राजा की कृपा या भगवान की कृपा ?
कनपुरी के राजा का नाम सुंदरवस्दन था। वह हर क्षेत्र में कनपुरी के राजा का नाम सुंदरवस्दन था। वह हर क्षेत्र में निष्णात था लेकिन भगवान पर उसका कोई विश्वास नहीं था।
एक दिन राजा अपने मंत्रियों के संग पूरे नगर में घूमने के लिए छद्म मेष में निकला था। मार्ग में उन्हें दो याचक दिखाई दिये। एक व्यक्ति इस प्रकार याचना कर रहा था
‘हे माता! राम की कृपा से दान दी, राम की दया से दूसरा पाचक बोल रहा था ‘हे माँ राजा की कृपा से दान दो। राजा की कृपा से…।’ इन दोनों याचकों को राजा के दरवार में अगले दिन प्रस्तुत किया गया। इन से एक प्रश्न पूछा गया था आप दोनों में से एक के द्वारा श्रीराम के नाम पर तथा दूसरा राजा के नाम पर भिक्षा माँगी जा रही थी, ऐसा क्यों कर रहे थे?
जो भगवान के नाम से भिक्षा माँग कर रहा था, उसने ऐसा कहा – ‘पूरा विश्च श्रीराम की कृपा से सुरक्षित है। वही सभी को संपदा एंव स्वास्थ्य प्रदान करता है, इसलिए में उसका नाम से रहा था। दूसरे ने कहा ‘भगवान को कोई देख नहीं सकता यह अदृश्य देवता है। लेकिन राजा दिखाई देने वाला देवता है। वही आदमी को पैसा देकर धनवान बनाता है। इसीलिए में राजा का नाम लेकर भीख माँगता हूँ।

भिखमंगों को वहाँ से भेज दिया गया। गजा ने मंत्री से कहा है मंत्री! मेरा नाम लेकर भीख मंगिनेवाला, इम से अधिक चतुर है ।’ लेकिन मंत्री ने ऐसा कहा ‘हे राजन! जय तक मंगवान की कृपा किसी व्यक्ति पर नहीं होती, तब तक हमसे प्रदत्त सहायता भी उस तक नहीं पहुंचती। राजा ने कहा ‘ठीक है। हम परीक्षा लेना चाहते हैं कि किसकी कृपा ज्यादा हैं राजा की या भगवान की? राजा ने मंत्री से पूरे राज्य में एक बात का प्रचार करवाने की आज्ञा दी। वह इस प्रकार चा – अगले श्रीरामनवमी के दिन, राजा उन सभी को भेंट देंगे जो उनके मवन में आवेगे ।
बीरामनवमी के दिन बहुत सारे लोग राजा के भवन में आये और भेंट भी ले गये। आनेवालों में वे दोनों भिखमंगें भी शामिल थे। जिसने राजा का नाम लिया था. उस भिखमंगे को राजा ने एक बड़ा कडू देकर कहा इस कडू के कारण तुम्हें संपदा मिलेगी।’
कुछ दिनों के बाद, गजा और मंत्री राज्य के सभी प्रांतों में घूम आने के लिए निकले। एक जगह पर इन्होंने उस भिखारी को देखा वा जिसने राजा से कडू की भेंट ली। यह अब भी भीख माँग रहा था। आश्चर्य चकित होकर राजा ने उससे प्रश्न किया मुझसे कडू लेने के बावजूद तुम भीख क्यों माँग रहे हो? भिखमंगे ने जवाष दिया ‘महाराज! में ने उस कडू को दो रजत मुद्राओं के लिए वेच दिया। उससे में कितने ही दिनों के लिए खा सकता है। इसलिए में भीख माँग रहा हूँ।’ राजा ने कहा हे मूर्ख में ने कडू में स्वर्ण आभूषण तथा मोतियों को भरकर गुप्त रूप से दिया था। अगर तुमने उसे काटकर देखा बोता, तो आज तक तुम धनवान बन गए होते ।’
राजा तथा मंत्री राज्य में घूमने के बाद जब वापस लौट रहे थे, तब उस भिखारी को देखा था जो भगवान का नाम लेकर भीख माँग रहा था। वह तख्ते पर बैठकर मस्ती में था। उसे कचहरी में प्रस्तुत किया गया था। राजा ने उससे पूछा ‘तुम कम समय में इतना धनवान कैसे बन गये?” उत्तर देते हुए भिखारी ने कहा है महाराजा यह सब भगवान श्रीगमचंद्र मूर्ति की कृपा से हुआ है। मेरे पिताजी के देहांत पर मुझे एक ब्राह्मण को भीजन खिलाना था। उसके लिए में ने एक भिखारी से कडू खरीदी थी।
जब में ने उसे काटा, तो मैं ने स्वर्ण मुद्राओं, तथा मोतियों को उसके अंदर भरा पाया। मैंने उनको वैया और बहुत बड़ी रकम पायी। तभी राजा को अहसास हुआ कि भगवान की कृपा से ही कोई भी व्यक्ति इस संसार में धनवान बनता है।