झांसी की रानी लक्ष्मीबाई
एक बार वारणासी में दशहरे के उत्सव मनाये जा रहे थे। स्नान घाटों पर सैकड़ों भक्तगण गंगा के कूल पर तथा गंगा नदी पर तैरनेवाले नाँवों पर खड़े होकर उत्सव को देख रहे थे।
एक नाँव जो सुसज्जित था, उस में पेशवा भाजी राव II, उसके भाई तथा सभासद, मोराबंद और तांद्दे आदि राजपरिवार के सदस्य इस उत्सव को देख रहे थे। उसी नाँव में मोराबंद की सात वर्षीय बेटी मनु भी थी। अचानक एक मगरमच्छ पानी से बाहर उच्छलता दिखाई दिया । लोग चिल्लाने लगे ‘मगरमच्छ, मगरमच्छ !’ वह उस ओर तैर रहा था जिस ओर कुछ बालक तैर रहे थे। उनमें से एक ने चिल्लाया ‘मगरमच्छ, मगरमच्छ !’ एक बालक को छोडकर बाकी सभी तैरते हुए घाट पर पहुँच गये, नाँव पर जो व्यक्ति थे उन्होंने तथा सिपाहियों ने भी चिल्लाया ‘मगरमच्छ, मगरमच्छ !

मनु ने भी उस बालक को देखा। एक मगरमच्छ उस का पीछा कर रहा था। अचानक उसके पिताजी तथा परिवार के सदस्यों को आश्चर्य में डालते हुए मनु ने नदी में कूद दिया। मनु ने उस बालक को पकडा एवं निकट के नाँव में ले आकर लिटा दिया । उसके पिता ने उसको बाहों में बाँध लिया और कहा ‘मेरी प्यारी बेटी ! तुमने अपने जान को खतरे में डालकर बालक को बचाया । तुम्हारे मन में दूसरों के प्रति करुणा है और साथ ही साथ तुम काफी शक्तिशाली लडकी हो ।’
यह बच्ची वही थी जो झांसी की रानी लक्ष्मीबाई थी जिसने अंग्रेजों से लड़ा था और हमारे भारत देश को स्वतंत्रता दिलाने के लिए अपना हाथ बढ़ाया था ।