सिंगारु महर्षि
लंकाधीश, असुरपति रावणासुर को मारने के बाद भगवान श्रीरामचंद्रमूर्ति लंका से अयोध्या वापिस लौटकर आये। वशिष्ठ महर्षि ने श्रीराम को सुझाब दिया कि ये किसी व्यक्ति को तिल का दान दें, क्योंकि उन्होंने गवण के साथ युद्ध में सैकतों व्यक्तियों को मारा था। तिल दान में लेने वालों को चूंकि दान के परिणामों को झेलना पड़ेगा, इसलिए कोई भी व्यक्ति तिल को दान के रूप में लेने को तैयार नहीं था। वशिष्ठ महर्षि ने तिल के साथ सोने को भी दान में देने के लिए कहा।
ऐसे भेंट को लेने के लिए राज्य में घोषणा की गई। सिंगारु नामक एक निर्धन महर्षि अयोध्या में रहता था। सिंगारु की पत्नी ने घोषणा को सुनकर अपने पति से भेंट स्वीकारने का सुझाव दिया और कहा ‘हम
बहुत गरीब हैं। उस भेंट को लेने पर जो परिणाम मिलते हैं, वे आपके आध्यात्मिक बल के सामने टिक नहीं पायेंगे। लेकिन सिंगारु महर्षि ने ऐसा कहा ‘तिल का दान में लेने से मेरी आध्यात्मिक शक्ति क्षीण पड जाएगी और श्रीराम के सारे पाप मुझ पर आ जायेंगे। सोने के वदल मेरे द्वारा संचित पूण्य सभी दूर हो जायेंगे ।

महर्षि की पत्नी ने कहा ‘दान लेते समय आप देवाधिदेव के चेहरे की ओर देखी, आपके सारे पाप धुल जायेंगे।’ सिंगारु ने इस सुझाव को स्वीकारा। वह दान लेने राजमंदिर की ओर कदम बढ़ाया। मार्ग में महर्षि ऐसा सोचने लगे ‘अगर में श्रीराम के चेहरे को नहीं देखूँगा, तो मेरे पाप नहीं धुलेंगे। अगर ऐसा हुआ तो श्रीराम अपने पापों से कैसे मुक्त होंगे? श्रीराम को निश्चित रूप से अपने पापों से च्युत होना ही पड़ेगा। इसलिए महर्षि ने वशिष्ठ से कहा कि वे भेंट लेते समय श्रीराम और सिंगारु के बीच एक परदा रखें ।’
महर्षि तिल तथा स्वर्ण के साथ घर वापिस लौटकर आये। उन्होंने अपनी पत्नी से कहा कि में ने श्रीगम के चेहरे को नहीं देखा और इसलिए आध्यात्मिक शक्ति नहीं पायी। उसकी पत्नी ने महर्षि से कहा – ‘हे पतिदेव! आप चिन्ता मत करो। जिस दिन को राम का पट्टाभिषेक होगा, उस दिन को श्रीराम रथारूढ़ होकर नगर में शोभा यात्रा के लिए निकलेगा। जब वह स्थ हमारे कुटीर के पास आयेगा, तब आप उनके निकट जाकर दर्शन लेना। उनके चेहरे को देखते ही आपके सारे पाप धुल जायेंगे ।’
पट्टाभिषेक का दिन था। श्रीराम द्वारा आरुदित रथ सिंगारु के कुटीर के समीप पहुँचा। महर्षि ने श्रीराम का दर्शन लिया। रथ के सामने साष्टांग प्रणाम किया। श्रीराम स्वयं रथ से उतरकर महर्षि से कहा-‘महर्षि! आप जिस आध्यात्मिक शक्ति को खो बैठे और जिसके बारे में
चिन्ता कर रहे हैं, यह सब दःख दूर हो गया। अब से तुमने सारी आध्यात्मिक शक्ति पुनः प्राप्त कर लिया ।