महादेवाष्टकम् स्तोत्र भगवान शिव, जिन्हें महादेव के नाम से भी जाना जाता है, को समर्पित एक अत्यंत शक्तिशाली और पूजनीय स्तोत्र है। यह (अष्टक) शिव जी की महिमा, उनकी शक्तियों और गुणों का वर्णन किया गया है। शिव जी को हिन्दू धर्म में कल्याणकारी, संहारकर्ता और सर्वोच्च देवता माना जाता है, जो समय और स्थान से परे हैं।
महादेवाष्टकम् स्तोत्र का पाठ करने से भक्तों को भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है, जिससे उन्हें आध्यात्मिक ज्ञान, आंतरिक शांति और जीवन की बाधाओं से मुक्ति मिलती है। इस स्तोत्र के प्रत्येक श्लोक में महादेव के विभिन्न रूपों और गुणों की स्तुति की गई है, जो भक्तों की भगवान शिव के प्रति गहरी श्रद्धा और भक्ति को दर्शाती है।
यह स्तोत्र न केवल आध्यात्मिक संबंध का माध्यम है, बल्कि शिव जी द्वारा प्रतिपादित शाश्वत सत्य का भी स्मरण कराता है—जो सृष्टि, संरक्षण और संहार का चक्र है। इस स्तोत्र के छंदों का लयबद्ध उच्चारण मन और आत्मा को शुद्ध करता है और भक्त को महादेव की दिव्य ऊर्जा के साथ संरेखित करता है।
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महाशिवरात्रि जैसे विशेष अवसरों पर इस स्तोत्र का पाठ विशेष रूप से किया जाता है और यह शिव आराधना का एक महत्वपूर्ण अंग है। महादेवाष्टकम् स्तोत्र एक कालजयी भक्ति साहित्य का हिस्सा है, जो इसे श्रद्धा के साथ पाठ करने वाले लोगों की आध्यात्मिक चेतना को प्रेरित और जागृत करता है।
आइए इस स्तोत्र का सम्पूर्ण अर्थ सहित पाठ करें, जिससे हम भगवान शिव की महिमा को और गहराई से समझ सकें और उनकी कृपा प्राप्त कर सकें।
महादेवाष्टकम् (Mahadev Ashtakam Stotra)
शिवं शान्तं शुद्धं प्रकटमकळङ्कं श्रुतिनुतं
महेशानं शंभुं सकलसुरसंसेव्यचरणम् ।
गिरीशं गौरीशं भवभयहरं निष्कळमजं
महादेवं वन्दे प्रणतजनतापोपशमनम् ॥१॥
सदा सेव्यं भक्तैर्हृदि वसन्तं गिरिशय-
मुमाकान्तं क्षान्तं करघृतपिनाकं भ्रमहरम् ।
त्रिनेत्रं पञ्चास्यं दशभुजमनन्तं शशिधरं
महादेवं वन्दे प्रणतजनतापोपशमनम् ॥२॥
चिताभस्मालिप्तं भुजगमुकुटं विश्वसुखदं
धनाध्यक्षस्याङ्गं त्रिपुरवधकर्तारमनघम् ।
करोटीखट्वाङ्गे ह्युरसि च दधानं मृतिहरं
महादेवं वन्दे प्रणतजनतापोपशमनम् ॥३॥
सदोत्साहं गङ्गाधरमचलमानन्दकरणं
पुरारातिं भातं रतिपतिहरं दीप्तवदनम् ।
जटाजूटैर्जुष्टं रसमुखगणेशानपितरं
महादेवं वन्दे प्रणतजनतापोपशमनम् ॥४॥
वसन्तं कैलासे सुरमुनिसभायां हि नितरां
ब्रुवाणं सद्धर्मं निखिलमनुजानन्दजनकम् ।
महेशानी साक्षात्सनकमुनिदेवर्षिसहिता
महादेवं वन्दे प्रणतजनतापोपशमनम् ॥५॥
शिवां स्वे वामाङ्गे गुहगणपतिं दक्षिणभुजे
गले कालं व्यालं जलधिगरळं कण्ठविवरे ।
ललाटे श्वेतेन्दुं जगदपि दधानं च जठरे
महादेवं वन्दे प्रणतजनतापोपशमनम् ॥६॥
सुराणां दैत्यानां बहुलमनुजानां बहुविधं
तपःकुर्वाणानां झटिति फलदातारमखिलम् ।
सुरेशं विद्येशं जलनिधिसुताकान्तहृदयं
महादेवं वन्दे प्रणतजनतापोपशमनम् ॥७॥
वसानं वैयाघ्रीं मृदुलललितां कृत्तिमजरां
वृषारूढं सृष्ट्यादिषु कमलजाद्यात्मवपुषम् ।
अतर्क्यं निर्मायं तदपि फलदं भक्तसुखदं
महादेवं वन्दे प्रणतजनतापोपशमनम् ॥८॥
इदं स्तोत्रं शंभोर्दुरितदलनं धान्यधनदं हृदि
ध्यात्वा शंभुं तदनु रघुनाथेन रचितम् ।
नरः सायंप्रातः पठति नियतं तस्य विपदः
क्षयं यान्ति स्वर्गं व्रजति सहसा सोऽपि मुदितः ॥९॥
इति पण्डितरघुनाथशर्मणा विरचितं श्रीमहादेवाष्टकं समाप्तम् ॥
महादेवाष्टकम् (Mahadev Ashtakam Stotra) का हिंदी अर्थ:
श्लोक १:
मैं उस महादेव को प्रणाम करता हूँ, जो शिव हैं, जो शांति के अवतार हैं, जो शुद्ध, प्रकट और दोषरहित हैं, जिन्हें वेदों द्वारा स्तुति की जाती है। जिनके चरणों की सभी देवता सेवा करते हैं, जो गिरीश (पर्वतों के स्वामी), गौरी के पति और सभी भय को हरने वाले हैं। वे अजन्मा और निष्कलंक हैं, और शरणागत भक्तों के सभी दुखों को दूर करने वाले हैं।
श्लोक २:
मैं उस महादेव को प्रणाम करता हूँ, जो भक्तों द्वारा सदा सेवनीय हैं और उनके हृदय में वास करते हैं। वे पर्वतों पर निवास करने वाले, पार्वती के प्रिय, क्षमाशील, पिनाक धनुष धारण करने वाले और भ्रम का नाश करने वाले हैं। वे त्रिनेत्रधारी, पाँच मुखों वाले, दशभुजाधारी, अनंत, और चंद्र को धारण करने वाले हैं। वे शरणागत भक्तों के सभी दुखों को दूर करने वाले हैं।
श्लोक ३:
मैं उस महादेव को प्रणाम करता हूँ, जो चिता की भस्म से अलंकृत हैं, जिनके सिर पर सर्पों का मुकुट है, जो विश्व को सुख देने वाले हैं। वे कुबेर के मित्र, त्रिपुरासुर का वध करने वाले, दोषरहित, और मृत्युरूपी भुजाओं को धारण करने वाले हैं। वे शरणागत भक्तों के सभी दुखों को दूर करने वाले हैं।
श्लोक ४:
मैं उस महादेव को प्रणाम करता हूँ, जो सदा उत्साहित रहते हैं, गंगा को धारण करने वाले, स्थिर, आनंद देने वाले और रति के पति (कामदेव) को नष्ट करने वाले हैं। उनके जटाजूट में रस का वास है और वे गणेश तथा कार्तिकेय के पिता हैं। वे शरणागत भक्तों के सभी दुखों को दूर करने वाले हैं।
श्लोक ५:
मैं उस महादेव को प्रणाम करता हूँ, जो कैलाश पर्वत पर निवास करते हैं और देवताओं और ऋषियों की सभा में सदा धर्म की शिक्षा देते हैं। वे सभी अनुयायियों को आनंदित करने वाले हैं। वे महेशानी (पार्वती) के साथ सदा साक्षात उपस्थित रहते हैं, जिनके साथ सनकादि मुनि और देवर्षि भी हैं। वे शरणागत भक्तों के सभी दुखों को दूर करने वाले हैं।
श्लोक ६:
मैं उस महादेव को प्रणाम करता हूँ, जिनके बाएँ अंग में शिवा (पार्वती) और दाहिने हाथ में गणेश और कार्तिकेय का वास है। उनके गले में सर्प है, गले में ही समुद्र का विष है, ललाट पर श्वेत चंद्रमा है और वे समस्त संसार का भार धारण करते हैं। वे शरणागत भक्तों के सभी दुखों को दूर करने वाले हैं।
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श्लोक ७:
मैं उस महादेव को प्रणाम करता हूँ, जो देवताओं, दैत्यों और विभिन्न प्रकार के तपस्वियों को शीघ्र फल देने वाले हैं। वे समस्त विद्या और ज्ञान के स्वामी हैं और समुद्र की कन्या (पार्वती) के हृदय में निवास करते हैं। वे शरणागत भक्तों के सभी दुखों को दूर करने वाले हैं।
श्लोक ८:
मैं उस महादेव को प्रणाम करता हूँ, जो व्याघ्रचर्म (बाघ की खाल) धारण करते हैं, जिनका शरीर मृदुल और शाश्वत है। वे वृषभ (नंदी) पर आरूढ़ हैं और सृष्टि के प्रारंभ में ब्रह्मा आदि देवताओं के रूप में प्रकट होते हैं। वे अकथनीय और निर्मल हैं, फिर भी भक्तों को सुख और फल देने वाले हैं। वे शरणागत भक्तों के सभी दुखों को दूर करने वाले हैं।
श्लोक ९:
यह स्तोत्र, जो शंभु द्वारा रचित है और जो दुर्भाग्य को नष्ट करने वाला, धन-धान्य देने वाला है, इसका मन में ध्यान करके पाठ करने से सभी विपत्तियाँ नष्ट हो जाती हैं। इसे जो व्यक्ति प्रतिदिन सायं और प्रातःकाल पाठ करता है, वह शीघ्र ही स्वर्ग प्राप्त करता है और सुखी होता है।
समाप्ति:
इस प्रकार पंडित रघुनाथ शर्मा द्वारा रचित श्रीमहादेवाष्टकं समाप्त होता है।
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