श्रीभानुदास
पंडरपुर में भानुदास नामक एक वस्त्र विक्रेता रहता था। वह भक्त था, साथ ही साथ बड़ा ईमान्दार व्यापारी भी था। जब भी कोई खरीदार / ग्राहक उसके दूकान पर आता, तब वह उनसे यह कहता था – ‘देखिए! इस साडी की बुनावट बहुत अच्छी है लेकिन यह पुरानी है। इसलिए मैं आपको कम दाम पर दूँगा।’ ऐसा बोलने वाले इस विक्रेता से बाकी वस्त्र विक्रेता बडबडाने लगे ‘वह निश्चित रूप से ईमांदार तथा सच्चा आदमी है। लेकिन वह हम जैसे वस्त्र विक्रेताओं के लिए अच्छा नहीं है। ऐसे व्यक्ति को इस व्यवसाय में आना ही नहीं था।’
उस गाँव के सभी विक्रेताओं ने उस व्यक्ति से मिलकर इसके बारे में चर्चा करना चाहते थे। बाद में सभी मिले और उनसे ऐसा कहा -‘अगर आप इस प्रकार कम दाम में कपड़े बेचोगो तो हम लोगों को अपने दूकान पर ताला’ लगाने पड़ेंगे। कोई भी ग्राहक हमारे दूकानों पर नहीं आ रहे हैं। अगर आप अपने तरीके को बदल नहीं सकते, तो अपने दूकान को बंद कर लो ।’

भानुदास ने उनसे कहा ‘मुझे माफ कीजिए। जीवन में पैसा ही सब कुछ नहीं होता । हमको ईमान्दारी से जीना होगा, हमको भगवान की प्रार्थना करनी चाहिए ।’ एक दिन भानुदास, को मंदिर में भजन करने जाना था। वह अपना दूकान बंद करना नहीं चाहता था। उसने अपने सहविक्रेताओं से कहा ‘मैं दूकान बंद करना नहीं चाहता, आप इसकी देखभाल करो ।’ पडोसियों ने नहीं माना। भानुदास ने सोचा ‘भगवान ही इस दूकान की देख रेख करेगा।’ भानुदास भजन करने मंदिर चला
गया। यह सहविक्रेताओं के लिए अच्छा अवसर था। सहविक्रेताओं ने भानुदास की अनुपस्थिति में उसके दूकान के सारे कपडों को ले जाकर एक पुराने कुँए में फेंक दिया। कपड़ों को फेंकने के बाद जब वे वापिस अपनी दूकानों को लौटे, तब उन्होंने अपने दूकानों को खाली खाली पाया। उनकी दूकानों से चोर कपड़े लूटकर ले गये और जो भी उनके मार्ग में आये, उन सबको उन्होंने मारा पीटा।
बाद में सहविक्रेताओं ने अपने अपराध के लिए पछताया। उन्होंने ऐसा कहा ‘भगवान ने हमें अच्छी सजा दी है। जो बोया सो पाया ।’ सभी मिलकर भानुदास के पास जाकर उनसे माफी माँगी। तब भानुदास ने उनसे ऐसा कहा ‘आपने पछताया। आप पांडुरंग भगवान की प्रार्थना करो। वे आपको क्षमा करेंगे। भगवान दयावान है। आप सभी फिर से संपन्न बनोगे । पुनः अपना व्यापार प्रारंभ करो ।