एक हथिया देवाल मंदिर: क्यों नहीं होती इस शिवलिंग की पूजा?

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उत्तराखंड के पिथौरागढ़ में स्थित एक हथिया देवाल मंदिर एक रहस्यमयी शिव मंदिर है, जिसे एक हाथ से बनाया गया था। जानिए इसकी कथा और इतिहास।

एक हथिया देवाल: एक हाथ से बना शिव मंदिर जिसकी पूजा क्यों नहीं होती?

एक हथिया देवाल मंदिर क्यों नहीं होती इस शिवलिंग की पूजा

उत्तराखंड की सुरम्य वादियों में बसे पिथौरागढ़ जिले की धरती पर छिपा है एक अद्भुत और रहस्यमयी मंदिर—एक हथिया देवाल। यह मंदिर ना केवल अपनी रहस्यमयी कथा के कारण प्रसिद्ध है, बल्कि इसकी वास्तुकला और इतिहास भी इसे अत्यंत विशेष बनाते हैं। वादियों की गोद में बसा यह शिव मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था और शिल्पकला की अनोखी मिसाल है।

कहाँ स्थित है एक हथिया देवाल?

यह मंदिर उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ में स्थित है। पिथौरागढ़ से धारचूला की ओर जाने वाले मार्ग पर लगभग 70 किलोमीटर की दूरी पर थल नामक एक कस्बा आता है। थल से करीब 6 किलोमीटर दूर ग्राम सभा बल्तिर में स्थित है यह रहस्यमय मंदिर, जो भगवान शिव को समर्पित है।


मंदिर की विशेषता: पूजा रहित देवालय

यहाँ एक बात विशेष रूप से ध्यान देने योग्य है—इस मंदिर में भगवान शिव की पूजा नहीं की जाती। श्रद्धालु दूर-दूर से दर्शन करने आते हैं, मंदिर की अलौकिक शिल्पकला को निहारते हैं, पर केवल भावनात्मक श्रद्धा के साथ लौट जाते हैं। न तो यहाँ कोई नियमित पूजा होती है और न ही किसी धार्मिक अनुष्ठान का आयोजन। लेकिन ऐसा क्यों है? इसके पीछे छिपी है एक गहरी और मार्मिक पौराणिक कथा।


पौराणिक कथा: एक हाथ से बना देवालय

कहानी शुरू होती है एक मूर्तिकार से, जो अपने गांव में पत्थरों की मूर्तियां बनाकर जीविका चलाता था। वह बेहद कुशल और रचनात्मक था, लेकिन दुर्भाग्यवश एक दुर्घटना में उसका एक हाथ कट गया। अब वह केवल एक हाथ के सहारे ही मूर्तिकला में अपनी प्रतिभा दिखाने का प्रयास करता रहा।

गांव के लोगों ने उसे हतोत्साहित करना शुरू कर दिया। तानों, अपमान और उपेक्षा से दुखी होकर उस मूर्तिकार ने मन ही मन ठान लिया कि वह अब इस गांव को हमेशा के लिए छोड़ देगा। एक रात वह चुपचाप अपनी छेनी, हथौड़ी और अन्य औजार लेकर गांव के दक्षिणी छोर की ओर चला गया। वहां एक विशाल चट्टान थी, जहां प्रायः लोग शौच आदि के लिए जाया करते थे।

अगली सुबह जब गांववाले वहाँ पहुँचे, तो उन्होंने देखा कि उस चट्टान को रातोंरात तराश कर एक सुंदर शिव मंदिर का आकार दे दिया गया है। सभी चकित थे—एक ही रात में! एक ही हाथ से! यह किसका कार्य हो सकता है? लेकिन वह मूर्तिकार कहीं नहीं मिला। लोगों ने उसे खोजा, लेकिन वह इस संसार से मानो विलीन हो गया।


शिवलिंग की दिशा और पूजा निषेध

जब स्थानीय पंडितों और विद्वानों ने मंदिर की वास्तुकला और भीतर स्थापित शिवलिंग को देखा, तो यह ज्ञात हुआ कि शीघ्रता में निर्माण के कारण शिवलिंग का अरघा (जल निकासी मार्ग) उल्टी दिशा में बना हुआ है। शास्त्रों के अनुसार, ऐसा शिवलिंग पूज्य नहीं होता और उसकी पूजा करना अनिष्ट फलदायक हो सकता है।

इसी कारण से एक हथिया देवाल में पूजा निषिद्ध कर दी गई। लोग केवल दर्शन करते हैं, मंदिर के चारों ओर भ्रमण करते हैं, पर भीतर जाकर पूजा नहीं करते। मंदिर के पास एक जल स्रोत (स्थानीय भाषा में नौला) है, जहाँ आज भी मुंडन संस्कार जैसे पारंपरिक कार्यों के दौरान बच्चों को स्नान कराया जाता है।


दूसरी कथा: राजा की क्रूरता और कलाकार का प्रतिशोध

एक अन्य जनश्रुति के अनुसार, एक बार एक राजा ने एक प्रसिद्ध कारीगर का केवल इस कारण से एक हाथ कटवा दिया, क्योंकि वह नहीं चाहता था कि वह कारीगर किसी अन्य राज्य में जाकर कोई और अधिक सुंदर इमारत बना सके। लेकिन वह राजा कलाकार की आत्मा को नहीं तोड़ सका।

अपमान और पीड़ा से भरे कारीगर ने एक ही रात में, अपने एक हाथ से भगवान शिव का यह भव्य मंदिर बना डाला। फिर वह उस राज्य को हमेशा के लिए छोड़कर चला गया। जब लोगों को इस क्रूर कृत्य की सच्चाई पता चली, तो उन्होंने निर्णय लिया कि वे भगवान शिव के प्रति अपनी श्रद्धा तो बनाए रखेंगे, लेकिन राजा के अन्याय के विरोध में मंदिर में पूजा नहीं करेंगे।


अद्भुत स्थापत्य कला

मंदिर की वास्तुकला नागर शैली और लैटिन शैली के समावेश का अद्भुत उदाहरण है। पूरी संरचना एक विशाल चट्टान को काटकर बनाई गई है। मंदिर का द्वार पश्चिम दिशा की ओर है, मंडप की ऊँचाई लगभग 1.85 मीटर और चौड़ाई 3.15 मीटर है। हर पत्थर में छिपी कारीगरी और भावनाएं मानो उस कलाकार की आत्मा की कहानी कहती हैं।


आज का एक हथिया देवाल

आज यह मंदिर एक रहस्यमय तीर्थ बन चुका है। यहाँ न कोई पुजारी रहता है, न कोई आरती होती है, परन्तु शिवभक्तों की श्रद्धा यहां आज भी उतनी ही प्रबल है। यह स्थान न केवल भगवान शिव के एक अनूठे रूप का प्रतीक है, बल्कि यह उस कलाकार के जुनून, आत्मसम्मान और दर्द की भी अमर गाथा है जिसने दुनिया को यह दिखा दिया कि एक हाथ से भी इतिहास रचा जा सकता है।

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