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पूंतनम् : श्रेष्ठ भक्त

By Admin

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पूंतनम् : श्रेष्ठ भक्त


भगवान गुरुवादुग्धन के भक्तों में पुतनम् श्रेष्ठ कहा जा सकता है। नारायणीयम् कवचम् के प्रणेता भइतिरि नंदूधरी जो पुंतनम् दोस्त थे, उन्होंने इनको एक अंगूठी भेंट के रुप में दिया था जिसे पुंतनम् सदा पहना करते थे।

एक बार भगवान के दर्शन के लिए पुंननम जंगल के मार्ग से गुरुचापूर जा रहे थे। मार्ग में कुछ डाकुओं ने पूंतनम् को बीच में रोशा और कहा कि उनके पास जितनी संपदा मौजूद थी, वे सथ सीप दें। डाकुओं ने पूंतनम् के हाथ पाँच दिये। पुंतनम् ने भगवान गुरुवायुरप्पन से अपनी रक्षा करने के लिए प्रार्थना की। डाकुओं ने जोर से हंसकर कहा धिक्षाओ मतां तुम्हें वाहाँ कोई यचा नहीं सकता।

तभी डाकुओं ने अपनी ओर किसी को आते हुए देखा। वे नौ दो ग्यारह हो गए। जो लोग वहाँ आये, वे गुरुवारयन के मंत्री तथा उनकी सेना थी। वहीं पहुंचते ही उनपेने पूंतन को बंधनों से छुड़वा दिया। पूंतनम् ने कहा ‘भगवान स्वयं ने ठीक समय पर जाप लोगों को मेरी रक्षा करने हेतु यहाँ भेजा है। में आपका ऋण कैसे चुका पाऊंगा? मंत्री न उत्तर दिया ‘आप जिस अंगूठी को पहने हुए हो, उसे मुझे दे दो। पूंलनम् ने विना कुछ सोचे, हिचके, अपनी अंगूठी मंत्री को दे दी।

पूंतनम् श्रेष्ठ भक्त

अगले दिन पूंतनम् मंदिर में गया। मंदिर के पुजारी ने पूंलनम् को अंगूठी दी। पुंतनम् चकग गये। उन्होंने पुजारी से पूछा ‘यह अंगूठी आपके हाथों में कैसे आया पुजारी ने उत्तर दिया कल गल को भगवान ने स्वप्न में दर्शन देकर कहा कि उनके चरणों में जो अंगूठी पी हुई है, उसे पूंलनम् को सौंप दी। पुंतनम आश्चर्यचकित हुआ और भगवान की प्रार्थना की हे भगवान! आप अपने भक्तों के प्रति कितनी क्या रखते थे? तो कल डाकुओं को मुझे बचाने के लिए मंत्री के नेप में तुम ठीक समय पर आये थे ना? तुम यहे चालु हो स्वामी।

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