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श्रम का फल मीठा

By Admin

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श्रम का फल मीठा


एक बार, एक ब्राह्मण अपने राजा के पास जाकर, अपनी बेटी की विवाह के लिए पैसों की मदद माँगी। राजा ने कोषाधिकारी से कहा कि ये एक हजार स्वर्णमुद्रायें लाकर दान में दें। ब्राह्मण ने राजा से कहा ‘हे राजन! यह धन विवाह करने के लिए पर्याप्त नहीं होंगे। राजा ने कोषाधिकारी से कहा कि वे ब्राह्मण को दस हजार स्वर्ण मुद्रायें दें।

ब्राह्मण धन की माँग बढ़ाता गया। बाद में राजा ने कोषाधिकारी से कहा उसके सामने कोषागार को खोलकर रखो। ब्राह्मण जितना चाहता है, उतना लेने को कहो। वे अपनी बेटी का विवाह धूम धाम से मनायें ।’ इतना करने के बावजूद ब्राह्मण संतृप्त नहीं हुआ। उसने राजा से कहा ‘हे राजन् ! आपकी उदारता से मैं बहुत प्रसन्न हुआ हूँ। आप जितना हमें देते हो, यह पूरी संपदा आपकी पैत्रिक संपदा है लेकिन मुझे वह पैसा चाहिए, जो आपसे कामाये गये हों, चाहे रकम जितनी भी कम क्यों न हो? राजा ने ब्राह्मण से अगले दिन आने को कहा। राजा ने कहा ‘मैं काम करके, कमाकर आपको दूँगा ।

श्रम का फल मीठा

राजा, भेष बदलकर काम ढूँढता हुआ बाहर निकला। राजा एक लुहार के दूकान पर गया। लुहार ने राजा से कठिन से कठिनतर काम करवाया और केवल दो ताम्र मुद्रायें दीं।

अगले दिन ब्राह्मण राजा के पास आया। राजा ने दो ताम्र मुद्राचे ब्राह्मण को देकर कहा ‘कठोर परिश्रम करके मैं इतनी ही मुद्रायें कमा पाया ।’ ब्राह्मण, तृप्त होकर, वहाँ से निकल गया। घर जाकर ब्राह्मण ने पूरा किस्सा सुनाया। पत्नी ने पति से ऐसा कहा जब तुम्हारी इच्छा के अनुरूप मिल रहा था, तो तुमने उनको क्यों ठुकराया? तुम तो बुद्धिहीन निकले। पन्नी ने दोनों ताम्र सिक्कों को फेंक दिया ।

ब्राह्मण और उसकी पत्नी ने आश्चयपूर्वक एक दृश्य को देखा । जहाँ पर ताम्र सिक्के गिरे यहाँ दो वृक्ष उग आये जिन पर स्वर्ण मुद्रायें, वज्र, मोती तथा अमूल्य रत्न लदे हुए थे। ब्राह्मण ने अपनी बेटी का बडे पैमाने में खर्चा करके विवाह किया। राजा, रानी तथा पूरा मंत्री मंड़ल भी उस विवाह में पधारे थे।

ब्राह्मण ने राजा से कहा ‘हे राजन् ! कठोर परिश्रम से चाहे कम ही आमदनी मिले, लेकिन उसके फल बहुत मीठे होते हैं।’ राजा को परिश्रम का मूल्य मालूम हुआ ।

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