भद्रा काल को हिंदू धर्म में अशुभ समय माना जाता है। यह पंचांग की गणना से जुड़ा हुआ विशेष करण है। मान्यता है कि भद्रा काल में किए गए शुभ कार्य सफल नहीं होते, बल्कि बाधाएँ आती हैं। इसलिए शादी-विवाह, गृह प्रवेश, नया व्यवसाय, मुंडन आदि मंगल कार्य इस अवधि में वर्जित माने जाते हैं।
भद्रा का पौराणिक महत्व
- भद्रा को सूर्य देव की पुत्री और शनि देव की बहन माना जाता है।
- पौराणिक मान्यता के अनुसार, भगवान ब्रह्मा ने भद्रा को यह वरदान दिया था कि वह प्रत्येक पक्ष में आठ दिन उपस्थित रहेगी।
- भद्रा का प्रभाव मनुष्य के कर्म, शुभ कार्यों और सामाजिक गतिविधियों पर प्रत्यक्ष रूप से पड़ता है।
भद्रा कब आती है?
भद्रा हर माह के शुक्ल और कृष्ण पक्ष में चार-चार बार आती है।
- शुक्ल पक्ष
- अष्टमी और पूर्णिमा के प्रथम भाग में
- चतुर्थी और एकादशी के उत्तरार्ध में
- कृष्ण पक्ष
- तृतीया और दशमी के उत्तरार्ध में
- सप्तमी और चतुर्दशी के प्रथम भाग में
भद्रा काल की अवधि
- सामान्यतः भद्रा लगभग 12 घंटे रहती है।
- भद्रा का मुख (आरंभिक भाग) अशुभ माना जाता है।
- भद्रा की पूंछ (अंतिम भाग) कुछ हद तक शुभ मानी जाती है (लगभग 1 से 1.5 घंटे)।
भद्रा काल 2025 (उदाहरण)
- आरंभ: गुरुवार, 21 अगस्त 2025 को दोपहर 12:44 बजे
- समाप्ति: शुक्रवार, 22 अगस्त 2025 को रात 12:16 बजे
भद्रा में क्या नहीं करना चाहिए?
❌ विवाह
❌ गृह प्रवेश
❌ मुंडन
❌ रक्षाबंधन
❌ नया व्यापार शुरू करना
❌ शुभ यात्रा
कौन सी भद्रा शुभ होती है?
✔ शुक्ल पक्ष की चतुर्थी, एकादशी, तृतीया
✔ कृष्ण पक्ष की दशमी
इन तिथियों पर पड़ने वाली भद्रा को तुलनात्मक रूप से शुभ माना गया है।
भद्रा के प्रकार (लोक के आधार पर)
- स्वर्ग लोक भद्रा – शुभ, परंतु देव कार्यों में व्यवधान (चंद्रमा मेष, वृषभ, मिथुन, वृश्चिक में)।
- पाताल लोक भद्रा – धन व समृद्धि प्रदान करने वाली (चंद्रमा कन्या, तुला, धनु, मकर में)।
- पृथ्वी लोक भद्रा – अशुभ, सभी कार्यों में बाधा डालने वाली (चंद्रमा कर्क, सिंह, कुंभ, मीन में)।
भद्रा के 12 नाम
- धन्या
- दधिमुखी
- भद्रा
- महामारी
- खरना
- कालरात्रि
- महारुद्र
- विष्टि
- कुलपुत्रिका
- भैरवी
- महाकाली
- बीमाक्षयकारी
🙏 मान्यता है कि भद्रा के बुरे प्रभाव से बचने के लिए सुबह उठकर इन 12 नामों का जाप करना चाहिए।