जीवन पर संस्कृत श्लोक – परिचय
संस्कृत श्लोक जीवन के विभिन्न पहलुओं पर गहरी अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं। ये श्लोक जीवन के उद्देश्यों, समस्याओं और समाधान के बारे में अमूल्य ज्ञान साझा करते हैं। जीवन के प्रत्येक चरण को समझने, समस्याओं का समाधान खोजने, और एक संतुलित और सुखी जीवन जीने के लिए इन श्लोकों का अध्ययन करना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
संस्कृत श्लोक जीवन के संदर्भ में प्रेरणा, धैर्य, कर्म और संतोष जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर प्रकाश डालते हैं। ये श्लोक न केवल हमें जीवन की चुनौतियों का सामना करने की प्रेरणा देते हैं, बल्कि जीवन को सही दिशा में ले जाने के लिए भी मार्गदर्शन प्रदान करते हैं।
जीवन पर संस्कृत श्लोक | Sanskrit Shlokas on Life
जीवन की गहराइयों को समझने और उसे सही दिशा में ले जाने के लिए संस्कृत श्लोक अत्यंत प्रेरणादायक होते हैं। यहाँ कुछ प्रमुख संस्कृत श्लोक दिए गए हैं जो जीवन की विविधताओं, सुख-दुख, और मानव अनुभव की गहराइयों पर प्रकाश डालते हैं:
संतोषवत् न किमपि सुखम् अस्ति॥
भावार्थ: संतोष से बढ़कर कोई सुख नहीं है। यह श्लोक हमें यह सिखाता है कि बाहरी परिस्थितियाँ भले ही कितनी भी अनुकूल या प्रतिकूल हों, अंदरूनी संतोष ही वास्तविक सुख का आधार है।
ऐश्वर्ये वा सुविस्तीर्णे व्यसने वा सुदारुणे।
रज्जवेव पुरुषं बद्ध्वा कृतान्तः परिकर्षति॥
भावार्थ: अत्यधिक ऐश्वर्यवान या बुरे व्यसनों में लिप्त व्यक्ति रस्सियों से बंधे हुए व्यक्ति के समान होते हैं और अंततः उनका भाग्य उन्हें प्रताड़ित कर अत्यन्त कष्ट देता है। इस श्लोक का उद्देश्य यह है कि ऐश्वर्य और व्यसन दोनों ही अंततः दुख का कारण बन सकते हैं।
कण्ठे मदः कोद्रवजः हृदि ताम्बूलजो मदः।
लक्ष्मी मदस्तु सर्वाङ्गे पुत्रदारा मुखेष्वपि॥
भावार्थ: मदिरा (शराब) पीने से उसका दुष्प्रभाव कण्ठ पर (बोलने की क्षमता) पर पड़ता है और तंबाकू (पान) खाने से उसका मन पर प्रभाव पड़ता है। परन्तु संपत्तिवान होने का मद (गर्व) व्यक्ति के संपूर्ण शरीर पर, उनकी स्त्रियों और संतान के मुखों (चेहरों) पर भी देखा जा सकता है। इस श्लोक के माध्यम से यह समझाया गया है कि गर्व का असर हर क्षेत्र में होता है।
कण्टकावरणं यादृक्फलितस्य फलाप्तये।
तादृक्दुर्जनसङ्गोऽपि साधुसङ्गाय बाधनं॥
भावार्थ: जिस प्रकार एक फलदायी वृक्ष के कांटे उसके फलों को प्राप्त करने में बाधा उत्पन्न करते हैं, वैसे ही दुष्ट व्यक्तियों की संगति भी सज्जन व्यक्तियों की संगति में बाधा उत्पन्न करती है। यह श्लोक यह सिखाता है कि बुरी संगति अच्छे कार्यों में बाधा डालती है।
येषां न विद्या न तपो न दानं ज्ञानं न शीलं न गुणो न धर्मः।
ते मर्त्यलोके भुविभारभूता मनुष्यरूपेण मृगाश्चरन्ति॥
भावार्थ: जिनके पास न ज्ञान है, न तप है, न दान है, न विद्या है, न गुण है, न धर्म है, वे नश्वर संसार में पृथ्वी का बोझ हैं और मानव रूप में हिरण (पशु) की तरह घूमते हैं। यह श्लोक बताता है कि नैतिक और आध्यात्मिक गुणों के बिना जीवन अर्थहीन होता है।
न जातु कामः कामानामुपभोगेन शाम्यति।
हविषा कृष्णवर्त्मेन भूय एवाभिवर्धते॥
भावार्थ: भोग करने से कभी भी कामवासना शांत नहीं होती है, बल्कि जिस प्रकार हवनकुण्ड में जलती हुई अग्नि में घी आदि की आहुति देने से अग्नि और भी प्रज्ज्वलित हो जाती है, वैसे ही कामवासना और अधिक भड़क उठती है। यह श्लोक यह सिखाता है कि भोग से इच्छाओं का समाधान नहीं होता, बल्कि वे बढ़ जाती हैं।
नारुंतुदः स्यादार्तोऽपि न परद्रोहकर्मधीः।
ययास्योद्विजते वाचा नालोक्यां तामुदीरयेत्॥
भावार्थ: मनुष्य का कर्तव्य है कि यथासम्भव किसी को पीड़ा दे कर उसका हृदय न दुखाए, भले ही स्वयं दुःख उठा ले। किसी के प्रति अकारण द्वेषभाव न रखे और कोई कटु बात कह कर किसी का मन उद्विग्न न करे। यह श्लोक जीवन में नैतिकता और दयालुता को प्राथमिकता देने की शिक्षा देता है।
अधमाः धनमिच्छन्ति धनं मानं च मध्यमाः।
उत्तमाः मानमिच्छन्ति मानो हि महताम् धनम्॥
भावार्थ: निम्न वर्ग के लोग केवल पैसे में रुचि रखते हैं, और ऐसे लोग सम्मान की परवाह नहीं करते हैं। मध्यम वर्ग धन और सम्मान दोनों चाहता है, और केवल उच्च वर्ग की गरिमा महत्वपूर्ण है। यह श्लोक बताता है कि सम्मान पैसे से ज्यादा कीमती है।
कार्यार्थी भजते लोकं यावत्कार्य न सिद्धति।
उत्तीर्णे च परे पारे नौकायां किं प्रयोजनम्।।
भावार्थ: जिस प्रकार लोग नदी पार करने के बाद नाव को भूल जाते हैं, उसी तरह लोग अपना काम पूरा होने तक दूसरों की प्रशंसा करते हैं और काम पूरा होने के बाद दूसरे को भूल जाते हैं। यह श्लोक यह सिखाता है कि सफलता के बाद लोग अक्सर अपने मददगारों को भूल जाते हैं।
जीवितं क्षणविनाशिशाश्वतं किमपि नात्र।
भावार्थ: यह क्षणभंगुर जीवन में कुछ भी शाश्वत नहीं है। इस श्लोक के माध्यम से हमें याद दिलाया जाता है कि जीवन अस्थायी है और हमें हर पल की कीमत समझनी चाहिए।
जीविताशा बलवती धनाशा दुर्बला मम्।
भावार्थ: मेरी जीवन की आशा बलवती है पर धन की आशा दुर्बल है। यह श्लोक जीवन की आशा की शक्ति और धन की अस्थिरता को दर्शाता है।
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