शिव से शक्ति की उत्पत्ति: सृष्टि के आरंभ की रहस्यमयी कथा
अर्धनारीश्वर की रहस्यमयी कहानी : प्राचीन काल में, जब ब्रह्मांड शून्य था और कोई जीव, पेड़-पौधे, या जीवन चिह्न नहीं था, तब ब्रह्मा जी को सृष्टि निर्माण का कार्य सौंपा गया। ब्रह्मा जी ने पूरे मन से सृजन का कार्य आरंभ किया, परंतु जल्द ही उन्हें एक गहन चिंता ने घेर लिया। उन्हें ज्ञात हुआ कि उनकी बनाई प्रत्येक रचना जीवन के बाद नष्ट हो जाएगी, और हर बार उसे नए सिरे से रचना होगा। इससे सृष्टि का विस्तार संभव नहीं था।
इस कठिनाई से व्यथित होकर ब्रह्मा जी भगवान शिव की शरण में पहुँचे। उन्होंने शिव से विनती की कि सृष्टि में ऐसा तंत्र हो जो निरंतर चलता रहे — जिससे जीवन केवल एक बार बने और फिर स्वतः बढ़ता जाए।
ब्रह्मा जी की प्रार्थना को सुनकर भगवान शिव प्रकट हुए। परंतु इस बार उनका रूप अद्भुत और रहस्यमयी था — उनका एक पक्ष शिव का था, तो दूसरा शक्ति का। यह रूप अर्धनारीश्वर था। शिव और शक्ति का यह संयुक्त स्वरूप ब्रह्मा जी को गूढ़ संदेश दे रहा था: सृजन के लिए केवल पुरुष तत्व पर्याप्त नहीं है, उसमें स्त्री शक्ति का समावेश भी आवश्यक है।
इस दर्शन से ब्रह्मा जी को सृजन की नई दिशा मिली। शिव ने तब शक्ति को अपने से अलग किया। शक्ति ने स्वयं के मस्तक से अपनी ही तरह तेजस्वी एक अन्य रूप को उत्पन्न किया। यह नई शक्ति आगे चलकर पृथ्वी पर प्रकट हुई — दक्ष प्रजापति के घर एक दिव्य कन्या के रूप में, जिन्हें हम सती के नाम से जानते हैं।
सती के जन्म के साथ ही सृष्टि की वास्तविक शुरुआत हुई — स्त्री और पुरुष के मिलन से जीवन का चक्र आगे बढ़ा। इसी घटना से संसार में जन्म, प्रेम और परिवार की नींव पड़ी।
यह कथा हमें सिखाती है कि ब्रह्मांड की हर रचना में शिव और शक्ति दोनों की समान भागीदारी है — और जब दोनों एक हो जाते हैं, तभी सृजन संभव होता है।