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स्कांद पुराण

By Admin

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स्कांद पुराण


कांचीपुरम् के कुमरनकोट्टम् मंदिर में शिवाचार्य पुजारी थे। भगवान मुरुग (सुब्रह्मण्य स्वामी) के कटाक्ष से शिवाचार्य को कचेयष्पा नामक बेटा पैदा हुआ। बचपन से ही वह तमिल व संस्कृत भाषाओं में निष्णात था।

एक बार मुरुग भगवान, कचेयप्पा के स्वप्र में साक्षात्कार देकर ऐसा कहा ‘कचेयष्या! तुम मेरे वैभव का गुणगान ‘स्कांद पुराण’ स्कंदपुराण ‘के रूप में करो। तब उत्तर में कचेयष्पा ने कहा ‘हे करुणानिधि में तुम्हारी कीर्ति का गान करने में समर्थ नहीं हूँ।’ लेकिन भगवान मुरुग ने यह कहा ‘चिन्ता मत करो! में कीर्तन की पहली पंक्ति तुम्हारे सामने रखूँगा। वाकी को तुम पूरा करो ।

कचेयष्णा ने मुरुग भगवान के चरणकमलों के निकट बैठकर कीर्तनों की रचना की। पूरा करते ही उन्हें भगवान के चरण कमलों के निकट रखते थे। वे मंदिर पर ताला लगाकर गये। अगले दिन, शुक्रवार को जब मंदिर में लौट आये तब उन्होंने देखा कि उनकी पांडुलिपि में मुरुग भगवान ने कुछ संशोधन किये ।

स्कांद पुराण

जब उनका काम पूरा होता, तो वे बड़े पंडितों भक्तों को बुलाते । उसके उपरांत वह पांडुलिपि तथा गणपति की प्रार्थना करता। इसके बाद, वह मंदिर में गीतों को आलापता था। एक दिन एक पंडित ने पहली पंक्ति में गलती दिखायी। पंडित ने कहा ‘हे कचेयप्पा गाना चंद करो। पहली ही पंक्ति में गलती दिखाई। कचेयष्पा ने पंडित से कहा हे महापंडित ! इस पंक्ति को स्वयं भगवान ने ही संशोधित किया। ऐसे म गलती कहाँ से आ सकती है? कचेयप्पा ने गाना बंद कर दिया। वहाँ उपस्थित सभी लोग वापस चले गये। कचेयष्या ने उनसे कहा आप कल आइए, मैं इनका विवरण दूंगा।’

उसने भगवान की प्रार्थना की, यथा हे भगवान! तुम्हारे कार्य में गलती दिखाई गई। तुम्हारा अपमान भी हुआ। जब तक तुम आकर इसे ठीक नहीं करोगे, तब तक में भूखों ही रहूँगा तथा आमरण भूख हडताल करूँगा।’ तव भगवान का साक्षात्कार हुआ और उन्होंने ऐसा कहा है भक्त! तुम चिन्ता मत करो। कल में स्वयं आऊँगा और इसका विवरण भी दूंगा।’

अगले दिन को सभी लोग मंदिर में एकत्र हुए। सभी ने कवेयष्पा को बोलने के लिए कहा। उनमें से एक व्यक्ति खड़ा हुआ और कहा ‘मैं इसका विवरण दूँगा। यह एक पवित्र ग्रंथ है ‘विश्शोयम्’ इसकी पहली पंक्ति के सभी शब्द, व्याकरण के सभी शब्दों से मिलता जुलता है)। इसे सभी पंडितों से स्वीकारा गया ।’

विवरण देकर वह व्यक्ति गायव हो गया। तभी वहाँ के सभी को लगा कि वह व्यक्ति स्वयं भगवान कुमरनकोट्टम् था जिसने विवरण दिया। कचेयष्पा ने एक वर्ष में उस ग्रंथ को पूरा किया। सभी ने ग्रंथ एवं भक्त दोनों को यात्रा में निकलवाकर सम्मान किया।

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