भक्त सेनानवी के रूप में भगवान की लीला

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भक्त सेनानवी के रूप में भगवान की लीला


सेनानवी, राजा का शाही नाई था। वह श्रीमहाविष्णु का महा भक्त था। हर सुबह, घर से बाहर निकलने से पहले वह श्रीमहाविष्णु की पूजा करने के बाद ही राजभवन में जाता था।

एक दिन भक्ति परवाना में विलीन रहकर समय पर राजभवन पहुंचना नहीं हो पाया। नाई की पली चवरा गई थी क्योंकि उसके पति राजभवन नहीं पहुंच पाया और इसके लिए राजा क्रुद्ध हो जायेगें।

इसी बीच राजभवन से एक सेवक सेनानवी के घर आ पहुंचा। सेनानवी की पत्नी ने उससे कहा है सेवक! चे भगवान की पूजा कर रहे हैं। पूरा करने के बाद वे चहाँ पहुंचेंगे। सेवक ने कहा ‘हे माँ। राजा ने उनको तुरंत भवन में से आने की आज्ञा दी। नाई की पत्नी ने कहा ‘हे सेवक! अभी उनकी पूजा में में विघ्न नहीं डाल सकती ।

भक्त सेनानवी

सेवक ने राजा के पास जाकर यह कहा कि नाई उनके साथ नहीं आया। राजा यहुत क्रुद्ध हुआ और ऐसी आज्ञा दी ‘कोई सेवक नाई के घर जायें तथा उसे बाँधकर चाहाँ ले आये। सेवकों के जाने से पहले सेनानवी अपनी सामग्री के साथ भवन की ओर आते हुए दिखाई दिया। सेवक उसे बांधकर राजा के पास लेने गये।

राजा ने उसके बंधन की खुनवाकर सेनानवी से कहा कि हर दिन की भांति मेरा मालिश करो। मालिश करते समय राजा को असाधारण आनंद मिला। राजा की नजर बर्तन में रखे तेल पर पड़ी। राजा ने आश्चर्यपूर्वक तेल के चर्तन में सेनानवी की छाया के बदले श्रीमहाविष्णु की प्रतिछाया तथा उसके हाथों में शुरपचित को लिए हुए को देखा। राजा ने पूछा ‘सेनानवी। मैं तुम्हारे मालिश से अति प्रसन्न हुआ, तुम मेरे ही महल में सर्वदा के लिए क्यों नहीं रह सकते?”

नाई ने उनकी बात को ठुकराते हुए कहा हे प्रभू! अगर में यही पर ठहर जाऊँगा तो मेरे अन्य जो भी कत्म होते हैं उसका क्या होगा? जब भी आप आज्ञा दोगे, उसी समय में आपके यहाँ हाजिर ही जाऊँगा’ राजा ने नाई को एक वैली भर सोने के सिक्के दिये तथा उससे कहा-मेरे नहाकर आने तक वहीं रही, चाहाँ से मत जाओ।

सिपाही के साथ जी राजमहल में नाई के रूप में आया और राजा की सेवा की थी, वह सेनानवी नहीं था बलिक वह स्वयं श्रीमहाविष्णु था. हा सेनानषी था। वह अपने भक्त को राजा के द्वारा दिये जाने वाले दण्ड से बचाने को आया था।

घर पर सेनानवी भगवान के ध्यान में मग्न था। श्रीमहाविष्णु सेनानवी के घर आया तथा उसके घर पर राजा के द्वारा दी गई स्वर्ण सिक्कों से भरी वैली रखकर गायव हो गया।

राजा नहाकर आया तथा सेनानवी को अपने कमरे में नहीं पाया। राजा ने पुनः सेनानदी को भवन में लिया लाने के लिए सेवक को भेजा। सेवक गाई के घर आकर सेनानवी को बुलाया। सेनानवी की पाणी ने पति से कहा कि फिर से आये सेवक के साथ राजमहल में जाओ।

सेनानवी तुरंत राजमहल पहुंचा। गजमहल में सेनानवी को देखते ही राजा, ने उसे अपने बाहों से आलिंगन किया। गजा ने प्रश्न किया ‘तुम क्यों चले गये। मैं तुम्हारी छाया तेल के चर्तन में देखना चाह रहा था। सेनानवी की समझ में कुछ नहीं आया। उसने राजा से पूछा के राजन् ! में अभी अभी ही तुम्हारे पास आया हूँ। अभी तक में घर पर बैठकर पूजा पाठ तथा ध्यान कर रहा था। राजा ने आश्चर्यपूर्वक पूछा तब कुछ समय पहले किसने मेरा कुराकर्म तथा मालिश किया?’

सेनानवी ने जान लिया कि श्रीमहाविष्णु ने ही नाई के भेष में आकर राजा का सुराकर्म तथा मालिश किया है। सेनानयी ने संतोषातिरेक में कहा ‘हे राजन्। आप बहुत भाग्यशाली हो। आप को भगवान का दर्शन हुआ तथा उनसे सेवा भी ली। भगवान सदा अपने भक्तों की रक्षा करेंगे।

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