WhatsApp चैनल फॉलो करें

Join Now

चतुर चिरकारी

By Admin

Updated:

चतुर चिरकारी


महान मुनियों में गौतम मुनि एक थे। उनके दस हजार शिष्य थे । नित्यप्रति वह साधु सभी शिष्यों को भोजन देता था तथा उन सबको रहने के लिए आवास भी दिया। लेकिन वह बड़ा क्रोधी था। हर छोटी चीज पर आग उगलता था ।

एक बार उसकी पत्नी अहल्या ने एक छोटी सी गलती की थी। गौतम मुनि आग बबूला हो उठे। उन्होंने अपने बेटे चिरकारी को बुलाकर आदेश दिया ‘कुटीर के अंदर जाकर तुम्हारी माँ को मार दो। उस जीने का अधिकार नहीं है।’ इस प्रकार का आदेश देकर गौतम मुनि वहाँ से निकल गये ।

चिरकारी विवेक संपन्न व्यक्ति था। वह हर एक काम को करने से पहले बहुत बार सोचता था। अब भी सोचने लगा, यथा ‘औरत को मारना अपराध है। अपनी ही माता को मारना घोर पाप है। लेकिन मैं अपने पिताजी का आदेश भी कैसे धिक्कारूँ? यह भी बड़ा पाप है।’

वह संशय में पड गया। उसने अपने पिताजी की आज्ञा का पालन करने में सप्ताह से भी अधिक समय लिया। इसके दौरान गौतम मुनि भी ध्यान में बैठकर अपने आदेश के बारे में सोचने लगे। उन्होंने सोचा मैं ने एक छोटे से कारण के लिए अपनी पत्नी को मारने का आदेश दिया । वह जानता था कि चिरकारी अविवेकी न होकर सही उपाय ढूँढेगा । गौतम कुटीर के अंदर बड़ी व्यथा के साथ गया।

चतुर चिरकारी

गौतम ने चिरकारी को बुलाया। चिरकारी बाहर निकलकर अपने पिताजी से क्षमा माँगते हुए कहा मैं ने आपके आदेश का पालन नहीं किया क्यों कि मुझे अभी तक यह पता नहीं चला कि आपके आदेश का पालन करना सही है या गलत है।

गौतम मुनि ने अपने बेटे से आलिंगन किया।

मुनि ने कहा ‘मैं बहुत प्रसन्न हूँ क्योंकि तुमने मेरे आदेश का पालन नहीं किया। अगर तुमने उसे मार दिया होता, तो मैं भी अब तक मर गया होता! तुमने दो प्राणों को बचाया। धन्यवाद हे वत्स!’ गौतम मुनि ने बाद में अपनी पत्नी अहल्या से कहा ‘चिरकारी जैसे पुत्र को जन्म देकर तुम धन्य बन गयी हो। वह बड़ा विवेकवान है और कभी किसी कार्य में जल्दबाजी नहीं बरतता ।

Leave a Comment

Start Quiz