परोपकारी राजा शिवि चक्रवर्ती
कभी किसी समय में शिवि नामक एक श्रेष्ठ राजा रहता था। वह बहुत उदार एवं दानशील व्यक्ति था और इसलिए बहुत यश प्राप्त किया । उसकी कीर्ति पूरे विश्व में व्याप्त होकर स्वर्ग तक पहुँच गया था।
स्वर्गाधिपति इन्द्र ने शिवि के वश की वास्तविकता की परीक्षा लेना चाहा। इन्द्र और अग्निदेव दोनों स्वर्ग से निकले। अग्नि ने पंडुक का तथा इंद्र ने बाज का रूप धारण किया। अग्नि आगे आगे अपने पंख पसारकर ऐसा उड़ रहा था मानो वह भयभीत होकर भाग रहा हो। पीछे — पीछे क्रुद्ध बाज यानी इंद्र पंख पसारकर उड़ रहा था मानो वह पंडुक को डरा रहा हो। दोनों सीधे राजा शिवि के महल में पहुँचे।
शिवि अपने उद्यान में निर्धनों को दान दे रहा था। पंडुक साधे आकर शिवि की कलाई पर आकर बैठी तथा आँसू भरे भयकंपित आँखो से देखने लगी । तुरंत शिवि ने उसे अपने हाथों में लिया। उसके पीठ पर थपथपाते हुए राजा ने कहा ‘डर मत पंडुक, मैं तुम्हें सभी अडचनों से बचाऊँगा ।
राजा जैसे ही कह रहा था, उसी दौरान वाज ने आकर राजा के हाथों से पंडुक को छीनकर ले जाने का प्रयास किया। इतने में राजा ने हाथ उठाकर बाज को रोका। बाज राजा पर आगबबूला होकर, आदमी
की भांति बोलने लगा, यथा ‘यह पंडुक मेरा शिकार है, मैं तो उसे सुबह से पीछा कर रहा था। तुम मुझे रोकने वाले कौन हो?
बाज को आदमी जैसे बोलते हुए देख, शिवि ने जवाब दिया यथा ‘मैं तुम्हें नहीं जानता। हे बाज! एक पक्षी, आदमी जैसे कैसे बोल पा रहा है। इस पंडुक ने भयभीत होकर मेरा आश्रय चाहा। इसलिए हर कष्ट से इसको बचाना अब मेरा दायित्व बनता है। मैं तुम्हें इसे छीनकर अपना शिकार बनाने नहीं दूंगा ।
तब बाज ने कहा ‘हे राजा! तुम दयावान व्यक्ति के रूप में ख्यात हो। इसीलिए हर आर्त को बचाना शायद तुम्हारा कर्त्तव्य हो । लेकिन क्या तुम्हारी आर्द्रता केवल पंडुक तक ही सीमित है? मेरा क्या होगा? क्या मैं तुम्हारी दयालुता को प्राप्त करने लायक नहीं हूँ? मैं बड़ा पक्षी हूँ और मैं केवल छोटे पक्षियों को खाकर जीता हूँ। मेरे शिकार को मुझसे दूर करके, मुझे मृत्युघाट पर उतार रहे हो, क्या यही तुम्हारा धर्म, कर्त्तव्य है?
शिवि चक्रवर्ती, मूक जैसा बन गया। बाज मानव की भांति बोल ही नहीं रहा था, बल्कि उसकी भांति वाद-विवाद भी कर रहा था। अब राजा को दोनों ओर के प्रति जो कर्तव्य था, उसको अनिवार्य रूप से निभाना पड़ गया था। उसने बहुत बहुत सोचा। अंत में उसने ऐसा कहा- ‘हे बाज! जो भी बात तुम कह रहे हो, वह सत्य है। मैं तुम्हें भूखो मरने नहीं दूंगा। मैं इस भवयुक्त पंडुक को भी दे नहीं सकता। अगर तुम्हें पंडुक की जगह, दूसरे प्रकार के माँस का आयोजन करूँ तो तुम्हें कोई आपत्ति नहीं है न?
बाज ने कहा ‘हे राजा जब तक मेरी भूख नहीं मिटती, तब तक उसके बदले दूसरे प्रकार सी माँस को खाना बना हूँ। पंडुक के वजन से
समान का खाना मुझे देना पड़ेगा। अगर थोड़ा भी कम हुआ, तो वह मुझे स्वीकार्य नहीं होगा।’ उसने राजा से पूछा ‘लेकिन तुम किस प्रकार का माँस देना चाहते हो? तुम माँस को कहाँ से लाओगे? तुम इस पंडुक को बचाने के लिए, क्या किसी और प्राणी को मारोगे?’
शिवि ने तुरंत उत्तर दिया ‘नहीं, नहीं, तुम डरो मत, मैं किसी अन्य प्राणी को मारने की सोच भी नहीं रखता। इस पंडुक के बदले में अपना ही माँस दूँगा ।
शिवि ने तब अपनी सेवकों की ओर मुड़कर उनको तोलने का तराजू ले आने की आज्ञा दी। सेवकों ने राजा की आज्ञा का पालन किया तथा तराजू को राजा के सामने रखा। शिवि ने पंडुक को तराजू के एक ओर रखा। उसने तलवार निकालकर अपने शरीर से छोटे छोटे मौस के टुकडे काटकर दूसरी ओर रखने लगा। लेकिन आश्चर्य ! छोटा सा पंडुक अपना वजन बढ़ाने लगा और जितना भी माँस रखा जा रहा है. उससे तराजू समता को पा नहीं रहा था। शिवि, अपने शरीर से माँस के टुकडे निकाले ही जा रहा था।
इतना माँस कट गया कि उसके शरीर में काटने के लिए थोड़ा सा माँस भी नहीं बचा था। पंडुक के वजन से आश्चर्यचकित होकर, शिवि स्वयं तरीजू पर चढ़ गया। अब तराजू दोनों ओर समता को प्राप्त करने लगा। राजा, अब बहुत प्रसन्न हुआ क्योंकि कम-से-कम अब वह बाज को माँस दे पा रहा था। बाग में उसने वाज से पूछा ‘हे बाज ! मेरा वजन पंडुक के वजन के समान है। तुम कृपया मुझे रखा लो और पंडुक को छोड़ दो।
जैसे ही राजा ने इन शब्दों को मुखरित किया, तैसे ही आसमान से देवतागण जो इस परीक्षा को देख रहे थे, अपनी प्रसन्नता को करताल से प्रकट करने लगे। उन्होंने दिव्य मंगल वाद्य को वजाकर पुष्पवृष्टि करने लगे। पंडुक तथा बाज ने अपने रूपों को छोड़कर दिव्य विभव रूप धारण किया । शिबि इस सबको आश्चर्यपूर्वक देखने लगा ।
इन्द्र ने तब कहा ‘ओ राजा! मैं इन्द्र और ये अग्नि देव हैं, जो स्वर्ग से आपकी परीक्षा लेने आये। तुमने अपने को अपने नाम से भी श्रेष्ठ दिखा दिया । तुम भगवान से दीर्घायु तथा संपदा प्राप्त कर जीवित रहोगे । जब तक सूरज तथा चांद अपने नाम से भी रहेंगे, तब तक तुम्हारा श्रेय भी जिन्दा रहेगा।
इन शब्दों को कहते हुए इन्द्र ने शिवि को अपने हाथ से छुआ । आश्चर्य ! शिवि के शरीर के सभी घाव पूर गये। राजा ने पुनः पूर्ववैभव प्राप्त किया तथा शक्तिशाली बनकर दिखाई देने लगा। उन्होंने देवतागण को प्रणाम किया। वे शिवि को आशीर्वचन देकर अपने अपने स्थानों में वापस लौट गये ।