राजा नीलन
राजा नीलन चोल सम्राट का अंशदार्य शासक था । एक बार मंदिर में नीलन एक नृत्यांगना से आकृष्ट हुआ। वह एक सुंदर स्त्री थी, साथ-ही-साथ एक नृत्यांगना भी। वह एक चिकित्सक की दत्त पुत्री थी। उस ने बच्ची को पानी की टंकी के पास पाया। वह बच्ची अपने हाथ में कमल का फूल भी पकडी हुई थी। वैद्य ने उसकी परवरिश की तथा उसका नाम कुमुदवल्ली रखा ।
नीलन राजा ने, वैद्य के पास एक व्यक्ति को भेजकर कुमुदवल्ली का हाथ माँगा । कुमुदवल्ली ने भी विवाह के लिए सहमति दी बशर्ते नीलन से यह कहा कि उसको विवाह से पहले एक वर्ष भर के लिए हर दिन एक हजार आठ लोगों को भोजन खिलानी है। राजा ने सहमति दी।
राजा ने कुमुदवल्ली की बात को मान्यता दी तथा उसके शर्त का पालन भी किया। कुमुदवल्ली तथा नीलन का विवाह संपन्न हुआ । राजा ने तिरुनावैयानम् के भगवान श्रीमहाविष्णु की पूजा यथातथ करने लगा। इसके साथ साथ वह एक हजार आठ व्यक्तियों को भोजन भी खिला रहा था। वह हर दिन तुलसी माला पहनता था तथा माथे पर ऊर्ध्वपुण्ड्र भी लगा लेता था ।
इसके दौरान उसका पूरा खजाना खाली हो गया। नीलन अपने सम्राट को वार्षिक वित्तीय सहायता भी दे नहीं पाया। इसके कारण राजा को तिरुनावैयानम् के भगवान विष्णु मंदिर में बंदी बनाकर रखा गया ।
उसे न खाना मिलता था या प्यास बुझाने के लिए ना ही जल। वह भगवान की पूजा में ही लगा रहा।
एक रात को स्वप्न में राजा ने भगवान की आवाज सुनी यथा ‘सम्राट से कहो कि उसके सारे पैसे कांचीपुरम् में जमा की जाएगी।’ सम्राट ने राजा को अपने मंत्रियों तथा प्रधान सेनापति के साथ ले गया । वहाँ वागावती नदी के कूल पर बहुत सारी स्वर्ण मुद्रायें थैलियों में भरे पडे दिखाई दिये। वे मुद्रायें इतनी थीं कि उससे न ही सम्राट का कर्ज उतर जाता था, बल्कि नीलन अपने जीवन भर के समय, हर दिन एक हजार आठ लोगों को भर पेट खिला भी सकता था। इतनी संपदा नीलन को मिली ।’
चोल सम्राट ने तब अनुभव किया कि राजा नीलन की भक्ति उत्तम है। उन्होंने राजा से क्षमा याचना की क्योंकि उन्होंने राजा को दण्ड देकर सताया था। राजा से यह भी कहा गया था कि उनको कभी शुल्क देने की आवश्यकता नहीं है, वे उस धन का सदुपयोग कुछ और लोगों को भोजन खिलाने के लिए प्रयुक्त करें। जब भी भक्त विपदा में रहता है, तब भगवान उनका उद्धार करने स्वयं आता है।