विद्या पर संस्कृत में 5 श्लोक अर्थ सहित। 5 Sanskrit Shlok on Vidya

विद्या वह अनमोल धन है जो हमें ज्ञान, समझ, विचार, और सम्पूर्ण व्यक्तित्व के विकास में सहायता प्रदान करती है। भारतीय संस्कृति में विद्या को महत्वपूर्ण माना जाता है और इसके बारे में विभिन्न श्लोकों ने उच्चारित किए गए हैं। इस लेख में, हम विद्या पर संस्कृत में 5 श्लोकों (Sanskrit Shlok on Vidya ) के बारे में चर्चा करेंगे जो विद्या की महत्ता और महानता को दर्शाते हैं।

विद्या क्या है? । विद्या प्रकार 

विद्या शब्द संस्कृत भाषा से लिया गया है जो ज्ञान का प्रतीक है। विद्या जीवन में ज्ञान को प्राप्त करने की क्रिया को सूचित करती है। इससे न केवल हमारी सोच विकसित होती है, बल्कि हमें उच्चतर मानसिक और आध्यात्मिक स्तर की प्राप्ति भी होती है। विद्या की प्राप्ति से हमें समझ, अनुभव, विवेक, विचारशीलता, और सही निर्णय लेने की क्षमता प्राप्त होती है।

हिन्दू धर्मग्रंथों में परा और अपरा विद्याएं दो विभाजनों के रूप में प्रस्तुत की जाती हैं, जिन्हें लौकिक और पारलौकिक विद्याएं भी कहा जाता है।

 

14 परा विद्याएं:

 

  1. शिक्षा: शिक्षा विद्या के आधारभूत सिद्धांतों, ज्ञान और शिक्षार्थी के विकास के लिए समर्पित है।
  2. कल्प: कल्प, यज्ञ और धार्मिक आचार-व्यवहार के नियमों को संकल्पित करने और संरक्षित करने के लिए है।
  3. व्याकरण: व्याकरण विज्ञान के नियमों, भाषा के संरचना और वाक्य निर्माण के अध्ययन पर ध्यान केंद्रित करता है।
  4. निरुक्त: निरुक्त, वैदिक शब्दों के अर्थों की व्याख्या और शब्दार्थ-निर्माण के प्रयास में निरूपित है।
  5. छंद: छंद शास्त्र श्लोकों, छंदसाम्राज्ञी और कविता-गीत में छंद के नियमों का अध्ययन करता है।
  6. नक्षत्र: नक्षत्र विज्ञान ग्रहों, राशियों और नक्षत्रों के अध्ययन को समर्पित है।
  7. वास्तु: वास्तु शास्त्र भवनों, मकानों, मंदिरों और वास्तुकला के निर्माण के नियमों का अध्ययन करता है।
  8. आयुर्वेद: आयुर्वेद स्वास्थ्य, रोग प्रतिरोध, औषधि चिकित्सा और जीवन की गुणवत्ता को समर्पित है।
  9. वेद: वेद सबसे पुराने हिन्दू धर्मग्रंथ हैं और इसमें धार्मिक मन्त्र, यज्ञों की विधियाँ, ज्ञान और आचार्यों के उपदेश शामिल हैं।
  10. कर्मकांड: कर्मकांड यज्ञ, पूजा, हवन, व्रत और धार्मिक क्रियाओं के नियमों पर ध्यान केंद्रित करता है।
  11. ज्योतिष: ज्योतिष ग्रहों, राशियों, नक्षत्रों और ज्योतिषीय योग्यताओं के अध्ययन को समर्पित है।
  12. सामुद्रिक शास्त्र: सामुद्रिक शास्त्र हस्तरेखा, मुख शास्त्र, पैरों की रेखाएं और शरीर के लक्षणों का अध्ययन करता है।
  13. हस्तरेखा: हस्तरेखा लक्षणों, रेखाओं और नक्शों के माध्यम से भविष्यवाणी करने का अध्ययन करती है।
  14. धनुर्विद्या: धनुर्विद्या तीरंदाजी और आस्त्र-शस्त्र के नियमों, तकनीकों और युद्धकालीन विद्या पर ध्यान केंद्रित करती है।



ये सभी परा विद्याएं हिन्दू धर्म में महत्वपूर्ण हैं और ज्ञान, धर्म, आर्थिक एवं सामाजिक दृष्टि से मान्यता प्राप्त हैं।

 

विद्या पर 5 संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित | Sanskrit Shlok on Vidya With Meaning

श्लोक 1: विद्या ददाति विनयं

विद्या ददाति विनयं, विनयाद्याति पात्रताम्‌।
पात्रत्वाद्धानमाप्नोति धानाद्धर्मं ततः सुखम्‌॥

अनुवाद:

विद्या विनय का उपहार देती है, विनय पात्रता को प्राप्त कराती है।
पात्रता से धार्मिकता प्राप्त होती है, और धार्मिकता से सुख प्राप्त होता है।

विवरण: यह श्लोक बताता है कि विद्या न केवल ज्ञान देती है, बल्कि यह हमें विनय और पात्रता की प्राप्ति कराती है। विनय और पात्रता की प्राप्ति से हम धार्मिकता को प्राप्त करते हैं और इससे हमें सुख मिलता है।

विवरण: 

यह श्लोक हमें बताता है कि विद्या का कोई समान नहीं होता। विद्या हमें बन्धु और सुहृद् की भावना प्रदान करती है, जो और कोई सम्पत्ति नहीं कर सकती। इसके साथ ही, विद्या हमें असली सुख प्रदान करती है, जो किसी भी धन की तुलना में महत्वपूर्ण है।

 

श्लोक 2: विद्या का महत्वपूर्ण योगदान

नास्ति विद्यासमो बन्धुर्नास्ति विद्यासमः सुहृत्।
नास्ति विद्यासमं वित्तं नास्ति विद्यासमं सुखम्॥

अनुवाद:

किसी के लिए विद्या के समान बन्धु नहीं होता, किसी के लिए विद्या के समान सुहृद् नहीं होता।
धन के समान विद्या नहीं होती, सुख के समान विद्या नहीं होती॥

विवरण: 

इस श्लोक में हमें यह समझाया जाता है कि विद्या का कोई समान नहीं होता है। विद्या हमें अनुशासन और ज्ञान का सामर्थ्य प्रदान करती है, जो धन और सुख की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण है। यह श्लोक हमें यह भी सिखाता है कि हमें विद्या का महत्व समझना चाहिए और उसे अपने जीवन में अपनाना चाहिए।

 

श्लोक 3: विद्या और जीवन के संबंध

आयुः कर्म च विद्या च वित्तं निधनमेव च।
पञ्चैतानि विलिख्यन्ते गर्भस्थस्यैव देहिनः॥

अनुवाद:

जीवन, कर्म, विद्या, धन और मृत्यु, ये पांच वस्तुएँ गर्भस्थ बच्चे के द्वारा ही निश्चित की जाती हैं॥

विवरण: 

यह श्लोक हमें बताता है कि जीवन, कर्म, विद्या, धन और मृत्यु जैसी पांच वस्तुएँ हमारे जीवन के आदर्श मूल्यों के साथ जुड़ी होती हैं। इन्हें हम अपने जीवन में संतुलित रूप से स्वीकार करना चाहिए। विद्या इस संदर्भ में एक महत्वपूर्ण तत्व है जो हमें सही रास्ता दिखा सकती है और सफलता की ओर आग्रह कर सकती है।

 

श्लोक 4: विद्या के गुण

विद्याभ्यास स्तपो ज्ञानमिन्द्रियाणां च संयमः।
अहिंसा गुरुसेवा च निःश्रेयसकरं परम्॥

अनुवाद:

विद्याभ्यास, तपस्या, ज्ञान और इंद्रियों के संयम के माध्यम से विद्या प्राप्त की जा सकती है।
अहिंसा और गुरु की सेवा ही सर्वोत्तम कार्य है॥

विवरण: यह श्लोक हमें विद्या के गुणों के बारे में बताता है। इसमें विद्याभ्यास, तपस्या, ज्ञान और इंद्रियों के संयम का महत्व बताया गया है। इन गुणों के द्वारा हम विद्या को प्राप्त कर सकते हैं। इसके साथ ही, अहिंसा और गुरु की सेवा ही सर्वोत्तम कार्य है, जो हमें सही मार्ग पर ले जाती है और निःश्रेयस को प्राप्ति कराती है।

 

श्लोक 5: विद्या का महत्वपूर्ण स्वरूप

विद्या नाम नरस्य रूपमधिकं प्रच्छन्नगुप्तं धनम्।
विद्या भोगकरी यशः सुखकरी विद्या गुरूणां गुरुः।
विद्या बन्धुजनो विदेशगमने विद्या परं दैवतम्।
विद्या राजसु पुज्यते न हि धनं विद्याविहीनः पशुः॥

अनुवाद:

विद्या नाम नर की सबसे बड़ी धन और यश है, जो छिपा हुआ और गुप्त है।
विद्या भोगों को प्रदान करने वाली है, यश की प्राप्ति कराने वाली है, विद्या गुरुओं की गुरु है।
विद्या बन्धुओं की सहायता करती है, विदेश यात्रा में मार्गदर्शन करती है, विद्या परम दैवता है।
विद्या राजसभा में पूज्य होती है, इसलिए विद्याविहीन पशु की तुलना में धन का महत्व नहीं होता॥

विवरण: 

इस श्लोक में हमें विद्या का महत्वपूर्ण स्वरूप बताया गया है। यहां कहा गया है कि विद्या नर की सबसे बड़ी धन और यश है, जो छिपा हुआ और गुप्त होता है। विद्या भोगों को प्रदान करती है, यश की प्राप्ति कराती है और गुरुओं की गुरु है। विद्या हमें बन्धुओं की सहायता करती है, विदेश यात्रा में मार्गदर्शन करती है और विद्या ही परम दैवता है। इसलिए विद्या राजसभा में पूज्य होती है और विद्याविहीन पशु की तुलना में धन का महत्व नहीं होता।

श्लोक : येषां न विद्या न तपो न दानं,

येषां न विद्या न तपो न दानं,
ज्ञानं न शीलं न गुणो न धर्मः ।
ते मर्त्यलोके भुविभारभूता,
मनुष्यरूपेण मृगाश्चरन्ति ॥ [चाणक्य नीति / 10 / 7]

हिन्दी भावार्थ:

चाणक्य नीति के इस श्लोक में कहा गया है कि जिन लोगों के पास विद्या, तपस्या, दान, ज्ञान, शील, गुण, और धर्म नहीं होते, वे मानव लोक, पृथ्वी में भार होते हैं और मानव स्वरूप में ही मृग की की भाँति (तरह) घूमते रहते हैं। इस श्लोक ने सार्थकता की महत्ता पर जोर दिया है और व्यक्ति को उसकी मूल्यांकन में समझाया है। यह शिक्षा देता है कि विद्या, धर्म, और सार्थक जीवन बिना इन्हें नाम के मात्र से नहीं बल्कि उनकी अमली रूप से होता है।

विद्या श्लोकों का जाप करने के लाभ 

  1. बुद्धि की स्थिरता: विद्या श्लोकों का जाप करने से बुद्धि में स्थिरता आती है। ये श्लोक आपके विचार शक्ति को बढ़ाते हैं और सही निर्णय लेने में मदद करते हैं।
  2. ध्यान और मेधा शक्ति का विकास: विद्या श्लोकों का जाप करने से ध्यान और मेधा शक्ति में वृद्धि होती है। ये श्लोक आपकी संवेदनशीलता को विकसित करते हैं और आपको आत्मसात करने में मदद करते हैं।
  3. पूर्णता की प्राप्ति: विद्या श्लोकों का जाप करने से आपका जीवन पूर्णता की ओर प्रवृत्त होता है। ये श्लोक आपको धार्मिक और मानवीय महत्वपूर्ण मूल्यों को समझने में मदद करते हैं और आपको उन्नति की ओर ले जाते हैं।

समाप्ति

विद्या पर संस्कृत में ये 5 श्लोक हमें विद्या के महत्व और उसके गुणों के बारे में शिक्षा देते हैं। विद्या हमारे जीवन में महत्वपूर्ण है और हमें सही रास्ता दिखा सकती है। इसलिए, हमें विद्या को महत्व देना चाहिए और उसे अपने जीवन में अपनाना चाहिए। विद्या हमें सच्ची संवेदनशीलता, अनुशासन और सफलता की ओर ले जाती है। यह हमारे समाज और राष्ट्र के विकास के लिए महत्वपूर्ण है।

FaQ’s

ऐसा कौन सा श्लोक है जिसमें विद्या को सर्वश्रेष्ठ कहा गया है?

न चौरहार्यं न च राजहार्यं न भ्रातृभाज्यं न च भारकारि। व्यये कृते वर्धत एव नित्यं विद्याधनं सर्वधनप्रधानम्॥ इस श्लोक का अर्थ होता है कि विद्याधन किसी भी चोरी नहीं जा सकता, राजा छीन नहीं सकता, भाईयों में इसका भाग नहीं होता, और इसका भार नहीं लगता है। बल्कि जितना व्यय किया जाए, विद्याधन उत्कृष्टता की ओर बढ़ता है। इसलिए, सत्य के द्वारा कहा जाए तो विद्याधन सबसे श्रेष्ठ है।

संस्कृत में विद्या का अर्थ क्या होता है?

संस्कृत में “विद्या” शब्द का अर्थ होता है “ज्ञान” या “शिक्षा”। यह शब्द विभिन्न रूपों में प्रयोग होता है, जैसे कि शिक्षा, ज्ञान, अध्ययन आदि। विद्या एक व्यापक शब्द है जो मनुष्य को ज्ञान और संवेदनशीलता की प्राप्ति कराता है।

संस्कृत में श्लोक का अर्थ क्या है?

संस्कृत में “श्लोक” शब्द का अर्थ होता है “शब्दसंग्रह” या “गाथा”। यह एक प्रकार की कवितात्मक रचना होती है जो साधारणतः चौपाई छंद में लिखी जाती है। श्लोक एक प्राचीनतम संस्कृतियों में सबसे प्रमुख रूप से प्रयोग होने वाला काव्यात्मक ढंग है।

 

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7 thoughts on “विद्या पर संस्कृत में 5 श्लोक अर्थ सहित। 5 Sanskrit Shlok on Vidya”

    • आपकी पूछे हुवे श्लोक की संपूर्ण श्लोक इस प्रकार हे –

      येषां न विद्या न तपो न दानं,
      ज्ञानं न शीलं न गुणो न धर्मः ।
      ते मर्त्यलोके भुविभारभूता,
      मनुष्यरूपेण मृगाश्चरन्ति ॥ [चाणक्य नीति / 10 / 7]

      और यह श्लोक की हिंदी अनुबाद व अर्थ कुछ इस प्रकार हे-

      “जीनके पास न तो विद्या है, न तपस्या, न दान, न ज्ञान, न शील, न गुण और न ही धर्म है,वे लोग इस पृथ्वी/मर्त्यलोक पर भार हैं, मनुष्य के रूप में और मृगों की तरह चरने वाले होते हैं॥”

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