जयदेव तथा अष्टपदी
‘गीतगोविन्दम्’ के रचनाकार जयदेव का जन्म पूरी के आसपास एक छोटे से ग्राम में हुआ था। वे कृष्ण के अनन्य भक्त थे। वे बहुचर्चित कवि भी थे। उन्होंने ‘गीत गोविन्द’ तथा ‘अष्टपदी’ नामक ग्रंथ की रचना की थी।
पद्मावती उनकी पट्टरानी थी। वह अपने पति के संग बड़ी सम्मान के साथ व्यवहार करती थी। अड्डारह अष्टपदियों को पूरा करने के बाद, वे उन्नीसवाँ अष्टपदी प्रारंभ करने वाले थे। इस छंद में उनको भगवान श्रीकृष्ण और उनकी प्रिया राधा के श्रृंगार क्रीडा का वर्णन करना था। उन्होंने इसे अधूरा छोड़कर नहाने के लिए चले गए। नदी में स्नान करके जयदेव घर वापस लौटे।
आधा छोडे छंद को पूरा करने के लिए जयदेव ने उन्नीसवें अष्टपदी को लिया। आश्चर्यचकित होकर जयदेव ने देखा कि उनका अष्टपदी भर दिया गया। कवि ने अपनी पत्नी पद्मावती से पूछा ‘पद्या! इस छंद को किसने भग? मुझे कुछ सूझ नहीं रहा है।’ पत्नी ने जवाब दिया। जयदेव पहचान गए कि श्रीकृष्ण ने स्वयं ही इस छंद को पूरा किया । जयदेव ने पत्नी से कहा ‘तुमने मुझसे कहा था में ने बीच में आकर तुमसे पांडुलिपि माँगकर छंद को लिखा था। लेकिन में बीच में आया ही नहीं था। श्रीकृष्ण स्वयं मेरे भेष में आकर इसे पूरा किया। तुम बड़ी भाग्यशाली हो क्योंकि तुम्हें श्रीकृष्ण का दर्शन प्राप्त हुआ ।
एक बार राजा के एक रिश्तेदार का देहांत हुआ। उसकी पत्नी ने पति की चिता पर बैठकर सती बनने का निर्णय लिया था। राजा तथा पूरा शहर इस घटना को देखने के लिए श्मशान में एकत्रित हुए। उसी दिन को पद्मावती, रानी से जा मिली थी। रानी ने पद्मावती से पूछा तुम सती की उस घटना को देखने के लिए नहीं आओगी?’ तथ पद्मावती ने जबाव दिया नहीं महारानी ! इस सती में क्या ही विशेषता है? पति की मृत्यु के तुरंत पत्नी का अगर देहांत हो. तय उसकी मान्यता है। सती वनना कोई मायना नहीं रखता। रानी ने कहा ‘तुम जो कहती हो, उसे में स्वीकार नहीं सकती। लेकिन पद्मावती ने कहा ‘पति के देहांत के तुरंत पत्नी की मृत्यु होना उसका संकेत करता है कि पत्नी पति से प्रेम करती है। रानी ने तच कहा ठीक है, में तुम्हारे इन वचनों की परीक्षा किसी और दिन को लूँगी।’
एक बार जयदेव, राजा के साथ शिकार पर निकले। उस समय पद्मावती रानी के साथ थी। रानी ने एक सिपाही से रहस्यपूर्वक ऐसा कहा ‘जच में पद्मावती के साथ बैठकर बातचीत करती रहती हूँ, तब तुमको मेरे पास आकर यह कहना होगा कि एक शेर ने जंगल में जयदेव को मार डाला। रानी की आज्ञा का पालन सिपाही ने किया। जिस पल को पद्मावती ने जयदेव की मृत्यु वार्ता सुनी, उसी पल नीचे गिर पड़ी तथा मर गई। रानी बहुत तनाव में आ गई। उसने इस पूरे वृत्तांत को जंगल में रहनेवाले राजा तथा जयदेव की सुनाया। तव राजा इतने शर्मिंदा हुए कि वे स्वयं आत्महत्या करने पर तुल गए । लेकिन जयदेव ने उनको रोका। जयदेव ने भगवान द्वारा स्वीयरचित उन्नीसवें अष्टपदी को अपनी पत्नी के देहावशेष के सामने गाने लगे । आश्चर्य! पद्मावती ऐसे उठकर बैठ गई मानों वह गहरी नींद से उठ बैठी हो। तब रानी और राजा ने जयदेव को साष्टांग प्रणाम समर्पित करके क्षमा माँगी।’
जयदेव ने राजा तथा रानी से ऐसा कहा यह सब भगवान श्रीकृष्ण की लीला है। भगवान आपकी भला करे ।