परीक्षित महाराज – महाभागवतम्

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परीक्षित महाराज – महाभागवतम्


पाण्ड़यों के मंजला भ्राता अर्जुन का पुत्र अभिमन्यु है। एक दिन परीक्षित आखेट खेलने के लिए जंगल में गया। बहुत देर तक शिकार करने के बाद उसे प्यास लगी। वे समीका मुनि के आश्रम में आये। समीका मुनि संपूर्ण रूप से ध्यान मग्न थे। परीक्षित उनके पास जाकर पानी की माँग की। मुनि से कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखाई। वे ध्यानमग्न थे।

परीक्षित ने यह सोच रखा था कि मुनि ने उन्हें नजरंदाज किया । वह मुनि पर आग बबूला हुआ। वहाँ एक मरा हुआ साँप पड़ा हुआ था। उसने उस सौंप को बाण से उठाकर मुनि के कण्ठ में डाल दिया ।

थोड़ा समय बीतने के बाद समीका के पुत्र श्रृंगी वहाँ आये, तथा आश्रम में ध्यानमग्न अपने पिता के कंठ में मरे हुए साँप को देखा। वह अत्यंत क्रुद्ध हुआ तथा शाप दिया ‘सपों के राजा तक्षक उस व्यक्ति को सात दिनों में डस दें जिसने मेरे पिता के कंठ में यह साँप डाला ।

परीक्षित महाराज

तपस्या की पूर्ति के बाद अपने बेटे के द्वारा दिया गया शाप उसे मालूम हुआ। अपने तपोबल से मुनि ने यह जान लिया कि यह काम परीक्षित का था जो श्रीकृष्ण का भक्त था, देश का राजा था तथा ग्लानि से भरा व्यक्ति भी था।

परीक्षित की इस शाप की सूचना दी गई। उसे बहुत दुःख हुआ तथा अपने किये पर चिन्ता किया। उसने श्रीकृष्ण की प्रार्थना की है भगवान! मेरे पास केवल सात दिनों के लिए जिन्दा रहूँगा। मुझे मुक्ति प्रदान करो ।’

उसने अपने पुत्र जन्मेजय का राज तिलक करवाया। वह गंगा नदी के किनारे जाकर रहने लगा। बहुत सारे मुनिगण तथा शुकमुनि परीक्षित से मिलने वहाँ आये। शुक मुनि ने राजा से कहा हे राजन् भगवान का नाम स्मरण तुम्हें मानसिक शांति तथा मुक्ति दोनों प्रदान करेंगे। तुम्हारे साथ यहाँ उपस्थित सभी मुनियों को मैं ‘श्रीमद्भागवतम्’ को गाथाएँ सुनाऊँगा जो भगवान के अवतारों की गाथाएँ हैं। इन सातों दिनों में इसे बड़ी भक्ति के साथ सुनो।’

शुक मुनि ने अपने जनक वेदव्यास के द्वारा विरचित ‘महाभागवतम् को सुनाया। परीक्षित ने इन सातों दिनों में तक्षक को अपने तक पहुँचने से बचाने के अनेक उपाच निकाले। सतर्कता बरतने के बावजूद तक्षक एक कोडे के रूप में फल के अंदर घुसा तथा परीक्षित को मार डाला। मुनि का शाप कभी व्यर्थ नहीं जाता।

परीक्षित अंतिम दिनों में भगवान के वैभवपूर्ण गाथाँए सुनते हुए शांतिपूर्वक जीवन निताया। भागवतम् के लेखक वेदव्यास के पुत्र शुक मुनि के द्वारा सुनकर और भी संतुष्ट हुए।

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