📅 वराह जयंती 2025 तिथि व समय (Tithi Detail)
- तिथि – 13 सितम्बर 2025, शनिवार
- पक्ष – भाद्रपद माह, शुक्ल पक्ष, द्वादशी तिथि
- समय – द्वादशी तिथि प्रारंभ: 12 सितम्बर 2025, रात्रि 11:36 बजे
- द्वादशी तिथि समाप्त: 13 सितम्बर 2025, रात्रि 09:47 बजे
- पूजन का शुभ मुहूर्त – 13 सितम्बर को प्रातःकाल सूर्योदय से मध्यान्ह तक
🌸 वराह जयंती का परिचय
वराह जयंती को भगवान विष्णु के तीसरे अवतार की स्मृति में मनाया जाता है। शास्त्रों के अनुसार, जब दैत्य हिरण्याक्ष ने पृथ्वी को पाताल लोक में डुबो दिया था, तब भगवान विष्णु ने वराह (सूकर) रूप धारण कर पृथ्वी का उद्धार किया। यह अवतार सत्य युग में हुआ था और इसे धरणी उद्धारक अवतार कहा जाता है।
वराह जयंती विशेषकर दक्षिण भारत में बड़े उत्साह से मनाई जाती है। भक्त इस दिन भगवान विष्णु के मंदिरों में जाकर रुद्राभिषेक, भजन-कीर्तन और विशेष पूजा करते हैं।
📖 वराह अवतार की कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, दैत्यराज हिरण्याक्ष ने तपस्या से वरदान प्राप्त कर लिया था कि उसे कोई भी देवता या मनुष्य नहीं मार सकेगा। वरदान के प्रभाव से वह अत्यंत शक्तिशाली हो गया और तीनों लोकों में उत्पात मचाने लगा।
उसने पृथ्वी को पाताल लोक में डुबो दिया। सृष्टि का संतुलन बिगड़ गया। तब देवताओं ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की।
भगवान विष्णु ने अर्ध-मानव, अर्ध-वराह रूप धारण किया और समुद्र में गोता लगाया। उन्होंने अपने दाँतों पर पृथ्वी को उठाकर सुरक्षित स्थान पर स्थापित किया और भयंकर युद्ध के बाद हिरण्याक्ष का वध कर दिया।
इस प्रकार भगवान ने पृथ्वी का उद्धार किया और धर्म की पुनः स्थापना की।
जब भगवान विष्णु ने लोक कल्याण हेतु किया छल
🙏 पूजा विधि
वराह जयंती के दिन श्रद्धालु निम्न विधियों से पूजा करते हैं –
- प्रातः स्नान व संकल्प – सूर्योदय से पहले स्नान कर पवित्र संकल्प लें।
- मंदिर दर्शन – भगवान विष्णु या वराह स्वरूप के मंदिर जाएँ।
- अभिषेक – भगवान की मूर्ति को पंचामृत (दूध, दही, शहद, घी, गंगाजल) से स्नान कराएँ।
- मंत्र जाप – “ॐ नमो भगवते वराहाय नमः” का जप करें।
- भजन-कीर्तन – दिनभर हरि नाम संकीर्तन, विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें।
- व्रत – इस दिन उपवास या फलाहार करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
- दान-पुण्य – गरीबों व ब्राह्मणों को अन्न, वस्त्र और दक्षिणा का दान दें।
📜 वराह अवतार स्तुति (गीतगोविन्द से)
श्री जयदेव गोस्वामी के दशावतार स्तोत्र में वराह अवतार की अद्भुत स्तुति मिलती है –
वसति दशनशिखरे धरणी तव लग्ना ।
शशिनि कलंकलेव निमग्ना ॥
केशव धृतसूकररूप जय जगदीश हरे ॥३॥
अर्थ: हे जगत्पति केशव! आपने वराह रूप धारण कर अपने दाँतों पर पृथ्वी को वैसे धारण किया है, जैसे चन्द्रमा में कलंक बसा होता है।
✨ वराह जयंती का महत्व
- इस दिन पूजा करने से पापों का नाश होता है।
- जीवन में धन, स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि आती है।
- भगवान वराह की कृपा से भय और रोग दूर होते हैं।
- भक्त को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
- यह दिन धार्मिक व पारिवारिक समृद्धि के लिए विशेष माना जाता है।
🛕 प्रसिद्ध वराह मंदिर
- मथुरा (उत्तर प्रदेश) – यहाँ भगवान वराह का अत्यंत प्राचीन मंदिर है।
- भुवराह स्वामी मंदिर (तिरुमाला, आंध्र प्रदेश) – यहाँ वराह जयंती पर भव्य अभिषेक और पूजा होती है।
- खजुराहो (मध्य प्रदेश) – यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल पर स्थित वराह मंदिर, जिसमें भगवान की विशाल प्रतिमा स्थापित है।
📅 भविष्य की तिथियाँ
- 2026 – 13 सितम्बर
- 2027 – 3 सितम्बर
📅 पिछले वर्ष की तिथियाँ
- 2024 – 6 सितम्बर
- 2023 – 17 सितम्बर
- 2022 – 30 अगस्त
- 2021 – 9 सितम्बर
भगवान विष्णु के 108 नाम