मार्कण्डेय: शिव का अनन्य भक्त

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मार्कण्डेय: शिव का अनन्य भक्त


मार्कण्डेय और उनकी पत्नी मारुद्धति आदर्श दंपति थे। वे दोनों शिव के भक्त थे। वे जंगल के आश्रम में रहा करते थे। उनकी कोई संतान नहीं थी ।

एक बार वे वाराणसी की यात्रा कर रहे थे। उन्होंने काशी विश्वनाथ तथा विशालाक्षी की प्रार्थना की। मुकंडु ने काशीनाथ के मंदिर के पास उनके अनुग्रह के लिए तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव साक्षात्कार देकर कोई वर माँगने को कहा। उसने शिव से बेटे की माँग की। तब शिव ने कहा ‘तुम्हें सी वर्ष सामान्य तथा अशिष्ट जीवन बिताने वाला बेटा चाहिए या केवल सोलह वर्ष के लिए शिष्टतापूर्वक व्यवहार करने वाला, मेरे प्रति भक्ति रखने वाला बेटा चाहिए?’

‘मुझे ऐसा बेटा चाहिए जो तुम्हारा भक्त हो और जो शिष्ट चरित्र रखता हो।’ शिव ने उन्हें आशीर्वाद दिया ‘तुम्हारी इच्छा की पूर्ति बहुत जल्द ही होगी।’ काशीनाथ की कृपा से उस दम्पत्ति को एक बेटा हुआ । उस पुत्र का नाम मार्कण्डेय रखा गया ।

मार्कण्डेय शिव का अनन्य भक्त

मार्कण्डेय एक पवित्र, शिष्ट तथा शिव भक्त के रूप में पलने बढ़ने लगा। उसने वेद तथा अन्य ग्रंथों का गहरा ज्ञान प्राप्त किया। वह बालक सोलह वर्षों का होने ही वाला था। मार्कण्डेय के माँ पिताजी अपने पुत्र के जीवन के अंतिम दिनों को लेकर चिन्तित थे।

मार्कण्डेय ने अपने माँ पिताजी से उनकी चिन्ता का कारण पूछा । उन्होंने शिवजी के द्वारा प्रदत्त वर तथा उसके जीवन के अंतिम चरण का विवरण दिया। मार्कण्डेय ने अपने माँ पिताजी से ऐसा कहा ‘चिन्ता मत करो! मैं शिव के आशीर्वचन पाकर यम से भिडूंगा, मुझे आशीर्वाद दीजिए ।’

मार्कण्डेय, वाराणसी जाकर काशी विश्वनाथ की प्रार्थना बड़ी श्रद्धा – भक्ति के साथ करने लगा। विश्वनाथ ने मार्कण्डेय को सक्षात्कार देकर कहा- ‘चिन्ता मत करो! धर्मराज से डरो मत, मेरी प्रार्थना करते जाओ, मुझे मत छोडो ।’

मार्कण्डेय के सोलह वर्ष की पूर्ति पर यमधर्मराज के सेवक प्राणहरण के लिए वारणासी में आये। उस मार्कण्डेय को पहचानने में कठिनाई का अनुभव कर यमदूत वापिस यमधर्मराज के पास जाकर कहा ‘हे स्वामी! हम मार्कण्डेय के पास जा नहीं सके, जब भी हम उनके पास गये, हमें झटके लगे हैं। तब यमधर्मराज स्वयं गये। यमधर्मराज ने मार्कण्डेय पर ‘मृत्युपाश’ फेंका। मार्कण्डेय बैठा रहा तथा शिवलिंग को कसकर पकडे हुआ था। वह निरंतर ‘ओम नमःशिवाय’ का मंत्र जपता गया। शिवजी, लिंग से उभर आये तथा यमदेवता को चेतावनी देने लगा. बथा ‘हे यम ! मेरे भक्तों के पास कभी मत जाओ ।’

मार्कण्डेय अपने माँ पिताजी के पास गया। मार्कण्डेय के साथ जो हुआ, उस किस्से को सुनकर वे बहुत संतुष्ट हुए। अगर भगवान के प्रति भक्ति हो तो किसी किसी के प्रारब्ध लक्ष्य गंतव्य भी बदल जाते हैं।

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