सर्वोत्तम दान
कमलम्मा नामक एक विधवा स्त्री, नागपुरा नामक एक गाँव में रहा करती थी। उसको एक पुत्री थी कन्नम्मा ।
एक बार नागपुरा में अकाल पड़ा था। गाँव में अन्न का घाटा पड़ गया था। कमलम्मा वैसे ही गरीब थी, ऊपर से अकाल की पीडा और सता रही थी। उसने एक दिन आँखों में आँसू भरकर अपनी बेटी से कहा ‘बेटी! मेरी दुर्भाग्य को देखो, मैं तुम्हें खाना भी दे नहीं पा रही हूँ, तुम वहुत शुष्क विखाई दे रही हो। माँ पर तरस खाकर बेटी ने उससे कहा ‘माँ! मुझे तो तुम्हारे बारे में चिन्ता है। तुमने तो कई दिनों से एक कौर का खाना भी नहीं खाया। मैं बाहर जाकर किसी से माँगकर थोडा खाना लेकर आऊँगी।’ ऐसा कहकर कद्रम्मा घर से बाहर निकल पड़ी। घर घर जाकर वह ऐसा माँगने लगी हे माँ। वहुत दिनों से हमने खाना नहीं खाचा । ‘बचा खुचा खाना हमें दो हम भूखें है. हम खा लेंगे।’
गाँव के सभी घरों की यही हालत थी और इसलिए किसी ने कुछ नहीं दिया। दीन दुःखी होकर काम्मा घर का रास्ता मोलने लगी। एक को किसी पेड के नीचे रोटी पकाते हुए देखा। कद्रम्मा ने उसके पास जाकर पूछा ‘हम भूखों मर रहे हैं। कृपया रोटी का एक टुकडा खाने को दो। चूही ने रोटी का एक टुकड़ा कन्नम्मा को दिया। कन्नम्मा ने बूढी से कहा ‘हे माँ! मेरी माँ भी एक हफ्ते से भूखी हैं, अगर एक और रोटी मुझे देंगी तो आपकी बेड़ी कृपा हम पर होगी।

बूढी ने उसे गेटी का एक और टुकड़ा दिया। जब वह रोटी के साथ आनंदपूर्वक घर वापस लौट रही थी, तब उसने एक भूखे कुत्ते को खाना ढूँढ़ते हुए देखा। कनम्मा मन ही मन सोथने लगी यह कुत्ता मेरी जैसी भीख माँग नहीं सकता। यह केवल लोगों की ओर देखता रह जाता है। कचष्मा ने रोटी का एक टूकता उस भूखे कुत्ते को खिला दिया। कुत्ता रोटी खाकर चला गया। घर लौटने पर कमलम्मा ने बेटी से पूछा कि वह कुछ खाना समेट पायी कि नहीं। कन्नम्मा ने सारा किस्सा सुनाया। तब माँ भी कग्रम्मा के किये पर बहुत खुश हुई। माँ ने बेटी से कहा तुमने जो कुछ भी किया,
अच्छा किया, मूक प्राणियों के प्रति उदारता रखना उत्तम गुण है। आओ बेटी, दोनों मिलकर बचे टुकडे को बाँटकर खायेंगे ।’ तभी एक लडकी भीख माँगती हुई कहने लगी ‘माँ! में भूख के कारण मर रही हूँ, कुछ खाने को दो!’ कमलम्मा ने कहा ‘मैं उस लड़की को रोटी का मेरा टुकड़ा दूँगी, ऐसा कहते हुए उसने रोटी उस लड़की को दे दिया। कनम्मा ने तुरंत अपनी माँ से ऐसा कहा ‘केवल एक दुकडे से उसकी भूख कैसे मिटेगी? में भी अपना तुकडा दे देती हूँ।’ दोनों टुकडों कोलेकर लडकी चली गई। कमलम्मा और काम्मा, दोनों अशक्त होकर सो गये।
कमलम्मा के स्वप्र में भगवती माँ का दर्शन हुआ। माँ ने कमलम्मा से कहा ‘हे कमलम्मा। तुम और तुम्हारी बेटी, दोनों भूखे थे, इसके बावजूद तुम दोनों ने ही निस्वार्थ भाव से कुत्ते और लड़की को रोटी खिलाई । वास्तव में तुम लोगों की परीक्षा लेने में ही कुत्ता और लड़की के रुप में आई। तुम दोनों ने जो दानशीलता दिखाई, वह प्रशंसनीय है। तुम लोगों का जीवन, भविष्य में काफी संपदा तथा स्वास्थ्य से पनपेगा ।
जय कमलम्मा की नींद खुली, तो उसने पाया कि उसकी झोंपड़ी बडे भवन में बदल गयी, उस गाँव में हो रही थी. अकाल दूर हो गई तथा गाँव के सभी के सभी लोग सुखी जीवन विता रहे हैं।