जय और विजय (वैकुंठम के द्वारपालक)

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जय और विजय (वैकुंठम के द्वारपालक)


सृष्टि कर्ता ब्राह्म ने चार बच्चों सनक, सनंदन, सनातन तथा सनतकुमार का सृजन किया था। इन्होंने शाश्वत रूप से बालक ही रहने का वर पाया था। इन्हें अनंत शक्ति भी प्राप्त था। उन्हें स्वेच्छापूर्वक कहीं भी घूमने का यर प्राप्त था।

एक दिन ये वैकुंठवासी भगवान श्रीमहाविष्णु से मिलने गये थे। उनको सात द्वार पार करके जाना था। वे छः द्वारों को पार कर सातवें द्वार पर आये। वहाँ जय और विजय द्वारपालक बनकर खड़े थे। उन्होंने मुनियों को उस द्वार को पार कर अंदर जाने से मना किया और ऐसा कहा ‘आप ने ढंग के कपडे नहीं पहना। बालकों ने जवाब दिया-‘हम भगवान ब्रह्म के यही हैं। हम भगवान श्रीमहाविष्णु का दर्शन करना चाहते हैं। आप हमें रोकने की कोशिश मत करो।’ इतने में जय ने कर्कश स्वर में कहा ‘हे बच्चों, जिद्द मत करो, यहाँ ऊधम मत मचाओ, हम गर्दन पकडकर आपको बाहर कर देंगे।’

द्वार पर आये बच्चे इस अपमान को सह नहीं पाये और बहुत क्रुद्ध हो गये। उन्होंने दोनों द्वारपालक जय तथा विजय को ऐसा कहकर शाप दिया

‘हे जिही लोगों! आप इस पवित्र स्थल पर ठहरने के योग्य नहीं हो। आप भूलोक में असुरों (राक्षसों) के रुप में जन्म लो। द्वारपालकों को अपने पाप कर्म का अहसास हुआ। पश्चात्ताप में वे उन मुनि वालकों के

चरणों में गिरकर याचना की तथा शाप शमन के उपाय बताने के लिए प्रार्थना की। उसी समय श्रीमहालक्षमी समेत श्रीमहाविष्णु वहाँ पधारे। चारों मुनि बालकों ने दिव्य दंपति को प्रणाम करके उनकी स्तुति की ।

जय और विजय (वैकुंठम के द्वारपालक)

जय विजय ने अपने मालिक भगवान श्रीमहाविष्णु की प्रार्थना की यथा, हे भगवान हमें क्षमा करो, हमें शापमुक्त करो।’ तव भगवान ने कहा ‘हे मुनि पुंगव। जरा विचार करो! शाप को वापस लो ।’

मुनियालकों को द्वारपालकों पर करुणा उभर आई और उन्होंने जय तथा विजय से पूछा ‘आप एक सी योनियों में जन्म लेकर भगवान श्रीमहाविष्णु के भक्त बनकर जीना चाहते हो या तीन योनियों में भगवान के शत्रु बनकर जीना चाहते हो? उत्तर में उन्होंने ऐसा कहा ‘एक सी जन्म लेकर उतने लम्बे समय तक भगवान से दूर रहने की बजाय हम तीन जन्मों का ही चयन करेंगे ।’

तुरंत ही भगवान श्रीमहाविष्णु ने उनसे कहा ‘आपकी प्रार्थना हमें स्वीकार है। भूलोक जाकर असुर बन जाओ।’

जय और विजय ने असुरों के रूप में पहली योनी में हिरण्याक्ष तथा हिरण्य कशिपु दूसरी योनी में कुंभकर्ण एवं रावण तीसरी योनी में शिशुपाल तथा दंतवक्रके रूप में जन्म लिया। उपर्युक्त योनियों में जन्म लेकर उन्होंने श्रीमहाविष्णु से शत्रुता रखी तथा उन्हीं के हाथों मारे गये। श्रीमहाविष्णु ने नरसिंह, श्रीराम तथा श्रीकृष्ण के अवतार ग्रहण कर असुरों का संहार किया ।

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