पिप्पलाद का अविवेकी वरदान

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पिप्पलाद का अविवेकी वरदान


वृत्रासुर को मारने के लिए अपनी हड्डियों से वज्रायुध बनवाने दधीचि मुनि ने देवताओं के राजा इंद्र की सहायता में अपना जीवन त्याग दिया । लेकिन पिप्पलाद ने यह समझ रखा था कि इंद्र ने उसके पिताजी को मार दिया। उसको यह मालूम नहीं था कि दधीचि ने स्वेच्छापूर्वक अपना जीवन दान दिया। वह इंद्र से प्रतिशोध लेना चाहा ।

पिप्पलाद ने कठोर तपस्या करके शिव को प्रसन्न कर वर माँगना चाहा । उसको ऐसा वर चाहिए था कि वह इंद्र सहित सभी देवताओं को मार सके ।

शिव जी पिप्पलाद की तपस्या से प्रसन्न हुए तथा उसे कोई वर माँगने को कहा। पिप्पलाद ने शिव जी से ऐसा कहा ‘हे भगवान शिव ! तुम अपना तीसरा नेत्र खोलकर इंद्र सहित सभी देवताओं को भस्म कर दो।’

शिवजी ने पिप्पलाद से पूछा ‘हे भक्त! तुमने क्या इसलिए तपस्या की कि मैं अपना अग्नि नेत्र खोलकर पूरे विश्व को जला दूँ? मैं एक बार अपना नेत्र खोलूँगा तो पूरा विश्व जलकर राख हो जाएगा। पिप्पलाद ने शिव को वही वर देने के लिए आग्रह किया, हठ किया। शिव जी ने उससे कहा ‘हे वत्स! लोग यब भूल जाते हैं ये क्या कर रहे हैं जब वे क्रोध या प्रतिशोध से भरे रहते हैं। फिर भी, मैं अपना तीसरा नेत्र तुम्हारे हठ के कारण खोलूँगा, तुम्हें उसके परिणाम बाद में मालूम होगा।’ शिव भगवान ने अपना तीसरा नेत्र थोड़ा खोला।

पिप्पलाद का अविवेकी वरदान

पिप्पलाद को ऐसा लगने लगा कि उसका शरीर जल रहा है। जलन के कारण पीड़ा जब हुई, तब उसने चीखना प्रारंभ किया। उसने शिव जी की निन्दा करने लगा। “हे भगवान! इंद्र तथा देवताओं को जलाने की बजाय, आप मुझे क्यों जला रहे हो?” तव शिवजी ने ऐसा कहा ‘मैं तुम्हें जला नहीं रहा हूँ। मैं देवताओं को ही जला रहा हूँ। क्या तुम जानते हो कि देवता कहाँ हैं? वह हर प्राणी के देह में रहता है। इंद्र तुम्हारे में वास करता है, तुम्हारी आँखों में सूर्य (सूर्य भगवान), तुम्हारी नाक में अश्विनी कुमार तथा तुम्हारे मस्तिष्क में चंद्रमा वास करता है। इसलिए जब मैं देवताओं को जला रहा हूँ, तुम इसे मेहसूस कर रहे हो।’

पिप्पलाद की अविवेक बुद्धि दूर हुई, उसकी आँखें खुली, उसको अपनी दुर्बुद्धि के परिणाम मिले। उसने तुरंत शिवजी के आगे साष्टांग प्रणाम कर उनकी स्तुति की ‘हे शिव भगवान! आप अपना तीसरा नेत्र बंद कर लीजिए। मुझे ऐसा वर दो कि मैं आपका सदा भक्त रह जाऊँ। मुझे कुछ और नहीं चाहिए भगवान ।

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