परम भक्तिन अलगि
राजराजचोल, तमिलनाडु के राजा थे। वे शिव भक्त थे । तंजाउर जो उनके राज्य का केन्द्र था, वहाँ उन्होंने भगवान शिव का मंदिर बनवाना चाहा। हजारों की संख्या में मजदूर तैनात हुए जो चौबीस घंटे काम पर कार्यरत थे। उस गाँव में एक बूढ़ी रहा करती थी, जिसका नाम अलगि था। पूरे गाँव के लोग मंदिर के निर्माण में व्यस्त थे लेकिन अलगि कुछ भी नहीं करती थी। इसलिए अलगि को ग्लानि होती थी। एक बार एक मजदूर ने अलगि से पूछा ‘हे माँ! आप मुझे थोड़ा छाछ दीजिए। मुझे बहुत प्यास लगी है। अलगि ने छाछ दिया। उसके बाद उन्होंने सोचा ‘मैं इन मजदूरों जो शिव मंदिर बना रहे हैं, इनको क्यों न छाछ दूँ? वही शिवजी के लिए मेरी सेवा होगी ।’
तब से अलगि प्यासे मजदूरों को छाछ देने लगी। मजदूर इस औरत को साधुवाद देते थे ‘भगवान शिव आपकी दयालुता पर संतुष्ट होंगे और आपको आशीर्वचन देंगे। छत की आखरी ईंट के रखते ही मंदिर का निर्माण पूरा हो जायेगा। अलगि बहुत दुःखी हुई क्यों कि काम पूरा
होते ही मजदूर चले जायेंगे। यह बूढ़ी औरत किसकी मदद करेगी तथा किसकी प्रयास बुझायेगी। उसके पास दान देने के लिए पैसा भी नहीं था ।
अचानक उसकी आँखें अपने कुटीर के सामने के एक पत्थर पर पडी। उसने मंदिर के मुख्य शिल्पी से कहा ‘हे स्वामी! मेरी एक छोटी – सी इच्छा की आप पूर्ति करोगे क्या?’ शिल्पी ने जवाब दिया ‘हे माँ! कहो मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ?’ अलगि ने कहा ‘मेरे कुटीर के सामने एक पत्थर है जो शिखर का अंतिम ईंट के समान काम आ सकता है।

आप क्या उसे छप्पर के अंतिम पत्थर के रूप में उपयोग करोगे?’ मुख्य शिल्पी ने उसके लिए सहमति दी। उस रात को राजा के स्वप्न में शिव जी का दर्शन हुआ। भगवान ने दर्शन देकर ऐसा कहा -‘हे राजा! अलगि ने जिस पत्थर को छत पर रखने की बात कही, वह मुझे बहुत अच्छा लगा, अगर वही हो तो मैं प्रसन्न हो जाऊँगा ।’
राजा ने अलगि के बारे में मुख्य शिल्पी से पूछताछ करके, उनसे मिला तथा ऐसा कहा ‘हे माँ! आपकी भक्ति ने भगवान शिव को प्रसन्न कर दिया। राजा ने उस वृद्धा के संस्मरण में मंदिर के सामने एक तालाब बनवाया और उस तालाब को उसी वृद्धा का नाम दिया। आज भी वह विद्यमान है ।