तुलसी और गणेश जी का श्राप: पौराणिक ग्रंथों में एक अत्यंत रोचक कथा मिलती है जिसमें तुलसी माता और भगवान गणेश से जुड़े श्राप का उल्लेख है। यह कथा न केवल तुलसी माता के विवाह से जुड़ी है, बल्कि गणेश जी की दो पत्नियों -रिद्धि और सिद्धि -की कथा का भी आधार बनती है।
तुलसी और गणेश जी का श्राप:
कहा जाता है कि एक समय तुलसी माता का मन भगवान गणेश जी की ओर आकृष्ट हुआ। तुलसी माता उनके तप, उनके तेज और उनके अद्भुत स्वरूप से प्रभावित होकर उनसे विवाह करने का विचार करने लगीं। एक दिन उन्होंने साहस जुटाकर अपनी यह इच्छा गणेश जी के सामने प्रकट की और उनसे विवाह का प्रस्ताव रखा। लेकिन गणेश जी का जीवन अलग ही मार्ग पर चल रहा था। वे ब्रह्मचर्य और तप में लीन थे, इसलिए उन्होंने विनम्रता से तुलसी के इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया।
गणेश जी का यह उत्तर सुनकर तुलसी माता का हृदय आहत हो गया। वे अत्यंत क्रोधित हुईं और उन्होंने गणेश जी को श्राप दिया—”हे गणेश! तुम्हारा विवाह अवश्य होगा और वह भी दो कन्याओं से।” तुलसी के इस श्राप का प्रभाव हुआ और कालांतर में गणेश जी का विवाह रिद्धि और सिद्धि नामक ब्रह्मा जी की पुत्रियों से हुआ। तुलसी के श्राप के कारण ही गणेश जी की दो पत्नियाँ मानी जाती हैं और उनके दो पुत्र—शुभ और लाभ—जन्मे।
तुलसी के श्राप से आहत होकर गणेश जी भी मौन नहीं रहे। उन्होंने भी तुलसी माता को श्राप दे डाला। गणेश जी ने कहा—”हे तुलसी! तुम्हारा विवाह देवों या ऋषियों से नहीं होगा, बल्कि एक असुर कुल में होगा।” इस श्राप के फलस्वरूप तुलसी माता का विवाह असुरों के राजा जलंधर से हुआ। जलंधर अपनी शक्ति और पराक्रम के लिए विख्यात था, किंतु वह एक दानव ही था।
श्राप मिलने के बाद तुलसी माता को अपनी भूल का एहसास हुआ। वे गणेश जी के चरणों में जाकर क्षमा याचना करने लगीं। तब गणेश जी ने उन्हें यह आशीर्वाद दिया कि भविष्य में वे एक पवित्र पौधे के रूप में प्रकट होंगी, जिसे समस्त देवताओं और भक्तों द्वारा पूजनीय माना जाएगा। यह आशीर्वाद ही कारण बना कि तुलसी का पौधा हर हिंदू परिवार में पूजित होता है और उसे माँ लक्ष्मी का स्वरूप माना जाता है।
हालाँकि, गणेश जी ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि “मेरी पूजा में कभी भी तुम्हारा प्रयोग नहीं होगा।” यही कारण है कि आज भी गणेश जी की आराधना में तुलसी पत्र अर्पित नहीं किए जाते। तुलसी और गणेश जी के इस श्राप प्रसंग के कारण उनके बीच बैर भाव माना जाता है, जबकि तुलसी अन्य सभी देवताओं की पूजा में प्रमुख स्थान रखती हैं।
इस प्रकार, यह कथा न केवल तुलसी माता और गणेश जी के श्राप का रहस्य उजागर करती है, बल्कि यह भी समझाती है कि क्यों गणेश पूजा में तुलसी का प्रयोग वर्जित है और क्यों तुलसी का पौधा हिंदू धर्म में इतना पवित्र स्थान रखता है।