Putrada Ekadashi Vrat Katha | पुत्रदा एकादशी व्रत कथा [PDF]

भविष्योत्तर पुराण में भगवान श्रीकृष्ण और महाराज युधिष्ठिर के बीच हुई चर्चा में पुत्रदा एकादशी के महत्व का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। इस पावन व्रत का उद्देश्य संतान सुख प्राप्ति है और इसे विशेष रूप से संतान के लिए कल्याणकारी माना जाता है। इस लेख में जानिए कि पुत्रदा एकादशी व्रत (Putrada Ekadashi Vrat Katha) किस प्रकार संतान सुख के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है और इसे पालन करने से जीवन में कैसे शुभ परिणाम प्राप्त होते हैं।

पुत्रदा एकादशी: एक दिव्य व्रत | Putrada Ekadashi Vrat Katha

भविष्योत्तर पुराण में भगवान श्रीकृष्ण और महाराज युधिष्ठिर के संवाद में पुत्रदा एकादशी के महात्म्य का वर्णन मिलता है। महाराज युधिष्ठिर ने पूछा, “हे श्रीकृष्ण! कृपा करके मुझे पौष मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी का वर्णन करें। उस व्रत की विधि क्या है? तथा कौनसे देवता की पूजा की जाती है?”

भगवान श्रीकृष्ण ने कहा, “जगत कल्याण के लिए इस एकादशी का मैं वर्णन करूँगा। अन्य एकादशी की तरह इस एकादशी को व्रत करें। इसे ‘पुत्रदा’ कहते हैं। सब पापों का हरण करनेवाली यह सर्वोत्तम तिथि है। कामना तथा सिद्धि को पूर्ण करनेवाले भगवान इस तिथि के अधिदेवता हैं। पूरे त्रिलोक में यह सबसे उत्तम तिथि है।”

Putrada Ekadashi Vrat Katha

“एक दिन घोड़े पर सवार होकर महाराज सुकेतुमान गहरे वन में चले गए। पुरोहित और दूसरे लोगों को इसकी कल्पना नहीं थी। पशु-पक्षियों से भरे हुए इस गहरे वन में महाराज भ्रमण कर रहे थे। दोपहर होते ही, महाराज को भूख और प्यास लगी। जल की तलाश में महाराज इधर-उधर घूम रहे थे। पूर्वजन्म के पुण्य से उन्हें एक जलाशय दिखाई दिया। उस जलाशय के पास ही एक मुनि का आश्रम था! अनेक शुभ शकुन होने लगे, उनकी बाँयी आँख और बायाँ हाथ फड़कने लगा। शुभ घटना की आशा में राजा आश्रम में गए। उन्हें देखकर राजा को बहुत प्रसन्नता हुई। घोड़े से उतरकर राजा ने सभी मुनियों को प्रणाम किया, तब उन मुनियों ने कहा, “हे राजन! हम आप पर प्रसन्न हैं।”

राजा ने कहा, “हे मुनिगण! आप कौन हैं? आपके नाम क्या हैं? आप यहाँ पर किस उद्देश्य से एकत्रित हुए हैं? कृपया हमें सत्य बताइए।”

मुनि ने कहा, “राजन! हम विश्वदेव हैं। आज से आने वाली पाँचवीं तिथि से माघ मास प्रारंभ होगा। आज ‘पुत्रदा एकादशी’ है। जो कोई भी यह एकादशी करता है, उसे पुत्र प्राप्ति अवश्य होती है।”

राजा ने कहा, “विश्वदेवगण! अगर आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो मुझे कृपया पुत्र प्राप्ति हो!”

मुनियों ने कहा, “राजन! आज ‘पुत्रदा’ एकादशी है। आज आप इसका पालन करें, भगवान केशव के प्रसाद रूप आपको पुत्र प्राप्ति होगी।”

भगवान श्रीकृष्ण ने कहा, “हे युधिष्ठिर! इस प्रकार मुनियों के कहने पर राजा ने एकादशी व्रत किया। द्वादशी को व्रत पूरा करके (पारण करके) मुनियों का आशीर्वाद लेकर राजा वापस आया। इसके पश्चात् रानी गर्भवती हुई और एकादशी के पुण्य से राजा को तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति हुई, जिसने अपने उत्तम गुणों से अपने पिता को संतोष दिया। वह उत्तम प्रजापालक था। इसलिए, हे राजन! ‘पुत्रदा’ व्रत अवश्य करना चाहिए। जो कोई भी इस व्रत का पालन करता है, उसे पुत्र की प्राप्ति होती है और वह मनुष्य स्वर्ग प्राप्त करता है।”

“जो इस व्रत की महिमा पढ़ेगा, सुनेगा या कहेगा, उसे अश्वमेध यज्ञ के फल की प्राप्ति होगी।”

पुत्रदा एकादशी का महत्व

“पुत्रदा एकादशी” का व्रत विशेष रूप से संतान सुख की प्राप्ति के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। जो भी इस व्रत का पालन करता है, उसे न केवल संतान सुख प्राप्त होता है, बल्कि उसे स्वर्ग का भी आशीर्वाद मिलता है। जो इस व्रत की महिमा पढ़ेगा, सुनेगा या कहेगा, उसे अश्वमेध यज्ञ के फल की प्राप्ति होगी।

पुत्रदा एकादशी व्रत कथा PDF


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