।
दक्षसुयज्ञविनाशनलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥४॥

कुङ्कुमचन्दनलेपितलिङ्गं पङ्कजहारसुशोभितलिङ्गम् ।
सञ्चितपापविनाशनलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥५॥

देवगणार्चितसेवितलिङ्गं भावैर्भक्तिभिरेव च लिङ्गम् ।
दिनकरकोटिप्रभाकरलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥६॥

अष्टदलोपरिवेष्टितलिङ्गं सर्वसमुद्भवकारणलिङ्गम् ।
अष्टदरिद्रविनाशितलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥७॥

सुरगुरुसुरवरपूजितलिङ्गं सुरवनपुष्पसदार्चितलिङ्गम् ।
परात्परं परमात्मकलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥८॥

लिङ्गाष्टकमिदं पुण्यं यः पठेत् शिवसन्निधौ।
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते॥

।। इति लिंगाष्टकम स्तोत्र सम्पूर्णम्।।

Lingashtakam lyrics in hindi with meaning । श्री लिङ्गाष्टकं स्तोत्रम् – के हिंदी अर्थ

ब्रह्ममुरारि सुरार्चित लिङ्गं, निर्मलभासित शोभित लिङ्गम्।
जन्मजदुःख विनाशक लिङ्ग, तत्प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम्।॥1॥

इस श्लोक का अर्थ है:
“ब्रह्मा, मुरारी, सुरों द्वारा पूजित लिङ्ग, जो निर्मल आलोकित और शोभायमान है।
जन्म और जन्म के दुःख को नष्ट करने वाला लिङ्ग, उस सदाशिव लिङ्ग को मैं प्रणाम करता हूँ।”

“देवमुनिप्रवरार्चित लिङ्गं, कामदहं करुणाकर लिङ्गम्।
रावणदर्प विनाशन लिङ्गं, तत्प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम्।॥2॥”

इस श्लोक का अर्थ है:
“देवों और महर्षियों द्वारा पूजित लिङ्ग, कामदेव को नष्ट करने वाला और दयालु लिङ्ग।
रावण के अहंकार का नाश करने वाला लिङ्ग, उस सदाशिव लिङ्ग को मैं प्रणाम करता हूँ।”

“सर्वसुगन्धि सुलेपित लिङ्गं, बुद्धि विवर्धन कारण लिङ्गम्।
सिद्ध सुरासुर वन्दित लिङ्गं, तत्प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम्।॥3॥”

इस श्लोक का अर्थ है:
“सभी सुगंधित और सुलेपित लिङ्ग, बुद्धि को विकसित करने वाला कारण लिङ्ग।
सिद्ध, सुर, और असुरों द्वारा पूजित लिङ्ग, उस सदाशिव लिङ्ग को मैं प्रणाम करता हूँ।”

“कनक महामणि भूषित लिङ्गं, फणि पति वेष्टित शोभित लिङ्गम्।
दक्ष सुयज्ञ विनाशन लिङ्ग, तत्प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम्।॥4॥”

इस श्लोक का अर्थ है:
“सोने और महामणि से सजे हुए लिङ्ग, फणिपति के वेष में शोभित लिङ्ग।
दक्ष यज्ञ के विनाशक लिङ्ग, उस सदाशिव लिङ्ग को मैं प्रणाम करता हूँ।”

“कुंकुम चन्दन लेपित लिङ्गं, पंकज हार सुशोभित लिङ्गम्।
संचित पाप विनाशन लिङ्गं, तत्प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम्।॥5॥”

इस श्लोक का अर्थ है:
“कुंकुम और चन्दन से लेपित लिङ्ग, पंकज की माला से सजीवित लिङ्ग।
संचित पापों का नाश करने वाला लिङ्ग, उस सदाशिव लिङ्ग को मैं प्रणाम करता हूँ।”

“देवगण आर्चित सेवित लिङ्गं, भावैर्भक्तिभिरेव च लिङ्गम्।
दिनकरकोटि प्रभाकर लिङ्गं, तत्प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम्।॥6॥”

इस श्लोक का अर्थ है:
“देवताओं द्वारा पूजित और सेवित लिङ्ग, भक्तों की भावनाओं से ही भरा हुआ लिङ्ग।
सूर्य के करोड़ों प्रकाशमय लिङ्ग, उस सदाशिव लिङ्ग को मैं प्रणाम करता हूँ।”

अष्टदलोपरि वेष्टित लिङ्गं, सर्व समुद्भव कारण लिङ्गम्।
अष्टदरिद्र विनाशित लिङ्गं, तत्प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम्।॥7॥

इस श्लोक का अर्थ है:
“अष्टदलों से आवृत लिङ्ग, सभी समुद्रों के कारण लिङ्ग।
अष्टदरिद्र का नाश करने वाला लिङ्ग, उस सदाशिव लिङ्ग को मैं प्रणाम करता हूँ।”

सुरगुरु सुरवर पूजित लिङ्गं, सुरवन पुष्प सदार्चित लिङ्गम्।
परात्परं परमात्मक लिङ्गं, तत्प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम्।॥8॥

इस श्लोक का अर्थ है:
“देवता गुरुओं और सबसे श्रेष्ठ द्वारा पूजित लिङ्ग, सुरवन के पुष्पों से सदा आराधित लिङ्ग।
सबसे ऊँचा और परम परमात्मा रूपी लिङ्ग, उस सदाशिव लिङ्ग को मैं प्रणाम करता हूँ।”

लिङ्गाष्टकं इदं पुण्यं यः पठेत् शिवसन्निधौ।
शिवलोकं अवाप्नोति शिवेन सह मोदते॥9॥

इस श्लोक का अर्थ है:
“जो भक्त शिव के समीप इस पुण्य लिंगाष्टक का पाठ करता है,
वह शिवलोक को प्राप्त होता है और शिव के साथ आनंदित होता है॥9॥”

।। इति लिंगाष्टकम स्तोत्र सम्पूर्णम्।।

इस रीति से लिंगाष्टक स्तोत्र पूरा होता है।।

श्री शिव लिङ्गाष्टकं स्तोत्रम् पाठ विधि:

श्री लिंगाष्टकम स्तोत्र का विधिपूर्वक जाप करने से साधक को विशेष लाभ प्राप्त होता है। प्रात: काल, सबसे पहले स्नान आदि करके शिवलिंग का दूध और जल से अभिषेक करें। इसके बाद, भगवान शिव की विधिपूर्वक पूजा करें। अंत में, शिवलिंग के समीप बैठकर श्री लिंगाष्टकम स्तोत्र तीन (3) बार का जाप करें।

लिङ्गाष्टकं स्तोत्रम् के लाभ

श्री लिंगाष्टकम स्तोत्र का पाठ करने से उस व्यक्ति को शिवलोक की प्राप्ति होती है जो इसे भगवान शिव की प्रतिमा या शिवलिंग के समीप श्रद्धा भाव से करता है। भगवान भोलेनाथ उस व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।

Shiv Lingashtakam Lyrics In Hindi Pdf


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