वाल्मीकि रामायण

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वाल्मीकि रामायण


वाल्मीकि, एक भव्य आध्यात्मिक चेता प्राप्त मुनि थे। जितने मुनिगण उनके साथ थे, वे सभी उनका गौरव रखा करते थे।

एक दिन नारद मुनि वाल्मीकि के आश्रम में पधारे। दोनों ने आपस में कुशल क्षेम के प्रश्नों का आदान प्रदान किया। वाल्मीकि ने नारद मुनि से पूछा ‘हे महर्षि ! आप त्रिलोक संचारी हो। क्या आप किसी ऐसे व्यक्ति का नाम ले सकते हो जिसका व्यक्तित्व साधुता से भरा है?’ नारद ने उत्तर दिया ‘एक व्यक्ति है श्रीरामचंद्रमूर्ति, अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र ।’ वाल्मीकि ने पूछा क्या अच उनके चारे में कह सकते हो?”

नारद ने बाल्मीकि को श्रीरामचद्रमूर्ति की गाथा सुनाई। बाल्मीकि आनंद विभोर हुए। उन्होंने नारद से कहा “हे मुनि ! क्या ही भव्य जीवन श्रीराम ने जिया।”

एक दिन वाल्मीकि अपने शिष्य वृन्द के साथ तमसा नदी में स्नान करने के लिए जा रहे थे। उन्होंने एक वृक्ष पर दी क्रौंच पक्षियों को प्रेमक्रीड़ा करते हुए देखा ।

वाल्मीकि रामायण

तभी एक बाण जो किसी शिकारी के द्वारा छोड़ा गया था, ने क्रौंच नर पक्षी को मार गिराया। यह पक्षी नीचे गिरकर मर गया। मादा पक्षी विरह वेदना में बहुत रोई थी। उस मृत पक्षी को ले जाने शिकारी आया । वाल्मीकि ने शिकारी से कहा ‘हे शिकारी! तुम भी इसी प्रकार वियोग के शिकार वनोगे । तुम आजीवन जहाँ भी जाओगे, असुरक्षित रहोगे ।’

वाल्मीकि के मुँह से जो शब्द शाप के रूप में निकले, उन शब्दों ने उन्हें मोहित किया। ध्वनि जो शब्द मुनि की अनुकंपा तथा दुःख से अयाचित निकले, उन शब्दों की अंतर्गत शोभा व शांति अवर्णनीय हैं। ये सभी सावास न होकर अनायास ही ध्वनित हुए हैं।

यह पद्य जो गहरे दुःख तथा अनुकंपा से निकला, वह संस्कृत भाषा का प्रथम पद्य माना जाता है।

तभी वाल्मीकि के आथम में सृष्टिकर्ता ब्रह्म देव का आगमन हुआ। ब्रह्म देव ने वाल्मीकि को आशीर्वाद दिया यथा तुम महान कवि बनोगे ।’

वाल्मीकि ने ब्रह्म देव से पूछा ‘हे भगवान! कृपया यह वताइये कि मुझे क्या लिखना होगा?’ ब्रह्म ने कहा ‘तुमने भगवान श्रीरामचंद्रमूर्ति के चारे में नारद मुनि से बहुत जानकारी ली है। अब श्रीराम की गाथा को

काव्य के रूप में लिखो।’ ब्रह्म देव वाल्मीकि के आश्रम से निकल गए। वाल्मीकि गहरे ध्यान में लग गये। उन्होंने अपने मानसपटल पर श्रीराम का सारा दिव्य जीयन देखा ।

वाल्मीकि, राम की गाथा ‘रामायण’ को लिखने लगे। उन्होंने इस गाथा को चौबीस हजार अनुष्टुप छंदों में लिखा जिसमें उनके दुःख भरे क्रीच पक्षी का किस्सा भी जुड़ा है।

यही ‘रामायण’ गाया है जो आचंद्रार्क जीवित रहता है।

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