Amalaki Ekadashi Vrat Katha | आमलकी एकादशी व्रत कथा [PDF]

By Admin

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Amalaki Ekadashi Vrat Katha: आमलकी एकादशी व्रत कथा भारतीय धार्मिक परंपराओं में महत्वपूर्ण स्थान रखती है। यह कथा कार्तिक माह की शुक्ल एकादशी को सुनने और अनुसरण करने के लिए भक्तों के लिए प्रेरणादायक है। इस कथा में आमलकी वृक्ष और भगवान विष्णु की पूजा का महत्व बताया गया है।

आमलकी एकादशी के दिन उपवास रखने और विशेष पूजा विधियों का पालन करने से भक्तों को धार्मिक और आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होता है, और पापों से मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस कथा के माध्यम से भक्तों को सही व्रत पालन की विधियाँ और इसके लाभों के बारे में ज्ञान प्राप्त होता है।

आमलकी एकादशी का महत्व

आमलकी एकादशी, जो कार्तिक माह की शुक्ल एकादशी को मनाई जाती है, का महत्व इस प्रकार है:

  • भगवान विष्णु की पूजा: इस दिन भगवान विष्णु की विशेष पूजा की जाती है।
  • पुण्य और मोक्ष: उपवास रखने से पाप समाप्त होते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
  • आमला वृक्ष की पूजा: आमला (आमलकी) वृक्ष को पवित्र माना जाता है और इसकी पूजा से स्वास्थ्य लाभ होता है।
  • धार्मिक अनुष्ठान: उपवास और विशेष पूजा विधियों के माध्यम से इस दिन धार्मिक एकता और सांस्कृतिक परंपरा को बढ़ावा मिलता है।

आमलकी एकादशी व्रत कथा (Amalaki Ekadashi Vrat Katha )

इस एकादशी का महात्म्य ब्रह्मांड पुराणमें कहा गया है। युधिष्ठिर महाराजने पूछा, “हे श्रीकृष्ण ! फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम क्या है? यह व्रत किस प्रकारसे करना चाहिए कृपया आप बताईये।” भगवान् श्रीकृष्णने कहा, “हे धर्मनन्दन ! प्राचीन कालमें मान्धाता राजाने वशिष्ठ ऋषिको इसके बारे में पूछा था। इसे ‘आमलकी एकादशी कहते है और जो कोईभी इस व्रतका पालन करता है उसे विष्णुलोक या वैकुंठ की प्राप्ति होती है।”
राजा मान्धाताने पूछा, “हे ऋषीवर्य ! पृथ्वीपर इस का कभी आरंभ हुआ इस विषय में आप मुझे बताईये ।”

वशिष्ठ ऋषि कहने लगे, “हे महाभाग ! पृथ्वीपर इस ‘आमलकी’ के प्रारंभ की कथा सुनो । आमलकी महान वृक्ष है जो सब पापोंका नाश करता है। भगवान् विष्णुकी थूक से एक चंद्रमसमान बिंदू प्रकट हुआ। वह बिंदू पृथ्वीपर गिरा उसमें से वृक्ष उत्पन्न हुआ जिसे आमलकी नाम मिला। सब वृक्षोमें यह आदिवृक्ष माना जाता है। उसी वक्त सारी सृष्टि के निर्माता ब्रह्माजीकी भी उत्पत्ति हुई।

Amalaki Ekadashi Vrat Katha
Amalaki Ekadashi Vrat Katha

उन्हींसे सब प्रजाकी सृष्टि हुई जिसमे देवता, गंधर्व, यक्ष, राक्षस, नाग तथा पवित्र और शुद्ध हृदय वाले महर्षियों का जन्म हुआ। उनमें से देवता और ऋषिलोक विष्णुप्रिया आमलकी वृक्ष के पास आए। हे महाभाग्यवान ! उस वृक्षको देखते ही देवताओंको काफी आश्चर्य हुआ और एक दूसरे को देखकर वो विचार करने लगे, पलस आदि वृक्षोंको हम जानते है, पर इस वृक्ष को हम प्रथम बार देख रहे है। उन्हें इस स्थिती में देखकर आकाशवाणी हुई, “हे महर्षि, यह आमलकी वृक्ष है, जो श्रीविष्णु को अति प्रिय है। केवल इसके स्मरणसे गोदानका पुण्य प्राप्त होता है। हमेशा आँवला खाना चाहिए। सब पापोंको नाश करनेवाला यह वैष्णव वृक्ष है।” ।

तस्था मूले स्थितो विष्णुस्तदुर्थ्यांच पितामहः
स्कन्धे च भगवान रुद्रः संस्थितः परमेश्वरः ।।
शाखासु मुनयः सर्वे प्रशाखासुच देवताः ।।
पर्णेषु वसवो देवाः पुष्पेषु मरुतस्तथा ।।
प्रजानां पतयः सर्वे फलेष्वेव व्यवस्थिताः ।
सर्वदेवमयी होषा धात्री च कथिता मया ।।

इस वृक्षके मूलमें विष्णु, अग्रभाण में ब्रह्माजी, स्कन्ध में शिवजी, शाखाओंमे मुनि, प्रशाखामें देवता, पत्तों में वसु, फुलों में मरूतगण तथा फलोंमें सब प्रजापती वास करते है। इसलिए आमलकी वृक्षको सर्वदेवमय कहा जाता है। इसलिए यह सब विष्णुभक्तोंको प्रिय है।

ऋषिने कहा, “हे अव्यक्त महापुरूष, आप कौन है? हम आपको क्या देवता समझे ? कृपया आप हमे बताईये ।”
फिरसे आकाशवाणी हुई, “जो सभी जीवोंका कर्ता, सब भुवनोंका स्रोत है ओर विद्वान पुरूषोंकों भी अगम्य मैं वही विष्णु हूँ।” देवादिदेव भगवान् विष्णुका कथन सुनने से सभी ब्रह्मपुत्र आश्चर्यचकित होकर बडे भक्तिभावसे श्रीविष्णुकी स्तुति करने लगे। ऋषि ने कहा, “सभी जीवोंके आत्मभूत आत्मा एवं परमात्मा आपको प्रणाम करते है। जिनका कभी पतन नही होता उन अच्युतको हम नमस्कार करते है। दामोदर, यज्ञेश्वर और परमपरमेश्वर आपको हमारा प्रणाम है। आप मायापति और संपूर्ण विश्वके स्वामी है आपको हमारा वंदन है।”
इस प्रकार ऋषियोंने की हुई स्तुति सुनने से भगवान् विष्णु प्रसन्न हुए और कहने लगे, “हे महर्षि ! मै आपको कौनसा अभिष्ट वरदान दूँ।”

ऋषिने कहा, “हे भगवान ! आप सचमुच हमारे ऊपर प्रसन्न है तो जिस व्रत को करने से मोक्ष मिलता है वो हमे कहें।”
श्रीविष्णु ने कहा, “हे महर्षियों ! फाल्गुन शुक्ल पक्ष में अगर पुष्य नक्षत्रयुक्त द्वादशी होगी तो वो सब पापों को नष्ट करनेवाली होगी। हे द्विजवर ! उस दिन विशेष कर्तव्य करना चाहिए उसके बारे में सुनिए। आमलकी एकादशी को रातभर आमलकी वृक्षके पास जाकर जागरण करना चाहिए। उससे मनुष्य को सभी पापोंसे मुक्ति साथ ही उसे सहस्र गाय दान करनेका पुण्य भी मिलता है। हे विप्रगण ! सभी व्रतोंमें ये उत्तम व्रत है।”
ऋषियोंने पूछा, “हे भगवान् ! कृपया इस व्रत की विधि बताये। इसे कैसे पूर्ण करे? इसके अधिष्ठाता कौन है ? इस दिन स्नान, दान आदि विधि किस प्रकार करनी चाहिए ? पूजा की विधि क्या है? उसके लिए मंत्र क्या है? कृपया यथार्थ रूप से इसका वर्णन करे ।”

भगवान् श्रीविष्णुने कहा, “हे द्विजवर सुनिए ! एकादशी दिन प्रातःकाल जल्दी उठे। दंतधावन करनेके बाद संकल्प करना चाहिए कि, हे पुण्डरीकाक्ष ! हे अच्युत ! आज मै निराहार एकादशी करके कल भोजन ग्रहण करूंगा। कृपया मुझे अपने चरणोंमें आश्रय दीजिए।” इस प्रकार से नियम ग्रहण करने के बाद पापी, पतित, चोर, पाखंडी, दुराचारी, मर्यादा भंग करनेवाले, गुरू पत्नीगामी इन व्यक्तियोंसे वार्तालाप न करें। अपने मन को वश में रखकर नदी, तालाब, कुआँ या घर में स्नान करे। स्नान करनेसे पूर्व शरीरको मिट्टी लगानी चाहिए । मिट्टी लगाते समय इस मंत्र को कहना चाहिए।

अश्वक्रान्ते रथक्रान्ते विष्णुक्रान्ते वसुन्धरे ।
मृत्तिके हर मे पापं जन्मकोट्यां समर्जितम् ।।

हे वसुंधरा ! आप के उपर अश्व तथा रथोंका चलना हमेशा सहन करती है। भगवान वामन देवने भी अपने पैरोंसे आपको नापा है। हे मृत्तिके, मैंने करोंडो जन्मोंमें अनेक पाप किए है कृपया उन सभी पापोंका आप हरण कीजिए।

स्नान मंत्र
त्वं मातः सर्वभूतानां जीवनं तत्तु रक्षकम् ।
स्वेदजोद्भिज्जजातीनां रसनां पतये नमः ।।
स्नातो ऽ हं सर्वतीर्थेषु हृदयप्रस्रवणेषु च ।
नदीषु देवखातेषु इदं स्नांन तु मे भवेत् ।।

हे जल अधिष्ठात्री देवी ! हे माते ! तुम सभी जीवोंका जीवन हो। वही जीवन जो स्वेदज और उ‌द्भिज जातिके जीवोंका रक्षक है। तुम रस स्वामिनी हो, तुम्हे हमारा वंदन है। आज मैने सब तीर्थोमें, कुंडमें, तालाबमें और देवतासंबंधी सरोवर में स्नान किया है। मेरा ये स्नान उपर कहे हुए सभी स्नानोंका फल देनेवाला हो ।
विद्वान पुरूषको परशुराम की सोनेकी प्रतिमा बनानी चाहिए। वो चाहे अपनी शक्ति के अनुसार एक अथवा आधे तोले की हो। स्नान के पश्चात घर में पूजा और हवन करे। उसके बाद पूजा की सभी सामग्री लेकर आमलकी वृक्ष के पास जाएँ। वृक्ष के पास की जगह की साफ-सफाई करके गोबर से लेपना चाहिए। इस प्रकार शुद्ध भूमिपर मंत्र पठनद्वारा नये कुंभ की स्थापना करे। उस कलशमें पंचरत्न तथा चंदन छोडकर श्वेत चंदनसे उसे सजाए । कंठमें फूलोंकी माला डालकर सुगंधित धूप अर्पण करना चाहिए। दीपक प्रज्वलित करे इसका उद्देश्य यही कि सभी प्रकारका मनोहर, सुशोभित दृश्य निर्माण हो । पूजा के लिए नया छाता, जूता तथा वस्त्र ले। कलशपर एक बर्तन रखकर उसमें दिव्य लाजों को भरे। उसके उपर सुवर्णमय परशुरामजीकी स्थापना करे। विशोकाय नमः कहकर उनके चरणोंकी, विश्वरूपिणे

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