सतयुग के समय विदर्भ नगरी में श्येनजित नामक एक धर्मनिष्ठ राजा राज्य करते थे। उनके राज्य में सुमित्र नामक एक कृषक रहता था जिसकी पत्नी जयश्री अत्यंत पतिव्रता और धार्मिक विचारों वाली थी।
रजस्वला दोष का परिणाम
एक वर्षा ऋतु में जयश्री खेती के कामों में व्यस्त थी। उसी समय वह रजस्वला (मासिक धर्म) हो गई, किंतु शुद्ध-अशुद्ध की मर्यादा न जानते हुए वह घरेलू कार्यों में लगी रही। समय आने पर दोनों पति-पत्नी ने अपनी आयु पूर्ण की और मृत्यु को प्राप्त हुए।
- जयश्री को रजस्वला अवस्था में घर और भोजन से जुड़े कार्य करने के कारण अगले जन्म में कुतिया का जन्म मिला।
- वहीं सुमित्र को रजस्वला स्त्री के साथ संपर्क करने के कारण बैल की योनि प्राप्त हुई।
चूंकि दोनों का अपराध केवल यही एक था, इसलिए उन्हें अपने पूर्वजन्म की स्मृति बनी रही।
पुत्र सुचित्र के घर पर
दोनों पशु रूप में होकर भी अपने पुत्र सुचित्र के घर में ही रहने लगे। सुचित्र धर्मात्मा और अतिथि सत्कार में निपुण था। श्राद्ध के अवसर पर उसने अपने पिता के तर्पण के लिए ब्राह्मण भोज का आयोजन किया।
जब उसकी पत्नी चन्द्रवती रसोई से बाहर गई, तभी एक सर्प ने खीर के बर्तन में विष डाल दिया। यह दृश्य कुतिया रूपी जयश्री ने देख लिया। पुत्र को ब्रह्महत्या के पाप से बचाने के लिए उसने उस खीर के बर्तन में मुंह डाल दिया ताकि वह भोजन किसी को न परोसा जाए।
लेकिन सुचित्र की पत्नी को यह आचरण बुरा लगा। उसने क्रोध में आकर जलती लकड़ी से कुतिया को मार दिया और उसे घर से बाहर निकाल दिया। उस दिन उसने उसे खाने को भी कुछ नहीं दिया।
पशु रूप में पीड़ा
रात्रि में भूखी-प्यासी कुतिया अपने पूर्व पति, बैल के पास पहुँची और बोली –
“स्वामी! आज भूख से मेरी जान निकल रही है। पुत्रवधू ने मुझे खाने को कुछ भी नहीं दिया। मैंने केवल अपने पुत्र को पाप से बचाने के लिए विष भरी खीर को नष्ट किया था, फिर भी मुझे दंड मिला।”
तब बैल बोला –
“भद्रे! मेरे पापों के कारण मैं भी इस योनि में आ गया हूँ। आज दिनभर हल में जुते रहने से मेरी कमर टूट गई है। पुत्र ने मुझे भी भोजन नहीं दिया, बल्कि मारपीट भी की। इस प्रकार उसका श्राद्ध निष्फल हो गया।”
सुचित्र की व्यथा और उपाय
यह सब बातें सुनकर सुचित्र अत्यंत दुखी हुआ। उसने माता-पिता को भोजन कराया और फिर समाधान के लिए वन में चला गया। वहाँ उसने ऋषियों से पूछा –
“मेरे माता-पिता किस पाप के कारण इन नीच योनियों में जन्मे हैं? और इन्हें मुक्ति कैसे मिलेगी?”
ऋषियों ने कहा –
“हे पुत्र! यदि तुम अपनी पत्नी सहित भाद्रपद शुक्ल पंचमी को ऋषि पंचमी व्रत करोगे और उसका पुण्य अपने माता-पिता को अर्पित कर दोगे, तो उन्हें मुक्ति मिल जाएगी।”
व्रत की विधि
ऋषियों ने समझाया –
- इस दिन प्रातः स्नान करके, शुद्ध वस्त्र धारण कर,
- सप्तऋषि एवं अरुंधती का पूजन करो।
- दिनभर व्रत रखकर श्रद्धापूर्वक पूजा-अर्चना करो।
मुक्ति की प्राप्ति
सुचित्र ने पत्नी सहित विधिपूर्वक व्रत किया और उसका फल अपने माता-पिता को अर्पित किया। इसके प्रभाव से दोनों पशु योनियों से मुक्त होकर दिव्य लोक को प्राप्त हुए।
इसलिए कहा गया है कि –
जो भी स्त्री या पुरुष श्रद्धापूर्वक ऋषि पंचमी का व्रत करता है, वह सभी पापों से मुक्त होकर बैकुंठ धाम को प्राप्त करता है।