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गणेश जी का विवाह – रिद्धि और सिद्धि से

By Admin

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गणेश जी का विवाह रिद्धि सिद्धि के साथ

गणेश पुराण के अनुसार भगवान गणेश के विवाह की कथा अत्यंत रोचक है। गणेश जी अपने विशिष्ट रूप – एक दांत, लंबोदर शरीर और मूषक वाहन के कारण विवाह में आने वाली बाधाओं से परेशान हो गए थे। कई देवताओं की पुत्रियों के लिए उनके साथ विवाह स्वीकार करना कठिन हो रहा था। इससे गणेश जी रुष्ट हो गए और उन्होंने अपने वाहन मूषक के साथ मिलकर देवताओं के विवाह में बाधा डालनी शुरू कर दी। जब भी किसी देवता का विवाह होता, गणेश जी वहां अवरोध उत्पन्न कर देते।

गणेश जी का विवाह – रिद्धि और सिद्धि से
गणेश जी का विवाह रिद्धि सिद्धि के साथ

देवताओं के लिए यह स्थिति गंभीर हो गई और वे सभी ब्रह्मा जी के पास पहुंचे। ब्रह्मा जी ने उनकी समस्या सुनी और समाधान के रूप में अपनी दो पुत्रियों रिद्धि और सिद्धि को गणेश जी के पास शिक्षा ग्रहण करने भेजा। रिद्धि और सिद्धि अत्यंत बुद्धिमान और गुणवान थीं। जब भी गणेश जी को किसी देवता के विवाह की सूचना मिलती और वे वहां विघ्न डालने का प्रयास करते, रिद्धि और सिद्धि अपने ज्ञान और सौम्यता से उनका ध्यान भटका देतीं। इस प्रकार देवताओं के विवाह निर्विघ्न संपन्न होने लगे।

जब गणेश जी को इस बात का एहसास हुआ कि रिद्धि और सिद्धि ने ही उन्हें व्यस्त रखा था ताकि विवाह बिना किसी विघ्न के पूरे हो सकें, तो वे पहले तो क्रोधित हुए। उसी समय नारद जी वहां प्रकट हुए और उन्होंने गणेश जी को समझाया कि रिद्धि और सिद्धि उनके योग्य जीवनसाथी हैं। नारद जी ने विवाह का प्रस्ताव रखा और गणेश जी ने भी इसे स्वीकार कर लिया।

इस प्रकार गणेश जी का विवाह रिद्धि और सिद्धि से संपन्न हुआ। विवाह के बाद गणेश जी को दो पुत्र हुए – शुभ और लाभ। रिद्धि, सिद्धि और उनके पुत्रों के साथ गणेश जी को परिवार का स्वरूप मिला और तभी से उन्हें विघ्नहर्ता और मंगलकर्ता के रूप में पूजा जाने लगा।

यह कथा इस बात का प्रतीक है कि जब ज्ञान (रिद्धि) और सिद्धि (सफलता) किसी के साथ होती है, तो जीवन में हर कार्य शुभ और लाभकारी हो जाता है।

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