Shattila Ekadashi Vrat Katha | षटतिला एकादशी व्रत कथा [PDF]

षट्तिला एकादशी का व्रत हिन्दू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण और पुण्यप्रद माना जाता है। इस व्रत का पालन माघ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को किया जाता है। यह व्रत विशेष रूप से तिल के उपयोग पर आधारित होता है और इसके नाम से ही स्पष्ट होता है कि इसमें तिल (तिल का स्नान, तिल का दान, तिल का हवन, तिल का उबटन, तिल का भोजन, तिल का जल) के छह रूपों का उपयोग करना अत्यंत महत्वपूर्ण होता है।

षटतिला एकादशी व्रत कथा (Shattila Ekadashi Vrat Katha)

भविष्योत्तर पुराण में भगवान श्रीकृष्ण और युधिष्ठिर महाराज के संवाद में षट्तिला एकादशी के महात्म्य का वर्णन मिलता है। युधिष्ठिर ने पूछा, “हे जगन्नाथ! हे श्रीकृष्ण! हे आदिदेव! माघ मास के कृष्ण पक्ष में कौनसी एकादशी आती है? उसे किस प्रकार करना चाहिए? उसका फल क्या होता है? कृपया इस विषय में कुछ कहिए!”

भगवान श्रीकृष्ण ने उत्तर दिया, “हे नृपश्रेष्ठ! माघ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी ‘षट्तिला’ नाम से विख्यात है। यह एकादशी सभी पापों का नाश करती है। इसकी कथा मुनिश्रेष्ठ पुलस्त्य ने दाल्भ्य को सुनाई थी। वह कथा तुम भी सुनो।”

दाल्भ्य ने पूछा, “हे मुनि! मृत्यु लोक में रहने वाला हर जीव पापकर्म में रत है। उन्हें नरक यातना से बचाने के लिए कौन सा उपाय है, कृपया वह बताएं।”

Shattila Ekadashi Vrat Katha षटतिला एकादशी व्रत कथा [PDF]
Shattila Ekadashi Vrat Katha

पुलस्त्य ने कहा, “हे महाभाग! आपने अच्छा प्रश्न पूछा है। सुनो, माघ मास में मनुष्य को स्नान करके इंद्रियों को संयम में रखकर काम, क्रोध, अहंकार, लोभ और निंदा का त्याग करना चाहिए। भगवान का स्मरण करते हुए पानी से पांव धोकर, भूमि पर गिरे हुए गाय के गोबर को इकठ्ठा करके उसमें तिल और कपास मिलाकर एक सौ आठ पिंड बनाना चाहिए। माघ मास में आर्दा मूल नक्षत्र के आने पर कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत करें। स्नान के बाद पवित्र मन से श्रीविष्णु की पूजा करें। अपराध क्षमा के लिए श्रीकृष्ण के नाम का उच्चारण करें। रात में होम और जागरण करें। चंदन, कर्पूर, अरभजा और भोग दिखाकर शंख, चक्र, पद्म और गदा धारण करने वाले श्रीहरि की पूजा करें। बार-बार श्रीकृष्ण के नाम के साथ कुम्हड़, नारियल और बिजीरे के फल अर्पण करके विधिपूर्वक अर्घ्य दें। दूसरी सामग्री का अभाव हो तो सौ सुपारियों का उपयोग करके भी पूजन और अर्घ्यदान किया जा सकता है।”

अर्घ्य मंत्र इस प्रकार है:

कृष्ण कृष्ण कृपालुस्वमगतीनां गतिर्भव।
संसारार्णवमग्नानां प्रसीद पुरूषोत्तम।।
नमस्ते पुंडरीकाक्ष नमस्ते विश्वभावन।
सुब्रह्मण्य नमस्तेऽस्तु महापुरूष पूर्वज।।
गृहाणार्ध्वं मया दत्तं लक्ष्म्या सह जगत्पते।

“सच्चिदानंद श्रीकृष्ण! आप बड़े दयालु हैं। हम अनाथ जीवों के आश्रयदाता आप हैं। हे पुरूषोत्तम! हम इस संसार सागर में डूब रहे हैं, कृपया हम पर प्रसन्न हों। हे विश्वभावन! हमारा आपको वंदन है। हे कमलनयन! आपको प्रणाम है। हे सुब्रह्मण्य! हे महापुरूष! हे सभी के पूर्वज! आपको प्रणाम है। हे जगत्पते! लक्ष्मी के साथ आप इस अर्घ्य को स्वीकार करें।”

उसके बाद ब्राह्मणों की पूजा करके, उन्हें पानी से भरा घड़ा देना चाहिए। साथ में छाता, चप्पल और वस्त्र भी अर्पित करें। ‘इस दानद्वारा भगवान श्रीकृष्ण प्रसन्न हों’ यह कहते हुए दान करें। अपनी स्थिति अनुसार श्रेष्ठ ब्राह्मण को काली गाय दान में देनी चाहिए। हे द्विजश्रेष्ठ! विद्वान पुरुष ने तिल से भरा हुआ पात्र दान करना चाहिए। तिल के दान से व्यक्ति हजारों वर्षों तक स्वर्ग में निवास करता है।

“तिलस्नायी तिलोद्वर्ती तिलहोमी तिलोदकी।
तिलदाता च भोक्ता च षट्तिला पापनाशिनी।।

तिल से स्नान करना, तिल का उबटन लगाना, तिल का हवन करना, तिल डाला हुआ जल पीना, तिल दान करना,
तिल का भोजन में उपयोग करना,
इन छह कार्यों में तिल का उपयोग करने से इसे ‘षट्तिला’ एकादशी माना जाता है, जो पापहारिणी है।”

Shattila Ekadashi Vrat Katha

एक बार षट्तिला एकादशी की महिमा सुनने देवर्षि नारद भगवान श्रीकृष्ण के पास आए। भगवान श्रीकृष्ण ने कहा, “एक ब्राह्मण स्त्री थी, जो ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए भगवान की आराधना करती थी। अनेक प्रकार की तपस्याओं के कारण वह बहुत दुर्बल हो गई थी। उसने बहुत दान दिए, परंतु ब्राह्मण और देवताओं को अन्नदान नहीं किया था। अनेक प्रकार के व्रत और तपस्या करने से वह शुद्ध हो गई थी, परंतु भूखे लोगों को कभी अन्नदान नहीं किया था। हे ब्राह्मण! उसकी परीक्षा लेने के लिए ब्राह्मण के रूप में उस साध्वी के घर जाकर भिक्षा माँगी।

तब उस ब्राह्मणी ने पूछा, ‘हे ब्राह्मण! सत्य कहें कि आप कहाँ से आए हैं?’ मैंने सुनकर अनजान बनते हुए उत्तर नहीं दिया। उसने क्रोध में भिक्षापात्र में मिट्टी डाल दी। इसके बाद मैं अपने धाम लौट आया। अपनी तपस्या के प्रभाव से ब्राह्मणी मेरे धाम वापस आई। उसे संपत्ति, सुवर्ण और धान्य नहीं मिला, सिर्फ एक सुंदर महल मिला। उस महल में कुछ न पाकर वह अस्वस्थ और क्रोधित होकर मेरे पास आई और पूछने लगी, ‘हे जनार्दन! सब व्रत और तपस्या करके मैंने श्रीविष्णु की आराधना की, परंतु मुझे धनधान्य क्यों प्राप्त नहीं हुआ?’ मैंने कहा, ‘हे साध्वी! तुम भौतिक विश्व से यहाँ आई हो। अब तुम अपने घर लौट जाओ। तुम्हें देखने देवताओं की पत्नियाँ आएँगी। उन्हें षट्तिला एकादशी की महिमा पूछकर पूरा सुनने के बाद ही दरवाजा खोलना, अन्यथा नहीं।’ यह सुनकर ब्राह्मणी घर वापस आई।”

“एक बार ब्राह्मणी दरवाजा बंद करके अंदर बैठी थी, तब देवपत्नियाँ वहाँ आकर कहने लगीं, ‘हे सुंदरी! हे ब्राह्मणी! हम तुम्हारे दर्शन करने आए हैं, कृपया दरवाजा खोलें।’ तब ब्राह्मणी ने कहा, ‘आपको मुझे देखने की इच्छा है तो कृपया षट्तिला एकादशी की महिमा का वर्णन करें, तभी मैं दरवाजा खोलूंगी।’ उस समय एक देवपत्नी ने उसे महात्म्य बताया। महात्म्य सुनने के बाद ब्राह्मणी ने दरवाजा खोला, देवपत्नियाँ उसके दर्शन से बहुत प्रसन्न हुईं। देवपत्नियों के कहने के अनुसार ब्राह्मणी ने षट्तिला एकादशी का व्रत किया। इसके प्रभाव से उसे धनधान्य, तेज, सौंदर्य प्राप्त हुआ। धनधान्य प्राप्ति के लोभ से यह व्रत नहीं करना चाहिए। इस व्रत के पालन से स्वंय गरीबी और दुर्भाग्य समाप्त हो जाता है। जो कोई भी इस तिथि को तिल दान करेगा, वह सभी पापों से मुक्त हो जाएगा।

कथा का निष्कर्ष:

एक बार देवर्षि नारद ने भगवान श्रीकृष्ण से षट्तिला एकादशी की महिमा सुनी। भगवान ने कहा कि एक ब्राह्मण स्त्री ने ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए भगवान की आराधना की थी लेकिन भूखे लोगों को अन्नदान नहीं किया। इसके परिणामस्वरूप वह धन-धान्य से वंचित रही। भगवान ने उसे देवताओं की पत्नियों के दर्शन के बाद ही दरवाजा खोलने की सलाह दी। देवपत्नियों द्वारा षट्तिला एकादशी की महिमा सुनने के बाद उसने व्रत किया और उसे धन, सौंदर्य और तेज प्राप्त हुआ।

इस प्रकार, षट्तिला एकादशी का व्रत पापों का नाश करने, दरिद्रता दूर करने और समृद्धि लाने वाला माना जाता है।

षटतिला एकादशी का महत्व

षट्तिला एकादशी का हिन्दू धर्म में अत्यधिक महत्व है। यह व्रत माघ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को किया जाता है और इसे विशेष रूप से तिल के विभिन्न उपयोगों के कारण जाना जाता है। इस व्रत के पालन से भक्तों को विशेष आध्यात्मिक और सांसारिक लाभ प्राप्त होते हैं। यहां पर इस व्रत के महत्व को विस्तार से बताया गया है:

  1. पापों का नाश:
    षट्तिला एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति के सभी पापों का नाश होता है। यह व्रत आत्मा की शुद्धि के लिए अत्यंत प्रभावी माना जाता है।
  2. संतान सुख:
    यह व्रत संतान प्राप्ति की इच्छा रखने वाले दंपत्तियों के लिए विशेष रूप से फलदायी होता है। इसके प्रभाव से संतान सुख की प्राप्ति होती है।
  3. धन-धान्य की प्राप्ति:
    षट्तिला एकादशी के व्रत से व्यक्ति को धन-धान्य, सुख-समृद्धि और खुशहाली प्राप्त होती है। यह व्रत आर्थिक समृद्धि और सुख-शांति का प्रतीक है।
  4. भोग और मोक्ष की प्राप्ति:
    इस व्रत का पालन करने से व्यक्ति को जीवन में भोग (सांसारिक सुख) और मोक्ष (आत्मा की मुक्ति) दोनों की प्राप्ति होती है। भगवान विष्णु की कृपा से सभी कष्टों का निवारण होता है।
  5. तिल का महत्व:
    षट्तिला एकादशी में तिल का विशेष महत्व होता है। इस दिन तिल का स्नान, तिल का दान, तिल का हवन, तिल का उबटन, तिल का भोजन और तिल का जल सेवन अत्यंत पुण्यकारी माना जाता है। तिल से जुड़ी इन छह गतिविधियों से व्यक्ति को कई प्रकार के लाभ होते हैं।
  6. कथा का प्रभाव:
    षट्तिला एकादशी की कथा सुनने और उसे समझने से व्यक्ति को धार्मिक ज्ञान और आध्यात्मिक उत्थान प्राप्त होता है। यह कथा भक्तों को सत्य और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है।
  7. भगवान विष्णु की कृपा:
    इस व्रत के पालन से भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है। भगवान विष्णु की आराधना और उनके नाम का जप करने से व्यक्ति के सभी संकट दूर होते हैं और जीवन में शांति और सुख का आगमन होता है।

षट्तिला एकादशी व्रत का पालन करने वाले भक्तों को भगवान विष्णु की असीम कृपा प्राप्त होती है, जिससे उनका जीवन सुखमय और समृद्ध हो जाता है। यह व्रत आत्मा की शुद्धि, पापों के नाश, और मोक्ष प्राप्ति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।

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