भगवान कृष्ण को मिठाई समर्पण
भगवान श्रीकृष्ण अपने सखों के साथ यमुना नदी के किनारों पर खेलता था । श्रीकृष्ण के दोस्त हर दिन कुछ न कुछ खाने को ला देते थे और श्रीकृष्ण उसे स्वीकार कर अपने दोस्तों में भी बाँटता था ।
मधुमंगा सांध्य का पुत्र था। उसको यशोदा माँ हर दिन भोजन दिया करती थी। एक बार श्रीकृष्ण ने मधुमंगा से पूछा ‘हे मधु ! तुमको छोड़कर सभी ने मेरे लिए कुछ-न-कुछ खाने को दिया। आज मेरे लिए कुछ लाओ, भूलो मत!’ जब मधुमंगा ने अपनी माँ से खाने को कुछ माँगा, तो उन्होंने मधु से कहा ‘मधु बेटे !

हमें खाने को तभी कुछ मिलता जब तक तुम्हारे पिताजी की पूजा पूरी नहीं होती। घर में थोड़ा खट्टा दही है, उसमें थोड़ा चीनी डालकर दूँगी, तुम उसे श्रीकृष्ण को दो।’ मधुमंगा ने उसे लिया, लेकिन रास्ते में ऐसा सोचता गया- ‘जो नित्यप्रति अनेक प्रकार के स्वादिष्ट पदार्थ खाने वाले श्रीकृष्ण को ऐसा खट्टा दही कैसे खिलाऊँ? नहीं, नहीं मैं स्वयं इसे खा लूँगा।
ऐसा कहते हुए वह एक वृक्ष के पीछे जाकर खाने लगा। वृक्ष के ऊपर कन्हैया बैठा था । ऊपर से मधुमंगा को देखकर वहाँ आया और कहा ‘हे मधुमंगा तुम्हारी माँ ने उसे मेरे लिए भेजा था, उसे तुम क्यों खा रहे हो?’ कृष्ण के उस तक पहुँचने से पहले मधुमंगा ने सारा दही पी डाला। कृष्ण ने मधुमंगा के होंठों को चाटा। कृष्ण ने एकदम चीखकर कहा ‘तुम ने मुझे मधु दिया । कितना मीठा है रे!’ उसके जितने दोस्त इर्द गिर्द थे, वे सभी भी आनंदपूर्वक कहने लगे ‘हे कृष्ण! हे भगवान ! तुम अपने भक्तों के दास हो । तुम्हें अपने भक्तों के द्वारा जो भी दिया जाता है, उसे तुम बडे चाव के साथ लेते हो कान्हा !