📿 ऋषि पंचमी का परिचय
हिन्दू धर्म में ऋषि पंचमी एक पावन व्रत है जिसे पापों से मुक्ति और शुद्धि के लिए किया जाता है। यह कोई पर्व नहीं बल्कि एक प्रायश्चित व्रत है। इस दिन विशेष रूप से सप्त ऋषियों (कश्यप, अत्रि, भारद्वाज, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि और वशिष्ठ) की पूजा की जाती है।
माना जाता है कि मासिक धर्म (Menstruation) के समय स्त्रियों से यदि अनजाने में कोई भूल हो जाए, तो उस दोष के निवारण के लिए यह व्रत किया जाता है।
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📅 ऋषि पंचमी 2025 तिथि और मुहूर्त
- तिथि प्रारम्भ – 27 अगस्त 2025, शाम 3:44 बजे
- तिथि समाप्त – 28 अगस्त 2025, शाम 5:56 बजे
- पूजा मुहूर्त – 28 अगस्त 2025, सुबह 11:05 से दोपहर 1:39 तक
- अवधि – 2 घंटे 34 मिनट
👉 यह व्रत गणेश चतुर्थी के अगले दिन किया जाता है और प्रायः अगस्त या सितंबर माह में आता है।
🙏 सप्तऋषियों के नाम
- महर्षि कश्यप
- महर्षि अत्रि
- महर्षि भारद्वाज
- महर्षि विश्वामित्र
- महर्षि गौतम
- महर्षि जमदग्नि
- महर्षि वशिष्ठ
श्लोक:
कश्यपोऽत्रिर्भरद्वाजो विश्वामित्रोऽथ गौतमः।
जमदग्निर्वसिष्ठश्च सप्तैते ऋषयः स्मृताः॥
🌸 महत्व
- महिलाओं के लिए यह व्रत विशेष रूप से पवित्रता और दोष-मुक्ति का प्रतीक है।
- माना जाता है कि इस दिन गंगा स्नान करने या गंगा जल मिलाकर स्नान करने से पाप नष्ट होते हैं।
- यह व्रत आध्यात्मिक उन्नति और स्वास्थ्य लाभ प्रदान करता है।
- सप्तऋषियों की पूजा से गुरुजनों का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
🪔 ऋषि पंचमी व्रत एवं पूजा विधि
- प्रातःकाल ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान करें।
- घर और पूजा स्थल की शुद्धि करें।
- चौकी पर लाल/पीला कपड़ा बिछाकर सप्तऋषियों की तस्वीर स्थापित करें।
- दीपक जलाकर पंचामृत, फल, फूल, घी आदि अर्पित करें।
- सप्तऋषियों की पूजा करें और प्रार्थना करें।
- किसी भी भूल या पाप के लिए हृदय से क्षमा याचना करें।
- सप्तऋषियों की आरती व भजन-कीर्तन करें।
- प्रसाद वितरित करें और बड़ों का आशीर्वाद लें।
📖 ऋषि पंचमी व्रत कथा
सतयुग में विदर्भ नगरी का राजा श्येनजित धर्मप्रिय था। उसके राज्य में कृषक सुमित्र और उसकी पत्नी जयश्री रहते थे। एक बार रजस्वला दोष का पालन न करने से दोनों पति-पत्नी अगले जन्म में क्रमशः बैल और कुतिया बने। अपने पुत्र सुचित्र के घर रहते हुए भी उन्हें अनेक कष्ट सहने पड़े। श्राद्ध के दिन हुई एक घटना ने उनकी पीड़ा और भी बढ़ा दी… 👉 पूरी कथा पढ़ें यहाँ