‘पूरी’ मंदिर की मूर्ति
कलिंग देश के राजा ने भगवान जगनाव के लिए एक मंदिर बनवाया। उसने उसमें जगद्वाय की अति सुंदर मूर्ति का प्रतिष्ठापन करना चाहा। राज्ञ्च ने पूरे देश में इस बात की सूचना पहुंचाई
“अपने द्वारा बनाये गये मंदिर में राजा भगवान जगन्नाथ की अति सुंदर मूर्ति का प्रतिष्ठापन करना चाहते हैं। जो शिल्पी मूर्ति को चनाकर राजा को संतुष्ट करेगा, उसको गजा दस हजार स्वर्ण मुद्राचे भेंट देगा। लेकिन एक इार्त है अगर शिल्पी राजा को संतुष्ट नहीं कर पायेगा, तो उसका सिर काट दिया जाएगा।”
अपने सिर के कटने के भय से कोई आगे नहीं आया।
लेकिन एक वृद्ध शिल्पी ने राजा से आकर कहा मूर्ति का निर्माण कर सकता हूँ लेकिन मेरी एक शर्त है। राजा ने आश्चर्य चकित होकर पूछा आपकी शर्त क्या है?”
‘हे राजा! मूर्ति तीस दिनों में तैयार हो जाएगी, और इन दिनों के दौरान मंदिर को चंद रखना होगा। जैसे भी हो, इन तीस दिनों में किसी को भी, स्वयं आपको भी मंदिर को खोलना नहीं होगा। राजा ने शर्त स्वीकार की।

वृद्ध शिल्पी ने मंदिर की बंद करके अपना काम प्रांरभ किया। मंदिर के चाहर लोग छेनी की आवाज सुनने लगे थे टनटनटन।
मंत्री ने राजा से कहा ‘हे राजा मंदिर के अंदर अकेले शिल्पी ही रहता है। लेकिन जी आवाज हम सुनते हैं वह ऐसा सुनाई पड़ती है मानों हजारों मजदूर अंदर काम कर रहे हों। मुझे शंका ही रहा है कि शिल्पी मूर्ति का निर्माण कर रहा है या बहुतों के साथ मिलकर अंदर से मंदिर तोड़ रहा है? संदेश दिनियों की आपाज के कारण हो रहा है।
राजा ने कहा ‘मैने उसकी शर्त को माना था। इसलिए एक महीने तक मंदिर खोल नहीं सकता। और आज तक तो काम प्रारंभ होकर केवल दस दिन ही हुए। चंद और दिनों के लिए हम रुकेंगे।
दस दिन चीत गये। चंद मंदिर के अंदर से भयंकर आवाज निरंतर आने लगी। इसलिए मंत्री महोदय पुनः राजा से मिलना चाहा। राजा से मिलकर वह ऐसा कहने लगा है गजा। मुझे संदेह हो रहा है कि यह वृद्ध शिल्पी शाचद ही अपना कार्य कर रहा हो। संभव है कि वह हमारे शत्रुओं का दूत हो और इस मंदिर को धराशायी बनाने के लिए शिल्पकार के भेष में आया हो।’
राजा ने जवाब दिया ‘तीस दिन पूरा होने तक हमको रुकना होगा, क्योंकि मुझे अपने वचन का पालन करना ही होगा।’
राजा स्वयं ने आकर मंदिर से आनेवाली भयंकर आवाज को सुना। इसे सुनकर राजा तीस दिनों की पूर्ति तक रुक नहीं पाया।
अगले दिन, राजा ने जबरदस्त मंदिर के दरवाजे को खुलवाया। राजा तथा दरवारी अधिकारी मंदिर के अंदर घुसे। मंदिर को कोई नुकसान पहुँचाया नहीं गया।
अरे। राजा आश्चर्यचकित हुआ ।
जिस मूर्ति को शिल्पी चना रहा था, वह अनाकारी च कुरूपी शिल्प था। राजा गुस्से में आकर शिल्पी को डॉटते हुए चिल्लाने लगा क्या
इसी को सुंदर शिल्प मानते हो? तब शिल्पकार ने उत्तर दिया है राजा! तुमने तीस दिनों तक दरवाजा नहीं खोलने का वचन दिया था। क्या चंद दिनों के लिए आप रुक नहीं सके? मैं तो भगवान जगनाथ की सुंदर मूर्ति यनाने वाला था।
राजा ने जवाब दिया हम मंदिर के अंदर इसलिए आये क्योंकि इसके अंदर से भयंकर आवाज सुनाई दे रही थी।
तच शिल्पी ने राजा से कहा ‘भगवान हर जगह रहता है, चाहे मूर्ति सुंदर हो या असुंदर, इसी बात को आप तक पहुंचाने के लिए मैंने इस बदसूरत मूर्ति को वनाचा है। एक सुंदर मूर्ति के साथ साथ इस बदसूरत शिल्प को भी इस मंदिर में प्रतिष्ठित करवहए। ऐसा कहते हुए शिल्पकार ने अपना उद्य भेष ग्रोडा। वह स्वर्थ जगनाथ था। वह स्वयं एक सुंदर मूर्ति में परिणत हुआ और उसी मंदिर में स्थापित हो गया।