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चरित्र पर संस्कृत श्लोक (Sanskrit Shlok on Character)

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चरित्र पर संस्कृत श्लोक (Sanskrit Shlok on Character)

1. श्लोक

अहल्या द्रौपदी सीता तारा मन्दोदरी तथा ।
पञ्चकं ना स्मरेन्नित्यं महापातकनाशनम् ॥

हिंदी अर्थ:
अहल्या, द्रौपदी, सीता, तारा, और मंदोदरी, इन पाँच स्त्रियों का नित्य स्मरण करने से सभी बड़े-बड़े पाप नष्ट हो जाते हैं।

व्याख्या:
यह श्लोक उन पाँच महान स्त्रियों का स्मरण करने की महत्ता बताता है, जिन्होंने अपने चरित्र और जीवन के माध्यम से महानता प्राप्त की। इनका स्मरण करने से व्यक्ति पापों से मुक्त होकर शुद्ध और पुण्यवान बनता है।


2. श्लोक

पुण्यश्लोको नलो राजा पुण्यश्लोको युधिष्ठिरः।
पुण्यश्लोको विदेहश्च पुण्यश्लोको जनार्दनः ॥

हिंदी अर्थ:
राजा नल, युधिष्ठिर, विदेही जनक, और जनार्दन (भगवान श्रीकृष्ण) ये सभी पुण्यात्माएँ हैं।

व्याख्या:
यह श्लोक चार पुण्यात्माओं का उल्लेख करता है, जो अपने धर्म, सत्य और सद्गुणों के कारण पूजनीय हैं। उनके चरित्र का पालन कर व्यक्ति जीवन में उच्च आदर्श स्थापित कर सकता है।


3. श्लोक

लक्ष्मणो लघुसन्धानः दूरपाती च राघवः।
कर्णो दृढप्रहारी च पार्थस्यैते त्रयो गुणाः ॥

हिंदी अर्थ:
लक्ष्मण छोटी वस्तुओं को भेदने में निपुण थे, राम दूर से मारने में निपुण थे, और कर्ण दृढ़ प्रहार करने में कुशल थे; लेकिन अर्जुन इन तीनों गुणों में श्रेष्ठ थे।

व्याख्या:
यह श्लोक लक्ष्मण, राम, कर्ण, और अर्जुन के गुणों की तुलना करता है। अर्जुन की श्रेष्ठता इस बात में थी कि उन्होंने तीनों गुणों को अपने भीतर विकसित किया। इससे हमें यह सीख मिलती है कि महान चरित्र का निर्माण विविध गुणों के संतुलन से होता है।


4. श्लोक

नीतितत्त्व प्रवक्तारः त्रयः सन्ति धरातले।
शुक्रश्च विदुरश्चायं चाणक्यस्तु तृतीयकः ॥

हिंदी अर्थ:
इस धरती पर नीति के तत्व बताने वाले तीन महापुरुष हुए – शुक्राचार्य, विदुर और चाणक्य।

व्याख्या:
यह श्लोक तीन महान नीतिज्ञों की चर्चा करता है। शुक्राचार्य, विदुर, और चाणक्य ने अपनी-अपनी नीतियों से समाज और राजनीति को दिशा दी। उनके विचार आज भी प्रासंगिक हैं और जीवन में नीति और चरित्र के महत्व को समझाते हैं।


5. श्लोक

विजेतव्या लंका चरण-तरणीयो जलनिधिः।
विपक्षः पौलस्त्यो रण-भुवि सहायाश्च कपयः।
तथाप्येको रामः सकलमवधीद्राक्षसकुलम्।
क्रियासिद्धिः सत्त्वे भवति महतां नोपकरणे॥

हिंदी अर्थ:
लंका जीतनी थी, समुद्र पार करना था, रावण से युद्ध करना था, और वानर सेना ही सहायक थी; फिर भी श्रीराम ने पूरे राक्षस कुल का नाश किया। महान कार्यों की सिद्धि साधनों से नहीं, बल्कि आत्मबल से होती है।

व्याख्या:
इस श्लोक में बताया गया है कि श्रीराम ने अपने आत्मबल और सत्त्व से असंभव कार्यों को भी संभव किया। यह श्लोक हमें सिखाता है कि साधनों से अधिक आत्मबल और धैर्य जीवन की कठिनाइयों को पार करने में सहायक होते हैं।


6. श्लोक

संगः सर्वात्मना हेयः स चेत् त्यक्तुं न शक्यते।
स सद्भिःसह कर्तव्यः साधुसंगो हि भेषजम्॥

हिंदी अर्थ:
आसक्ति सर्वथा त्याज्य है; परंतु यदि त्यागना संभव न हो तो सज्जनों का संग करना चाहिए, क्योंकि साधु संगति औषधि के समान होती है।

व्याख्या:
यह श्लोक हमें बताता है कि आसक्ति या संग बुरी होती है, लेकिन यदि कोई संग त्यागने में असमर्थ हो, तो उसे सज्जनों की संगति करनी चाहिए। सज्जनों का संग व्यक्ति के जीवन को सकारात्मक दिशा में ले जाता है।


7. श्लोक

महानुभावसंसर्गः कस्य नोन्नतिकारकः।
रथ्याम्बु जाह्नवीसंगात् त्रिदशैरपि वन्द्यते॥

हिंदी अर्थ:
सज्जनों का संग किसके लिए उन्नति का कारण नहीं बनता? गटर का पानी भी गंगा के साथ मिलकर देवताओं द्वारा पूजनीय हो जाता है।

व्याख्या:
यह श्लोक बताता है कि सज्जनों की संगति से सभी का कल्याण होता है, चाहे व्यक्ति कितना भी नीचा हो। जैसे गटर का पानी गंगा में मिलकर पवित्र हो जाता है, वैसे ही साधु संगति से व्यक्ति का जीवन पवित्र और उन्नत हो जाता है।


8. श्लोक

वज्रादपि कठोराणि मृदुनि कुसुमादपि।
लोकोत्तराणां चेतांसि को हि विक्षातुमर्हति॥

हिंदी अर्थ:
महापुरुषों का अंतःकरण वज्र से भी कठोर और पुष्प से भी कोमल होता है। ऐसे लोगों की भावनाओं को समझना कठिन होता है।

व्याख्या:
यह श्लोक महापुरुषों के आंतरिक गुणों पर प्रकाश डालता है। उनकी कठोरता और कोमलता परिस्थिति पर निर्भर करती है, जिसे सामान्य लोग आसानी से नहीं समझ सकते।


चरित्र पर संस्कृत श्लोक (Sanskrit Shlok on Character)

1. श्लोक

श्रुतिर्विभिन्ना स्मृतयोऽपि भिन्नाः नैको मुनिर्यस्य वचः प्रमाणम्।
धर्मस्य तत्त्वं निहितं गुहायाम् महाजनो येन गतः स पन्थाः॥

हिंदी अर्थ:
श्रुति (वेद) अलग-अलग बातें कहती हैं, स्मृतियाँ भी भिन्न हैं, और कोई एक मुनि ऐसा नहीं है जिसका वचन प्रमाण माने जाए। धर्म का तत्त्व गूढ़ है, इसलिए जिस मार्ग पर महापुरुष चले हैं, वही उचित मार्ग है।

व्याख्या:
यह श्लोक धर्म के गूढ़ स्वरूप को समझाता है। जब अलग-अलग विचारधाराएँ मिलती हैं, तब हमें महापुरुषों द्वारा बताए गए मार्ग का अनुसरण करना चाहिए क्योंकि उन्होंने धर्म का वास्तविक स्वरूप देखा और जाना है।


2. श्लोक

अर्जुनः फाल्गुनो जिष्णुः किरीटी श्वेतवाहनः।
बीभत्सुर्विजयः कृष्णः सव्यसाची धनञ्जयः॥

हिंदी अर्थ:
अर्जुन के ये नाम हैं: अर्जुन, फाल्गुन, जिष्णु, किरीटी, श्वेतवाहन, बीभत्सु, विजय, कृष्ण, सव्यसाची, और धनंजय।

व्याख्या:
यह श्लोक महाभारत के महान योद्धा अर्जुन के विभिन्न नामों को बताता है। अर्जुन के ये नाम उनके विभिन्न गुणों और विशेषताओं को दर्शाते हैं, जैसे उनकी वीरता, विजय, और उनकी अद्वितीय धनुर्विद्या।


3. श्लोक

अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनुमांश्च बिभीषणः।
कृपः परशुरामश्च सप्तैते चिरजीविनः॥

हिंदी अर्थ:
अश्वत्थामा, बलि, व्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य और परशुराम – ये सात चिरंजीवी हैं।

व्याख्या:
यह श्लोक उन सात महापुरुषों का वर्णन करता है जो चिरंजीवी (अमर) माने गए हैं। इनका स्मरण व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और आशीर्वाद का संचार करता है।


4. श्लोक

बलिर्विभीषणो भीष्मः प्रह्लादो नारदो ध्रुवः।
षडेते वैष्णवाः ज्ञेयाः स्मरणं पापनाशनम्॥

हिंदी अर्थ:
बलि, विभीषण, भीष्म, प्रह्लाद, नारद, और ध्रुव – इन छः वैष्णवों का स्मरण करने से पापों का नाश होता है।

व्याख्या:
इस श्लोक में उन वैष्णव भक्तों का स्मरण किया गया है जिनके जीवन से पवित्रता और धर्म की प्रेरणा मिलती है। इनका स्मरण करने से व्यक्ति के पाप दूर होते हैं और उसे आध्यात्मिक मार्ग पर अग्रसर किया जाता है।


5. श्लोक

धन्वन्तरिक्षपणकामरसिंहशङ्कु वेतालभट्टघटकर्परकालिदासाः।
ख्यातो वराहमिहिरो नृपतेः सभायां रत्नानि वै वररुचिर्नव विक्रमस्य॥

हिंदी अर्थ:
धन्वंतरि, क्षपणक, अमरसिंह, शंकु, वेतालभट्ट, घटकर्पर, कालिदास, वराहमिहिर और वररुचि – ये महाराज विक्रमादित्य के नवरत्न कवि थे।

व्याख्या:
यह श्लोक विक्रमादित्य के दरबार के नौ महान विद्वानों और कवियों का वर्णन करता है, जिन्हें नवरत्न कहा जाता है। ये विद्वान अपने ज्ञान और साहित्यिक प्रतिभा के लिए विख्यात थे और समाज के लिए प्रेरणास्त्रोत बने।


6. श्लोक

कृष्णो योगी शुकस्त्यागी राजानौ जनकराघवौ।
वसिष्ठः कर्मकर्ता च पञ्चैते ज्ञानिनः स्मृताः॥

हिंदी अर्थ:
योगी श्रीकृष्ण, त्यागी शुकदेवजी, राजाओं में जनक और श्रीराम, और कर्मशील वसिष्ठ – ये पाँच ज्ञानी माने जाते हैं।

व्याख्या:
यह श्लोक पाँच महान ज्ञानी व्यक्तियों का वर्णन करता है, जिन्होंने अपने-अपने जीवन में अद्वितीय गुण और ज्ञान का प्रदर्शन किया। इनका जीवन हमें त्याग, कर्म और धर्म की राह पर चलने की प्रेरणा देता है।


इन श्लोकों से हमें यह शिक्षा मिलती है कि महान व्यक्तियों का जीवन और चरित्र हमें सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते हैं। उनके गुणों और आदर्शों का स्मरण करने से जीवन में उन्नति और शुद्धि प्राप्त होती है।

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