सती सुभद्रा

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सती सुभद्रा


चित्रसेन नामक एक गंधर्व आकाश मार्ग से जा रहा था। उसने पान को चवाने के बाद धूक दिया। वह चूक गालव्य नामक आचमवासी की अंजली में आ गिरी थी जो सूर्य भगवान को संध्यावंदन समर्पित कर रहा था। जैसे ही धूक आ गिग, गालव्य तपस्वी बहुत क्रुद्ध हुए। उसने आकाशमार्ग में जाते हुए गंधर्व को देखा।

उसने गंधर्व को शाप देना चाहा लेकिन उसने शाप इस उद्देश्य से नहीं दिया क्योंकि शाप देने से वह अपनी समस्त तपोशक्ति खो बैठेगा। इसलिए उसने गंधर्व के कुकृत्य का विवरण कृष्ण को देकर, उन्हीं से शाप दिलवाना चाहा ।

चित्रसेन के कुकृत्य को श्रीकृष्ण को बताने के लिए गालव्य, द्वारका गया। श्रीकृष्ण ने तपस्वी से पूछा ‘हे मुनि वेष्ठ! परेशान मत होओ। काल शाम को सूर्यास्त से पहले ही, में उसे मार दूँगा ।

इस बीच नारद महामुनि चित्रसेन से मिले तथा ऐसा कहा है चित्रसेन ! श्रीकृष्ण ने गालव्य तपस्वी को वचन दी है कि वे कल शाम को सूरज के ढ़लने से पहले तुम्हें मार देंगे।’ चित्रसेन भयभीत हुए। उन्होंने नारद से पूछा यथा हे मुनिश्रेष्ठ! मुझे इस दण्ड़ से बचने के लिए कोई उपाय है क्या?’ नारद महर्षि ने उसे इंद्र, चम, ब्रह्मदेव तथा शिव से संपर्क करने के लिए कहा।

चित्रसेन ने नारद के वचनों का पालन किया। लेकिन सभी ने यही कहा कि यह प्रतिज्ञा तो स्वयं श्रीकृष्ण की है और यह उनके द्वारा गालव्य जैसे तपस्वी को दिया हुआ वचन है।

सती सुभद्रा

चित्रसेन पुनः नारद महर्षि से जा मिले। महर्षि ने उनसे ऐसा कहा हे चित्रसेन, भयभीत मत होओ। सुभद्रा जो श्रीकृष्ण की वहन तथा अर्जुन की पत्नी है, वह यमुना नदी में स्नान करने के लिए आयेगी। नदी के कुल पर जो भी दीन दुःखी को देखती है, सुभद्रा उनकी रक्षा के लिए तत्पर हो जाती है। एक बात मेरी याद रखो। जब तक वह तुम्हारी रक्षा के लिए वचन नहीं देती, तब तक उसे अपने दुःख का पता होने नहीं दो ।

जय सुभद्रा स्नान करके नदी के फूल पर आई, तब उसने चित्रसेन को जोर से रोते हुए देखा। वह ऐसा कह रहा था चहाँ मेरी सहायता करनेवाला कोई नहीं है क्या? अगर नहीं हो, तो अपने आप को नदी में डुवाने के अलावा मेरे पास कोई दूसरा चारा नहीं है।

सुभद्रा उस के पास जाकर पूष्ठी हे आर्य तुम कौन हो? आपका दुःख क्या है। मुझे बताइए । मैं तुम्हारी मदद करूंगी।

चित्रसेन ने ऐसा कहा ‘माता! अगर आप वचन देंगी कि आप मेरी मदद करोगी, तब मैं आपको अपना कष्ट सुनाऊँगा। सुभद्रा ने उत्तर दिया में वादा करती हूँ, मेरे पति अर्जुन हैं, पांडवों के भ्राता । श्रीकृष्ण तो मेरे भ्राता ही है। चिन्ता मत करो, मैं तुम्हारे सारे दर्द को दूर करूँगी ।

चित्रसेन ने अपने दुःख को सुनाया। सुभद्रा ने एक पल के लिए सोचा तथा ऐसा कहा ‘चिन्ता मत करो! अर्जुन मेरे पति हैं। ये मेरे वचन को निश्चित ही वनाचे रखेंगे।

वह घर लौटी तथा अपने पत्ति अर्जुन को अपने वचन के बारे में वताते हुए चित्रसेन की गाथा सुनाई। अर्जुन ने यह उत्तर दिया कि चित्रसेन के जीवन को बचाने के लिए, यह भगवान श्रीकृष्ण से भी भिडने को तैयार रहेंगे।

श्रीकृष्ण गंधर्व को मारने के पक्ष में थे तथा अर्जुन उसे बचाने के पक्ष में थे। इन दोनों को अपने अपने यचन से बद्ध रहने के लिए, युद्ध लड़ना अनिवार्य हो गया। युद्ध प्रारंभ हुआ। एक ऐसी परिस्थिति उत्पन्न हुई जय श्रीकृष्ण को अपना सुदर्शन चक्र तथा अर्जुन को पाशुपतास्त्र का प्रयोग करना अनिवार्य हो गया था। ये दोनों ही नाशयान अख थे ।

शिवजी को जब इस युद्ध का पता चला, तव वे उन दोनों के बीच आ खड़े हुए। उन्होंने बीकृष्ण से कहा ‘हे श्रीकृष्ण! अर्जुन तुम्हारा प्रिय भक्त है। क्या तुम्हारे भक्त को अपने वचन से बद्ध रहने के लिए आप अवसर नहीं दोगे?’ श्रीकृष्ण ने शिव की बात मानकर युद्ध रोक दिया। तपस्वी ने ऐसा कहा ‘तुम दोनों, कृष्ण और अर्जुन ने चित्रसेन जिसने मेरे प्रति पाप किया, उसका पक्ष लेने को हुए। मैं अपनी तपोशक्ति से चित्रसेन को राख बना दूंगा। ऐसा कहते हुए उसने कमंडल से जल लेकर उसे शाप देते हुए जल छिडकने लगा ।

अचानक सुभट्टा दोनों के बीच आकर खड़ी हुई तथा शाप को निर्वीच करने के प्रयास में ऐसा कहा अगर में पतिव्रता हूँ, अपने पति को छोड़कर किसी मर्द को कम-से-कम मन से भी नहीं हुआ हो, तो यह मंत्रपूत जल चित्रसेन पर नहीं लगे । तुरंत ही गालव्य के हाथ से जल गायव हो गया। गालव्य बड़ी निराशा के साथ वापस लौट गया ।

यही एक पतिव्रता की शक्ति होती है।

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