श्री सूक्त 16 मंत्र हिंदी में । Shree suktam 16 Mantras in Hindi

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श्री सूक्त 16 मंत्र हिंदी में । Shree suktam 16 Mantras in Hindi

सभी लोग, चाहे वे राजा हों या रंक, अपने घर में माँ लक्ष्मी का आगमन चाहते हैं। लक्ष्मी माता को प्रसन्न करने के लिए लोग उनकी आरती, चालीसा, और मंत्रों का जाप करते हैं। सनातन धर्म के प्रमुख वेद, ऋग्वेद में ‘श्री सूक्त’ मंत्र का उल्लेख है। ऋग्वेद के अनुसार, जो भी व्यक्ति श्री सूक्त 16 मंत्र (मंत्रों) का जाप करता है, उसकी इच्छाएं जल्दी ही माँ लक्ष्मी की कृपा से पूरी होती हैं।

श्री सूक्त में पंद्रह (15) ऋचाएं हैं, जिन्हें माहात्म्य सहित सोलह(16) ऋचाएं मानी जाती हैं। किसी भी स्तोत्र का माहात्म्य बिना पाठ किए जाने पर फल प्राप्ति नहीं होती।

श्री सूक्त के मंत्रों का जाप करने वाले व्यक्ति का भाग्य सौभाग्य से भर जाता है और उनकी जीवन में समृद्धि आती है। यहाँ हम आपको श्री सूक्त के 16 मंत्र के बारे में थोड़ी जानकारी दे रहे हैं। इन मंत्रों का नियमित जाप करने से जल्दी ही माँ लक्ष्मी की कृपा आप पर बरसेगी।

श्री सूक्त 16 मंत्र । Shree suktam 16 Mantras

ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम् ।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह ॥1॥

तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् ।
यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम् ॥2॥

अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनादप्रबोधिनीम् ।
श्रियं देवीमुपह्वये श्रीर्मा देवी जुषताम् ॥3॥

कां सोस्मितां हिरण्यप्राकारामार्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम् ।
पद्मे स्थितां पद्मवर्णां तामिहोपह्वये श्रियम् ॥4॥

प्रभासां यशसा लोके देवजुष्टामुदाराम् ।
पद्मिनीमीं शरणमहं प्रपद्येऽलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे ॥5॥

आदित्यवर्णे तपसोऽधिजातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथ बिल्वः ।
तस्य फलानि तपसानुदन्तु मायान्तरायाश्च बाह्या अलक्ष्मीः ॥6॥

उपैतु मां देवसखः कीर्तिश्च मणिना सह ।
प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेऽस्मिन् कीर्तिमृद्धिं ददातु मे ॥7॥

क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मीं नाशयाम्यहम् ।
अभूतिमसमृद्धिं च सर्वां निर्णुद गृहात् ॥8॥

गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम् ।
ईश्वरींग् सर्वभूतानां तामिहोपह्वये श्रियम् ॥9॥

मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि ।
पशूनां रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः ॥10॥

कर्दमेन प्रजाभूता सम्भव कर्दम ।
श्रियं वासय मे कुले मातरं पद्ममालिनीम् ॥11॥

आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस गृहे ।
नि च देवी मातरं श्रियं वासय कुले ॥12॥

आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं पिङ्गलां पद्ममालिनीम् ।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह ॥13॥

आर्द्रां यः करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम् ।
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह ॥14॥

तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् ।
यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वान् विन्देयं पूरुषानहम् ॥15॥

यः शुचिः प्रयतो भूत्वा जुहुयादाज्यमन्वहम् ।
सूक्तं पञ्चदशर्चं च श्रीकामः सततं जपेत् ॥16॥

श्री सूक्त के 16 मंत्र अर्थ सहित

ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्ण रजतस्रजां |
चंद्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह ||1||

अर्थ: हे जातवेदों के आदि देवता, तुम मुझे वह लक्ष्मी प्रदान करो, जो स्वर्ण और रजत से सुसज्जित है, हिरणी की तरह गतिशील, सोने और चांदी की माला धारण करने वाली, और चंद्रमा की तरह चमकदार।

ॐ तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम |
यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहं ||2||

अर्थ: हे जातवेदों के आदि देवता, तुम मुझे उस लक्ष्मी को प्रदान करो, जिससे मैं सोना, गाय, घोड़ा, और मनुष्यों को प्राप्त करूं।

ॐ अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनाद प्रबोधिनीम |
श्रियं देवी मुपह्वये श्रीर्मा देवी जुषतां ||3||

अर्थ: हे देवी, जो रथ को हाथी की आगे और घोड़े के बीच में प्रेरित करती हैं, मैं उन लक्ष्मीजी का आह्वान करता हूँ जो मेरे ऊपर सदा कृपा करें।

ॐ कांसोस्मितां हिरण्यप्राकारामार्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीं |
पद्मेस्थितां पद्मवर्णां तामिहोपह्वये श्रियं ||4||

अर्थ: हे लक्ष्मीजी, जो हंसों की तरह मुस्कान बिखेरने वाली, सोने के बादल की तरह चमकदार, सदा संतुष्ट और भक्तों को संतुष्ट रखने वाली, जो कमल पर बैठी हुई हैं, मैं उन्हें अपने घर बुलाता हूं।

ॐ चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम |
तां पद्मिनीमीं शरणमहं प्रपद्ये अलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वं वृणे ||5||

अर्थ: हे लक्ष्मीजी, जो चंद्रमा की तरह प्रकाशमान, सम्मानित, समृद्ध, देवताओं के आदर्श, जो कमल की तरह सुंदर हैं, मैं उनकी शरण में आता हूँ। हे अलक्ष्मी, तुम मेरे घर से दूर हो जाओ, मैं तुम्हें नहीं चाहता।

ॐ आदित्यवर्णे तपसोधिजातो वनस्पतिस्तव वृक्षोथ बिल्वः |
तस्य फलानि तपसा नुदन्तु मायान्तरायाश्च बाह्या अलक्ष्मीः ||6||

अर्थ: हे लक्ष्मीजी, जो सूर्य की तरह तेजस्वी हैं, जो तपस

्या से उत्पन्न हुई हैं, जो पृथ्वी के वृक्षों की तरह हैं, मैं उनकी प्रार्थना करता हूं कि वे मुझे आत्मा की और बाह्य दरिद्रता की रक्षा करें।

ॐ उपैतु मां देवसखः कीर्तिश्च मणिना सह |
प्रादुर्भूतो सुराष्ट्रेस्मिन कीर्तिमृद्धिं ददातु में ||7||

अर्थ: हे माँ लक्ष्मी, महादेव के सखा कुबेर के साथ मुझे धन, सम्मान, और यश प्रदान करो। मुझे जो इस राष्ट्र में जन्मा है, उसमें वे मुझे व्याप्त लक्ष्मी की वृद्धि करें।

ॐ क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठांलक्ष्मीं नाशयाम्यहं |
अभूतिमसमृद्धिं च सर्वां निर्णुद में गृहात ||8||

अर्थ: मैं उस लक्ष्मी को प्राप्त करूँगा जो धन-संपत्ति के बादल की तरह उत्पन्न हो, मैं अपने कमजोर शरीर को उद्योगों से नष्ट करूँगा, और घर में अभाव और दरिद्रता को दूर करूँगा।

ॐ गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करिषिणीम |
ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोपह्वये श्रियं ||9||

अर्थ: हे अग्निनारायण देव, जो सदा संतोषजनक, पुष्टि दायिनी, सर्व भूतों की ईश्वरी हैं, तुम मुझे उनकी आराधना करने की शक्ति दो।

ॐ मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि |
पशूनां रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः ||10||

अर्थ: हे माँ लक्ष्मीजी, आपकी कृपा से मैं खुशी, शुभ संकल्प, और प्रमाणिकता प्राप्त करूं। आपकी कृपा से मैं गौ मिलती जैसे पशुओं को भोजन और सभी प्रकार की संपत्ति प्राप्त करूं।

ॐ कर्दमेन प्रजाभूता मयि संभव कर्दम |
श्रियं वासय में कुले मातरं पद्ममालिनीं ||11||

अर्थ: लक्ष्मी देवी कर्दम नामक पुत्र से आप युक्त हो, हे लक्ष्मी पुत्र कर्दम, आप मेरे घर में खुशी से रहों। कमल की माला धारण करनेवाली आपकी माता श्री लक्ष्मी, मेरे घर में स्थिर रहों। लक्ष्मी जो अपने पुत्र से प्यार करती हैं, वह अपने पुत्र के पीछे दौड़ती हैं।

ॐ आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस में गृहे |
नि च देविं मातरं श्रियं वासय मे

कुले ||12||

अर्थ: हे लक्ष्मीजी के पुत्र चिक्लीत, जिसके नाम मात्र से लक्ष्मीजी आर्द्र (पुत्र प्रेम से जो स्नेह से भीग जाती है) कृपा करके मेरे घर में रहो। जल से उत्पन्न हुई लक्ष्मीजी मेरे घर में स्नेहपूर्ण मंगल कार्य करती रहे, ऐसा मुझे आशीर्वाद दो।

ॐ आर्द्रां यः करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीं |
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह ||13||

अर्थ: हे जातवेद अग्नि से भीगे हुए अंगोंवाली, कोमल हृदयवाली, जिसने धर्मदण्ड की लकड़ी हाथ में रखी है। सुशोभित वर्णवाली, जिसने स्वयं सुवर्ण की माला पहनी है। वह जिसकी कांति तेजस्वी सूर्य के समान है, ऐसी लक्ष्मी मेरे घर आओ, सदा रहो।

ॐ आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं पिंगलां पद्ममालिनीं |
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह ||14||

अर्थ: देवी जातवेद अग्नि, भीगे हुए अंगों वाली आर्द्र (जो हमेशा हाथी की सूंढ़ से अभिषेक होता है) हाथो में पद्म धारण करने वाली, गौरवर्ण वाली, चंद्र की तरह प्रसन्न करने वाली, भक्तों को पुष्ट करने वाली तेजस्वी लक्ष्मी को मेरे पास भेजो।

ॐ तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम |
यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योश्वान विन्देयं पुरुषानहं ||15||

अर्थ: हे अग्निनारायण, आप मेरा कभी साथ नहीं छोड़ेंगे, ऐसी अक्षय लक्ष्मी को मेरे लिए भेजने की कृपा करें। जिसके आगमन से मैं बहुत धन-सम्पत्ति, गौ-दास-दासिया-घोड़े-पुत्र-पौत्रादि आदि को पाऊँगा।

ॐ यः शुचिः प्रयतो भूत्वा जुहयादाज्यमन्वहं |
सूक्तं पञ्चदशचँ च श्रीकामः सततं जपेत ||16||

अर्थ: जिस व्यक्ति को अपार धन या संपत्ति प्राप्त करने की इच्छा हो, उसे हर दिन स्नान करके पूर्ण भाव से अग्नि में इस ऋचाओं द्वारा गाय के घी से यज्ञ करने पर लाभ मिलेगा।

श्री सूक्त 16 मंत्र जप विधि

श्री सूक्त के 16 मंत्रों का जाप करने की विधि निम्नलिखित है।

  1. सबसे पहले, ब्रह्म मुहूर्त में उठें और स्नान करें। स्नान के बाद, साफ कपड़े पहनें और पूर्व दिशा की ओर साफ आसन पर बैठें।
  2. अपने सामने एक चौकी पर साफ कपड़ा बिछाएं और उसके ऊपर लक्ष्मी माता की फोटो रखें। फिर, उसके सामने एक दीपक और घूप बत्ती जलाएं।
  3. लक्ष्मी माता और गजराज का तिलक करें और पुष्प, फल, और मिठाई उन्हें अर्पित करें।
  4. अब, हाथ में रुद्राक्ष की माला लेकर ऊपर दिए गए मंत्रों का जाप करें।
  5. नियमित रूप से श्री सूक्त के 16 मंत्रों का जाप करने से माँ लक्ष्मी प्रसन्न होती है।
  6. मंत्र का जाप समाप्त होने के बाद, दोनों हाथ जोड़कर माँ लक्ष्मी से अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति की कामना करें।

श्री सूक्त के 16 मंत्र PDF

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श्री सूक्त में कितने मंत्र हैं?

श्री सूक्त में पंद्रह मंत्र होते हैं। यह ऋग्वेद का एक खिल सूक्त है जो ऋग्वेद के पांचवें मण्डल के अंत में प्राप्त होता है। सूक्त के समाप्त होने पर सोलहवाँ मंत्र फलश्रुति का उल्लेख करता है।

क्या हम प्रतिदिन श्री सूक्त का जाप कर सकते हैं?

हाँ, हम प्रतिदिन श्री सूक्त का जाप कर सकते हैं। विशेषकर, मान्यता है कि देवी मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने के लिए शुक्रवार की शाम को पूजा के समय श्री सूक्त पाठ करना बहुत फलदायक होता है।


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