Sawan Somvar Vrat Katha | सावन सोमवार व्रत कथा With Pdf

अगर आपकी कोई मनोकामना पूरी नहीं हो रही है, या फिर तमाम प्रयासों के बावजूद आपको करियर में सफलता नहीं मिल रही है, या व्यक्तिगत जीवन में परेशानी चल रही है, तो परेशान न हों। इस बार सावन सोमवार का व्रत करें , नीचे दी गई व्रत कथा का पाठ करें। मान्यता है कि सावन सोमवार के दिन व्रत रखकर इस कथा का पाठ करने से मनचाही मुराद पूरी हो जाती है।

सावन सोमवार व्रत कथा (Sawan Somvar Vrat Katha)

Sawan Somvar Vrat Katha सावन सोमवार व्रत कथा With Pdf
Sawan Somvar Vrat Katha

सावन सोमवार व्रत की पावन कथा

एक समय की बात है, एक साहूकार था जो भगवान शिव का अनन्य भक्त था। उसके पास धन-धान्य की कोई कमी नहीं थी, लेकिन उसके कोई संतान नहीं थी। इसी कामना को लेकर वह रोज शिवजी के मंदिर जाकर दीपक जलाता था। उसके इस भक्तिभाव को देखकर एक दिन माता पार्वती ने शिवजी से कहा, “प्रभु, यह साहूकार आपका अनन्य भक्त है। इसे संतान का कष्ट है, आपको इसकी मदद करनी चाहिए।”

शिवजी ने उत्तर दिया, “हे पार्वती, इस साहूकार के भाग्य में पुत्र का योग नहीं है। यदि इसे पुत्र का वरदान मिल भी गया तो वह केवल 12 वर्ष की आयु तक ही जीवित रहेगा।” माता पार्वती के बार-बार आग्रह करने पर शिवजी ने साहूकार को पुत्र का वरदान दिया, लेकिन यह भी कहा कि वह केवल 12 वर्ष तक ही जीवित रहेगा।

साहूकार ने इस बात को सुना, लेकिन न तो उसे खुशी हुई और न ही दुख। वह पहले की ही तरह भगवान शिव की पूजा करता रहा। कुछ समय बाद साहूकार की पत्नी गर्भवती हुई और उसे एक सुंदर बालक की प्राप्ति हुई। परिवार में खुशियां मनाई गईं, लेकिन साहूकार ने बालक की 12 वर्ष की आयु का जिक्र किसी से नहीं किया।

जब बालक 11 वर्ष का हुआ, तो एक दिन साहूकार की पत्नी ने उसके विवाह के लिए कहा। साहूकार ने उत्तर दिया कि वह अभी बालक को पढ़ने के लिए काशी भेजेगा। उसने बालक के मामा को बुलाया और कहा, “इसे काशी पढ़ने के लिए ले जाओ और रास्ते में यज्ञ करते और ब्राह्मणों को भोजन कराते हुए आगे बढ़ना।”

दोनों मामा-भांजे इसी तरह यज्ञ कराते और ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा देते काशी की ओर चल पड़े। रात में एक नगर पड़ा जहां नगर के राजा की कन्या का विवाह था. लेकिन जिस राजकुमार से उसका विवाह होने वाला था, वह एक आंख से काना था। राजकुमार के पिता ने अपने पुत्र के काना होने की बात को छुपाने के लिए एक चाल सोची। साहूकार के पुत्र को देखकर उसके मन में एक विचार आया। उसने सोचा क्यों न इस लड़के को दूल्हा बनाकर राजकुमारी से विवाह करा दूं. विवाह के बाद इसको धन देकर विदा कर दूंगा और राजकुमारी को अपने नगर ले जाऊंगा। लड़के को दूल्हे के वस्त्र पहनाकर राजकुमारी से विवाह कर दिया गया. लेकिन साहूकार का पुत्र ईमानदार था। उसे यह बात न्यायसंगत नहीं लगी. उसने अवसर पाकर राजकुमारी की चुन्नी के पल्ले पर लिखा कि ‘तुम्हारा विवाह तो मेरे साथ हुआ है लेकिन जिस राजकुमार के संग तुम्हें भेजा जाएगा, वह एक आंख से काना है। मैं तो काशी पढ़ने जा रहा हूं.’

जब राजकुमारी ने चुन्नी पर लिखी बातें पढ़ीं तो उसने अपने माता-पिता को यह बात बताई। राजा ने अपनी पुत्री को विदा नहीं किया, जिससे बारात वापस चली गई। दूसरी ओर साहूकार का लड़का और उसका मामा काशी पहुंचे और वहां जाकर उन्होंने यज्ञ किया। जिस दिन लड़के की आयु 12 साल की हुई, उसी दिन यज्ञ रखा गया। लड़के ने अपने मामा से कहा कि मेरी तबीयत कुछ ठीक नहीं है। मामा ने कहा कि तुम अंदर जाकर सो जाओ। शिवजी के वरदान अनुसार कुछ ही देर में उस बालक के प्राण निकल गए। मृत भांजे को देख उसके मामा ने विलाप शुरू किया। संयोगवश उसी समय शिवजी और माता पार्वती उधर से जा रहे थे। पार्वती ने भगवान से कहा, “स्वामी, मुझे इसके रोने के स्वर सहन नहीं हो रहा। आप इस व्यक्ति के कष्ट को अवश्य दूर करें।” जब शिवजी मृत बालक के समीप गए तो वह बोले कि यह उसी साहूकार का पुत्र है, जिसे मैंने 12 वर्ष की आयु का वरदान दिया। अब इसकी आयु पूरी हो चुकी है। लेकिन मातृ भाव से विभोर माता पार्वती ने कहा कि “हे महादेव, आप इस बालक को और आयु देने की कृपा करें अन्यथा इसके वियोग में इसके माता-पिता भी तड़प-तड़प कर मर जाएंगे।”

माता पार्वती के आग्रह पर भगवान शिव ने उस लड़के को जीवित होने का वरदान दिया। शिवजी की कृपा से वह लड़का जीवित हो गया। शिक्षा समाप्त करके लड़का मामा के साथ अपने नगर की ओर चल दिया। दोनों चलते हुए उसी नगर में पहुंचे, जहां उसका विवाह हुआ था। उस नगर में भी उन्होंने यज्ञ का आयोजन किया। उस लड़के के ससुर ने उसे पहचान लिया और महल में ले जाकर उसकी खातिरदारी की और अपनी पुत्री को विदा किया। इधर साहूकार और उसकी पत्नी भूखे-प्यासे रहकर बेटे की प्रतीक्षा कर रहे थे। उन्होंने प्रण कर रखा था कि यदि उन्हें अपने बेटे की मृत्यु का समाचार मिला तो वह भी प्राण त्याग देंगे, परंतु अपने बेटे के जीवित होने का समाचार पाकर वह बेहद प्रसन्न हुए। उसी रात भगवान शिव ने व्यापारी के स्वप्न में आकर कहा, “हे श्रेष्ठी, मैंने तेरे सोमवार के व्रत करने और व्रत कथा सुनने से प्रसन्न होकर तेरे पुत्र को लंबी आयु प्रदान की है। इसी प्रकार जो कोई सोमवार व्रत करता है या कथा सुनता और पढ़ता है, उसके सभी दुख दूर होते हैं और समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।”

इस पावन कथा को श्रवण करने से समस्त कष्ट दूर होते हैं और भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इस कथा को सुनकर और व्रत करके भगवान शिव और माता पार्वती की कृपा प्राप्त होती है, जिससे जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है।

Sawan Somvar Vrat Katha PDF


FaQs

सोमवार व्रत की विधि क्या है?

सोमवार व्रत की विधि इस प्रकार है:
सुबह जल्दी उठकर पवित्र स्नान करें और स्नान के पानी में गंगाजल मिलाएं। साफ वस्त्र धारण करें, काले कपड़े न पहनें। भगवान शिव के समक्ष व्रत का संकल्प लें। वेदी पर शिव प्रतिमा स्थापित करें। पंचामृत से अभिषेक करें और सफेद चंदन का तिलक लगाएं। बेलपत्र, भांग, धतूरा और सफेद फूल अर्पित करें। खीर का भोग लगाएं। सोमवार व्रत कथा का पाठ करें या सुनें। शिव जी का ध्यान करें और मंत्र जाप करें। महादेव की आरती करें। तामसिक चीजों से दूर रहें। पूजा में हल्दी, रोली और तुलसी पत्र न रखें। अगले दिन प्रसाद से व्रत खोलें।

सोमवार के व्रत कितने रखने चाहिए?

अगर आप सोमवार का व्रत रखने की सोच रहे हैं, तो उसे 16 सोमवार तक रखने के बाद विधि-विधान से उद्यापन करना चाहिए, लेकिन आप अपनी कामना, संकल्प और शारीरिक क्षमता के अनुसार इसे आगे भी जारी रख सकते हैं। भगवान शिव के सोमवार व्रत को पांच साल तक भी रखने का विधान है।

सोमवार का व्रत क्या खाकर खोलना चाहिए?

कुछ लोग अपना व्रत रात के समय ही खोलते हैं। इस व्रत में लौकी और कद्दू की सब्जी भी खाई जा सकती है। फलों में केला, अनार, सेब और आम का सेवन भी उत्तम माना जाता है, जो शरीर को पोषण प्रदान करते हैं और कमजोरी को भी दूर करते हैं।

व्रत कितने बजे खोलना चाहिए शाम को?

कुछ लोग पूरे दिन व्रत रखकर शाम को पूजा करने के बाद भोजन करते हैं। सामान्यतः, व्रत खोलने के लिए सबसे अच्छा समय सूर्यास्त के बाद होता है।

क्या हम पीरियड्स में सोमवार का व्रत कर सकते हैं?

पीरियड्स के दौरान उपवास करना मान्य नहीं है। इस समय में लड़कियों को पूजा कक्ष में प्रवेश नहीं करना चाहिए और न ही पूजा करनी चाहिए। वे फिर भी सोमवार के दिन हर सप्ताह एक अतिरिक्त सोमवार का उपवास कर सकती हैं।

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