मूर्तिभूत : दयावान वल्लालर

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मूर्तिभूत: दयावान वल्लालर

बहुत वर्ष पहले वहलार नामक एक गाँव में वल्लालर, व्याख्यान दे रहे थे। वहाँ पहुँचने के लिए एक भू-स्वामी बैलगाडी पर सफर कर रहा था। जमींदार ने संचालक से बैलगाड़ी को तेज हॉकने के लिए कहा। थोड़ी दूर सफर करने के बाद, वे एक नदी के पास पहुँचे। संचालक ने कहा ‘वैलों को थोड़ा पानी पीने देंगे। वे बहुत प्यासे हैं। लेकिन जमींदार ने कहा ‘नहीं, उसके बारे में वाद में सोचेंगे, गाड़ी को तेज चलाओ।”

थोड़ी दूर और जाने के बाद संचालक ने कहा ‘हे स्वामी। दोनों बैल बहुत थक गये हैं। किसी पेड के पास थोड़ी देर आराम करके फिर चलेंगे।’ भूस्वामी ने कहा हमको समय व्यर्थ गंवाना नहीं है। हमको स्वामी जी से आज ही मिलना है तथा आज ही गत से पहले घर वापस लौटना है। जल्दी चलो ।’

सभी वहलूर पहुँचे । वल्लालर स्वामी व्याख्यान दे रहे थे। जमींदार ने विनयपूर्वक स्वामीजी को नमन किया तथा उनके सामने बैठ गया।

बैल गाड़ी के संचालक ने दोनों बैलों को वल्लालर के घर के पिछवाडे में ले गया। स्वामीजी वल्लालर उनकी ओर देख रहे थे। स्वामीजी अचानक अपनी जगह से उठे तथा यहाँ पहुँचे जहाँ बैल खड़े थे । सामान्यतः स्वामीजी, व्याख्यान देते समय बीच में कभी उठते नहीं थे, इसलिए सभी आश्चर्यचकित हुए। वहाँ उपस्थित सभी श्रोता स्वामीजी का अनुसरण कर घर के पिछवाड़े की ओर गये ।

मूर्तिभूत : दयावान वल्लालर

स्वामीजी ने बैलों को थोडा सहलाते हुए कहा ‘हे बैलों! आपको मेरे कारण कष्ट उठाना पड़ा। आप बहुत प्यासे व धके हुए थे, आपने कष्ट उठाया।’ स्वामीजी ने आँसु बहाये ।

जमींदार ने स्वामीजी से कहा ‘हे स्वामीजी! मुझे क्षमा कीजिए, मैं ही इनके कष्टों का कारक हूँ। आप तो मुरझाते फूल के कष्ट को भी देख नहीं सकते हो।’ सजीव प्राणियों के कष्ट आप कैसे हो सहन कर पाओगे? मैं ने अज्ञानवश गाड़ी के संचालक से कहा कि वह बैलों को तेज हाँके ।’

स्वामीजी ने तुरंत ही वैलों के लिए घास का बंदोबस्त कराया। वे अपने स्थान पर जाकर पुनः अपने व्याख्यान को आगे बढ़ाया। स्वामीजी वल्लालर ने कहा-

‘भगवान सभी सजीव प्राणियों में बसता है। किसी प्राणी को हिंसा पहुँचाना, भगवान को हिंसा पहुँचाने के समान है। इसलिए आप सभी सहृदयी बनकर सभी सजीव प्राणियों पर दया दिख्खाइए। वही बात श्रीकृष्ण ने भगवद्‌गीता में स्पष्ट किया है।

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