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गणेश जी और परशुराम का युद्ध – क्यों हुआ था देवता से देवता का टकराव?

By Admin

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गणेश जी और परशुराम का युद्ध

भगवान गणेश को प्रथम पूज्य माना गया है। ऐसा इसलिए क्योंकि ये सभी देवों में सबसे पहले पूजे जाते हैं। किसी भी पूजा-पाठ में सबसे पहले भगवान गणेश का आवाहन किया जाता है। उसके बाद ही किसी अन्य देवी-देवता की पूजा होती है।

गणेश जी और परशुराम का युद्ध – क्यों हुआ था देवता से देवता का टकराव?
गणेश जी और परशुराम

गणेश जी अपने भक्तों के बीच एकदंत, विघ्नहर्ता, लंबोदर और न जाने किन-किन नामों से जाने जाते हैं। वहीं दूसरी ओर हैं भगवान परशुराम। परशु पराक्रम का प्रतीक होता है और राम  सत्य और सनातन का पर्याय है। इस प्रकार परशुराम का अर्थ पराक्रम के कारक और सत्य के धारक हुआ।

पुराणों में इन दोनों देवताओं के बीच युद्ध का प्रसंग आया है। आगे हम जानते हैं कि आखिर क्या कारण था कि भगवान गणेश और परशुराम के बीच युद्ध हुआ। ब्रह्मवैवर्तपुराण के अनुसार एक बार भगवान परशुराम अपने इष्ट भगवान शंकर के दर्शन के लिए कैलाश गए। वहां भगवान शिव माता पार्वती के साथ विराजमान थे। साथ ही माता पार्वती को राम-कथा सुना रहे थे। कथा में बाधा उत्पन्न न हो इसके लिए उन्होंने अपना दिव्य त्रिशूल गणेश जी को प्रदान कर दरवाजे पर खड़ा कर दिया। साथ ही साथ यह उपदेश दिया कि किसी को भी भीतर न आने दिया जाए।

परशुराम भगवान कैलाश पहुंचकर सीधे भगवान शंकर के दर्शन के लिए सीधे कैलाश द्वार में प्रवेश करने लगे। द्वार पर नंदी, शृंग आदि शिवगणों से उनकी भेंट हुई। परशुराम जी ने उनसे शिव जी के बारे में पूछा कि इस समय वे कहां हैं? इस पर नंदी ने कहा कि इस बात की उन्हें कोई जानकारी नहीं है कि शिव जी कहां हैं। इस पर परशुराम जी ने नंदी आदि शिवगणों पर गुस्सा करते हुए कहा कि तुम्हें यह भी नहीं पता कि तुम्हारे आराध्य देव कहां हैं। ऐसे में तुम शिवगण कहलाने के लायक ही नहीं हो।

परशुराम जी ने शिवगणों पर क्रोध किया और खुद शिव जी को ढूंढने कैलाश में प्रवेश कर गए। बहुत ढूंढने के बाद भी उन्हें भगवान शंकर कहीं नहीं मिले। अंत में एक घर दिखाई दिया, जहां द्वार पर एक बालक पहरा दे रहा था। परशुराम जी उस बालक के पास पहुंचे और वहीं से द्वार में प्रवेश करने लगे। तब गणेश जी ने उन्हें वहीं रोक दिया। इस पर परशुराम जी ने कहा तुम कौन हो जो मुझे इस तरह यहां रोकने का प्रयास कर रहे हो? इस पर गणेश जी ने कहा आप कौन हैं जो इस तरह अंतःपुर में बिना अनुमति के प्रवेश कर रहे हैं।

इतने में नंदी आदि शिवगण वहां आए और परशुराम जी को बताया ये गजमुख माता पार्वती के पुत्र गणेश जी हैं। साथ ही गणेश जी से कहा कि ये परशुधारी भगवान शिव के भक्त परशुराम हैं। परशुराम जी ने कहा कि ये विचित्र बालक, जिसका मुंह गज का है और बाकी का शरीर इंसान का, कैसे माता पार्वती का पुत्र हो सकता है। तभी गणेश जी ने परशुराम का उपहास करते हुए कहा कि आप देखने में तो ब्राह्मण लगते हैं, लेकिन आपके हाथों में कमंडल की जगह ये परशु क्यों है? इस पर दोनों में बहस होती रही।

फिर इसके बाद परशुराम ने शिव से मिलने के लिए उनके निवास स्थान पर जाने लगे। इतने में गणेश जी ने शिव जी द्वारा दिए गए त्रिशूल को परशुराम के सामने कर उन्हें युद्ध के लिए सावधान किया। उधर परशुराम जी ने भी अपना परशु तान कर चुनौती स्वीकार की। फिर दोनों के बीच भयंकर युद्ध शुरू हो गया। इस युद्ध में परशुराम जी द्वारा फारसे से एक दांत काट दिए जाने के कारण इनका नाम एकदंत भी पड़ा।

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