भक्त कनकदास

By Admin

Published on:

भक्त कनकदास


कनकदास, श्रेष्ठ भक्त एवं कवि थे। उनका जन्म एक शिकारी के परिवार में हुआ था। कर्नाटक के धारवाड जिले के पाड़ा नामक गाँव में ये रहते थे। एक दिन उन्होंने एक चट्टान से टक्कर खाई। उस चट्टान के नीचे बहुत सारी स्वर्ण मुद्रायें जमे पड़े थे। उन मुद्राओं को उन्होंने अपने लिए न रखकर, निर्धन लोगों में बाँट दिया। वे एक महान गुरु के शिष्य बने। एक दिन गुरु ने अपने सभी शिष्यों को अपने पास बुलाया । गुरु ने सभी को एक केला देते हुए कहा ‘जहाँ पर कोई आपको नहीं देखता, वहाँ पर इस केले को खाइए।’ एक शिष्य पेड के पीछे छिपकर खाने लगा, दूसरा एक मकान के पीछे गया, इस प्रकार सभी शिष्यों ने छिप छिपकर खाया। लेकिन कनकदास चिना कहीं हिले, केले को अपने पास रखकर वहीं रह गये। गुरु ने शिष्य से पूछा ‘कनकदास! तुमने केले को क्यों नहीं खाया?’ कनकदास ने जबाव दिया हे गुरुयर। जहाँ भी में जाता हूँ, भगवान को में वहाँ पाता हूँ। ऐसा कोई जगह नहीं है

जहाँ भगवान विद्यमान नहीं हो। इसलिए आपके बचन का में पालन नहीं कर पाचा।’ गुरुवर अति प्रसन्न हुए। उन्होंने कहा ‘है कनकदास। तुम तो बहुत बड़े भक्त हो। तुम्हारे जैसे शिष्य को पाकर में गर्व मेहसूस कर रहा हूँ।’

उडिपि, एक यशप्राप्त तीर्थस्थान था। आज भी यह गाँव है और वहाँ भगवान कृष्ण का मंदिर है। एकदा समय, एक बड़ा उत्सव उस मंदिर में मनाया गया था। सैकडों भक्तगण उस में भाग लेने आये । कनकदास भी उस उत्सव में भाग लेकर अनेकानेक भक्ति के गीत गुनगुनाने लगा था ।

उस मंदिर के पुजारियों ने कनकदास को मंदिर के अंदर जाने से यह कहते हुए रोका कि ‘तुम निम्न जाति के व्यक्ति हो। कैसी जुर्रत है तेरी इस मंदिर में आने की। बाहर निकलो।’

कनकदास टस से मस नहीं हुआ। वहीं खड़े होकर एक अ‌द्भुत भक्ति परक गीत आलापने लगा। एक पुजारी ने उस पर हाथ उठाकर, कनकदास को मंदिर के बाहर कर दिया। कनकदास ने मंदिर की प्रदक्षिणा की। ये भगवान की प्रार्थना करते हुए मंदिर के पीछे के दीवार पर झांकते खड़े हो गये। वे कहने लगे ‘हे कृष्णा ! माधवा में ने कौन – सा अपराध किया कि मुझे मंदिर में तुम्हारा दर्शन नहीं मिला।’

तुरंत एक बड़ी आवाज के साथ वह दीवार गिर पड़ी और कनकदास को अंदर जाने के लिए मार्ग दिखाई। कृष्ण की मूर्ति कनकदास की ओर मुड़ गई। कनकदास ने कृष्ण भगवान का अति निकट से दर्शन किया। कनकदास पर भगवान की कृपा वृष्टि हुई। आज भी उडिपि मंदिर में वह गलियारा ‘कनकदास गलियारा’ नाम से देखा जा सकता है।

कनकदास ने बहुतेरे भक्तिपरक गीतों की रचना की। इनको हरिभक्त सारा कहते हैं। आज भी इनके गीत, संगीतज्ञों से गाये जाते हैं।

Leave a Comment