भीम और हनुमान
प्रवास के समय पाण्डव, नारायाणाश्रम नामक एक जगह में ठहरे हुए थे।
एक दिन द्रौपदी ने एक अत्यंत सुंदर कमल के फूल को देखा था जिसके एक हजार पंखुडियों थी। ब्रौपदी ने पति भीम से यह कहा था कि वे अपने लिए कुछ और कमल के फूल ले आयें। भीम ने यह कहा था कि मैं तुरंत ले आऊँगा। भीम, उनकी तलाश में निकला। वह गंधमादन
पर्वत पर गया जहाँ अनेक भाँति के फूल खिलते हैं। रास्ते में केले की वाटिका में श्रीरामचंद्रमूर्ति के अन्यतम भक्त श्री हनुमान, राम नाम का जाप कर रहे थे। वे भीम के बड़े भाई थे। उन्होंने दूर से अपने भाई को आते हुए देखा और अपनी पूँछ को बढ़ाकर भीम के मार्ग में डाल दिया । भीम ने इसे देखा। हनुमान को सामान्य जंगली बंदर समझकर यह सोचा कि जीवंत प्राणियों के किसी भी भाग को लांघना उचित नहीं है। ऐसी सोच से भीम ने गंभीर आवाज में चिल्लाया! ‘हे बंदर! तुम्हारी पूँछ को मेरे गस्ते से हटाओ ।

हनुमान ने उत्तर दिया ‘हे महात्मा! में बहुत वृद्धा हूँ, इतनी लंबी पूँछ को में हिला नहीं सकता, आप स्वयं पूँछ को रास्ते से हटाओ और आगे बढ़ो ।’
भीम ने पूँछ को हटाने का वृथा प्रयास किया। तब भीम को लगा कि यह बंदर सामान्य प्राणी नहीं हो सकता। वह कोई पुण्यात्मा ही छद्या रूप में उपस्थित रहा होगा। उसने, तब बंदर का संबोधन करते हुए ऐसा कहा हे परमात्मा आप सामान्य प्राणी नहीं हो. आप कृपया अपना निजी रूप दिखाओ ।’
मैं भीम हूँ, कुंती का पुत्र तथा पाण्डव युधिष्ठिर का भाई। हनुमान ने मुस्कुराकर कहा ‘मैं आपका भाई हनुमान हूँ। तालाब वहाँ से अति निकट है, जाकर फूलों को इकड्डा करो। ऐसा कहते हुए, हनुमान ने अपनी पूँछ को उसके रास्ते से हटाया ।
भीम ने नमन करते हुए कहा ‘हे भैया में ने जो साहस किया, उसके लिए माफी चाहता हूँ। मुझे अपना असली रूप दिखाइए ।’
हनुमान ने भीम को अपना निज रूप दिखाकर उस पर कृपा की और कहा ‘भाई भीम! वयोवृद्धों के प्रति मर्यादा का भाव रखी, अपनी शक्ति के प्रति जो अहंकार है. उसे छोड दो। आप जिस काम पर आए
हो, उसमें सफलता पाओगे। ऐसा कहने के बाद, हनुमान ने श्रीराम का नाम जप करना प्रारंभ किया ।
भीम आगे बढकर तालाब पर पहुंचा, वहाँ से कमल के फूल इकट्ठा किए तथा वापिस लौटकर द्रौपदी को दिया। द्रौपदी अति प्रसन्न हुई।