राजा अम्बरीश
राजा अम्बरीश, एक श्रेष्ठ भक्त थे। वे एक बार एकादशी उपवास का व्रत रखा था। दूसरे दिन उनको सूर्योदय के तुरंत बाद नाश्ता (पारण) खाना था।
एक बार जब राजा नाश्ता खाने को थे, तभी दूर्वास मुनि राजा के पास आये। राजा ने उनका स्वगत किया तथा अपने साथ नाश्ता खाने के लिए प्रार्थना की। मुनि ने सहमति दी, लेकिन कहा ‘मैं यमुना नदी में पहले स्नान करके जल्दी लौटकर आऊँगा ।’
लेकिन मुनि ने लौटने में देरी लगा दी। शास्त्र के अनुसार, व्रत को नियमित समय में ही करना होता है। प्रधान अर्चक के कहने पर राजा ने व्रत को काटकर मुनि के लौटने से पहले, बिना उनका इंतजार किए, खाना खा लिया ।
दूर्वास मुनि जब लौटे, तो पाया कि राजा ने मुनि के लौटने तक न रुककर, उनका नजरंदान करके खाना खा लिया। इसलिए दूर्वास मुनि बहुत क्रुद्ध हुए। अपने तपोबल से उन्होंने एक राक्षस की सृष्टि की तथा उसे आज्ञा दी कि वह अम्बरीश को मार दे। अम्बरीश ने न राक्षस को मारा और न ही शाप को मारा, बल्कि राजा ने भगवान की प्रार्थना की। तुरंत ही श्रीमहाविष्णु का सुदर्शन चक्र आया तथा राक्षस को मार दिया । इसके बाद वह दूर्वास मुनि का पीछा करने लगा ।

भयभीत होकर दूर्वास मुनि भगवान ब्रह्म, भगवान शिव तथा देवेन्द्र के पास दौड़कर उनकी रक्षा करने के लिए प्रार्थना की कि वे सुदर्शन चक्र से उनकी रक्षा करें। ‘हम आपकी रक्षा नहीं कर सकते ।’ तब राजा श्रीमहाविष्णु के पास दौडकर गये जिन्होंने अपने चक्र को इनु पर छोड़ा । दूर्वास ने श्रीमहाविष्णु से प्रार्थना की ‘मैं भी आपका भक्त हूँ। ऐसे में आप केवल अम्बरीश पर ही दया क्यों दिखा रहे हैं?’ तब श्रीमहाविष्णु ने उत्तर दिया ‘सही है, मुझे तो दोनों की रक्षा करनी है। अम्बरीश ने अपनी रक्षा आप रखने का सामर्थ रखता है लेकिन उसने मेरी शरण माँगी ।’
दूर्वास ने तब कहा ‘हे दयामयी! अब मेरे लिए कौन सा रास्ता बचा है?’ श्रीमहाविष्णु ने कहा ‘आप अम्बरीश से क्षमा याचना कीजिए। यही एकमात्र रास्ता है।’ दूर्वास मुनि ने अम्बरीश के आगे घुटने टेककर उनसे प्रार्थना की। तुरंत ही सुदर्शन चक्र भगवान श्रीमहाविष्णु के हाथों में वापस लौट गया ।